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Agra Christian Cemetery: अब आगरा में भी पांच साल की लीज पर मिलेगी कब्र, ईसाई कब्रिस्तान में जमीन की कमी

Updated Apr 22, 2022 | 17:13 IST

Agra Christian Cemetery: आगरा में आबादी के हिसाब से कब्रिस्तान में जमीन की कमी है, ऐसे में दिल्ली की तर्ज पर आगरा में भी पांच साल के लिए कब्र की जमीन लीज पर देने पर विचार किया जा रहा है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
आगरा में हो रही कब्र के लिए जमीन की कमी (प्रतीकात्मक तस्वीर)
मुख्य बातें
  • ताजनगरी में भी पांच साल की लीज पर मिलेगी कब्र
  • ईसाई कब्रिस्तान में जमीन की कमी होने के कारण किया जा रहा विचार
  • कोरोना काल में था जगह का संकट

Agra Christian Cemetery: ईसाई कब्रिस्तानों में जमीन की कमी के कारण अब दिल्ली की तर्ज पर आगरा में भी कब्र का स्वामित्व पांच साल के लिए ही मृतक के परिजन को दिए जाने की व्यवस्था करने पर विचार किया जा रहा है। इसके साथ ही कब्रिस्तान के लिए नई जगह भी तलाशी जाएगी। गिरजाघरों में पंजीकरण के मुताबिक, शहर में ईसाई समाज के तकरीबन छह हजार लोग हैं, जबकि ग्रामीण अंचल में 15 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन इनका पंजीकरण नहीं है।

शहर में ईसाईयों के ब्रिटिशकालीन दो कब्रिस्तान हैं, जिनमें छावनी स्थित गोरों का कब्रिस्तान और दूसरा भगवान टाॅकीज सिमिट्री है, जहां लाल ताजमहल का मॉडल बना हुआ है। इन दोनों ही कब्रिस्तानों में अंग्रेज अधिकारियों की कब्रें स्थित हैं। इनमें ज्यादातर कब्रें पक्की बनी हुई हैं। 

मरियम टूम के पीछे कब्रिस्तान में अतिक्रमण 
सदर व आसपास के इलाके के लोग शव दफनाने के लिए गोरों के कब्रिस्तान पहुंचते हैं, लेकिन सैन्य क्षेत्र होने के कारण इसके लिए इजाजत लेनी होती है। आम लोगों का यहां प्रवेश नहीं है। भगवान टाॅकीज स्थित कब्रिस्तान में वजीरपुरा व आसपास के लोग शव दफनाने जाते हैं, मगर यहां ज्यादातर कब्रें पक्की हैं। इससे मुश्किलें सामने आती हैं। तोता का ताल का कब्रिस्तान भी छोटा है। सिकंदरा में मरियम टूम के पीछे भी एक कब्रिस्तान है। इसमें अतिक्रमण हो गया हैं। लोगों ने घर तक बना लिए हैं। 

कोरोना काल में देखा था कब्र के लिए जगह का संकट
कोरोना काल में हुई मौतों के बाद कब्रिस्तानों में जगह का संकट पैदा हो गया था, तभी से ईसाई समाज के प्रतिनिधि नया कब्रिस्तान बनाने और कब्रों को पांच साल के लिए ही सुरक्षित करने पर विचार कर रहे हैं। दो कब्रिस्तान कमेटियों के अध्यक्ष फादर मून ने बताया कि, पुरानी कब्र खोल कर दूसरा शव दफनाने की प्रक्रिया में यह देखा जाता है कि, वह कब्र उसी परिवार के किसी व्यक्ति की हो, जिसका शव है। यह भावनाओं से जुड़ा मसला है। इसलिए इसका ख्याल रखा जाता है।

पक्की कब्रों को हटाने में होती है परेशानी
आगरा महाधर्मप्रांत के आध्यात्मिक निर्देशक फादर मून लाजरस ने बताया कि, आगरा में आबादी के हिसाब से कब्रिस्तान में जमीन की कमी है, क्यों पक्की कब्रों को हटाने में दिक्कतें आती हैं। हम दो साल से कोई पक्की कब्र नहीं बनाने दे रहे हैं। दिल्ली में कब्र पर पांच साल तक ही परिजनों का अधिकार रहता है। इसी तरह आगरा में भी पांच साल के लिए कब्र की जमीन लीज पर देने पर विचार किया जा रहा है। 
 

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