Success Story: इस शख्स ने प्राकृतिक तरीके से लगाए आम के पेड़, बंपर पैदावार के साथ हुआ लाखों का मुनाफा

Success Story: डॉ. पोल ने अपने खेत में ज्वार, बाजरा, गेहूं और चना जैसी फसलें भी उगाई हैं, जिन्हें वह घर पर ही खाते हैं और बची हुई फसल को महंगे दामों पर बेचते हैं। इसके अलावा पास के आधे एकड़ के खेत में उन्होंने इमली, अमरूद, पपीता और नारियल जैसे फलों के पेड़ लगाए हैं।

Mango Farming

Success Story: डॉ. प्रदीप भीमराव पोल का जीवन मिशन एक पशु चिकित्सक के रूप में जानवरों को ठीक करने से बदल कर धरती को ठीक करना हो गया है। खराब हो चुकी मिट्टी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रतिबद्ध डॉ. पोल ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है। डॉ. पोल के केमिकल मुक्त खेती की ओर रुख करने से न केवल मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार आया बल्कि उनकी आजीविका में भी बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिला। पहले उनके आम के बाग से सालाना 1.5 लाख रुपये की आय होती थी। हालांकि, अधिक लागत की वजह से उन्हें मामूली लाभ ही मिल पाता था। वहीं, प्राकृतिक तरीके से उगाए गए उनके 500 केसर आम के पेड़ सालाना लगभग 3 लाख रुपये की उपज देते हैं। उन्होंने दो साल के भीतर अपनी जमीन की उत्पादकता दोगुनी, लागत को लगभग शून्य और अपनी आय में वृद्धि की है। उनके प्राकृतिक रूप से पके आम अब सीधे ग्राहकों को 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम की प्रीमियम कीमत पर बिकते हैं, जबकि बाजार में इसकी कीमत 60-70 रुपये है।

तीन तरह के बायो-फर्टिलाइजर का उपयोग

Krishijagran.com की एक रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. पोल ने अपने खेत में ज्वार, बाजरा, गेहूं और चना जैसी फसलें भी उगाई हैं, जिन्हें वह घर पर ही खाते हैं और बची हुई फसल को महंगे दामों पर बेचते हैं। इसके अलावा पास के आधे एकड़ के खेत में उन्होंने इमली, अमरूद, पपीता और नारियल जैसे फलों के पेड़ लगाए हैं, जिससे उन्हें साल भर ताजे फल मिलते हैं।अपनी खेती को बेहतर बनाने के लिए वह तीन तरह के बायो-फर्टिलाइजर का उपयोग करते हैं: जीवामृत, दशपर्णी काढ़ा और गोमूत्र। जीवामृत पानी, गाय का गोबर, गोमूत्र और मिट्टी को मिलाकर बनाया जाता है। वहीं, दशपर्णी काढ़ा पानी, गोमूत्र, गोबर, नीम, हल्दी और मिर्च को 30 से 40 दिन रोजाना चला कर तैयार किया जाता है।

देशी गायों के दूध के उपयोग को बढ़ावा

डॉ. पोल अपने प्राकृतिक खेती के वीडियो सोशल मीडिया पर भी शेयर करते हैं। इससे वह लोगों के बीच भरोसा बनाते हैं और अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ाते हैं। वह प्राकृतिक खेती के साथ ही खिल्लारी नस्ल जैसे देशी गायों के A2 दूध के उपयोग को भी बढ़ावा देते हैं, जिसे अब कई ग्रामीणों ने अपना लिया है। Krishijagran.com के अनुसार, प्राकृतिक तरीकों की ओर इस बदलाव ने उनके खेत को बदल दिया है और यहां तक कि पास के बोरवेल में पानी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है।

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