न उपजे तो परेशानी, अधिक उपजे तो मायूसी! सब्जी की फसल क्यों बर्बाद कर रहे झारखंड के किसान?

हर साल फरवरी से लेकर अप्रैल-मई तक सब्जियों का भाव बेहद नीचे गिर जाता है। जब तक इलाके में सब्जियों के प्रसंस्करण की इकाइयां नहीं लगेंगी या फिर फसलों की उचित कीमत पर खरीदारी की व्यवस्था नहीं होगी, तब तक किसानों की हालत में सुधार की गुंजाइश नहीं दिखती।

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सब्जियों का बंपर उत्पादन करने वाले झारखंड के किसानों के चेहरों पर मायूसी पसरी है। बाजार में पिछले एक हफ्ते के दौरान सब्जियों के भाव में जबरदस्त गिरावट आई है और इसके चलते उनके लिए फसल की लागत निकाल पाना भी मुश्किल हो गया है। रांची शहर के बाजारों में भी फूलगोभी, पत्ता गोभी, पालक, टमाटर जैसी सब्जियां पांच से लेकर 10 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रही हैं। गांवों के बाजारों में कीमतें इससे भी कम हैं। आढ़तिए किसानों को उनकी लागत जितनी कीमत भी देने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में कई इलाकों के किसान खेतों में लगी सब्जी की फसल खुद रौंद रहे हैं।

रामगढ़ के चितरपुर प्रखंड क्षेत्र के बड़कीपोना गांव के किसान राधेश्याम महतो ने अपनी एक एकड़ जमीन में लगी पत्ता गोभी की फसल ट्रैक्टर चलाकर रौंद दिया। इसके पहले गोला प्रखंड में भी एक किसान ने फूलगोभी की उचित कीमत न मिलने से नाराज होकर अपनी फसल पर ट्रैक्टर चला दिया था।

रांची जिले के ओरमांझी इलाके में भी कई किसान खेत से सब्जी की फसल उखाड़कर फेंक रहे हैं। ओरमांझी के उकरीद गांव के किसान कामेश्वर महतो बताते हैं कि उन्होंने पांच से छह एकड़ जमीन पर फूलगोभी और पत्तागोभी की खेती की थी। अब तैयार फसल दो से तीन रुपए प्रति किलो की दर से भी नहीं बिक रही। बाजार तक फसल ले जाने पर होने वाला खर्च भी नहीं निकल रहा।

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