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क्या रीयल एस्टेट के बाद अब मंदी की चपेट में आया ऑटो सेक्टर?

Updated Aug 14, 2019 | 20:33 IST | मनोज यादव

ऑटो पार्ट्स पर ड्यूटी बढ़ाने और डीजल-पेट्रोल पर जीएसटी बढ़ाने से ऑटो इंडस्ट्री को मंदी की मार झेलनी पड़ रही है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
मंदी की मार झेलता ऑटो सेक्टर
मुख्य बातें
  • 19 साल के सबसे खराब दौर से गुजर रहा ऑटो सेक्टर।
  • जुलाई 2019 में वाहनों की बिक्री में आई 31 फीसदी की गिरावट।
  • लाखों लोगों का रोजगार जाने का खतरा।

इस साल जुलाई माह में ऑटो सेक्टर की बिक्री में लगातार 9वें माह में गिरावट दर्ज की गई है। पिछले 19 साल में ब्रिकी के लिहाज से जुलाई का महीना सबसे खराब रहा। इस दौरान ऑटो इंडस्ट्री में बिक्री में 31 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबिल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के मुताबिक इस साल जुलाई माह में सबसे कम 2,00,790 वाहनों की बिक्री हुई। इसके मुताबिक स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेहिकल की बिक्री में 15 प्रतिशत, तो कारों की बिक्री में 36 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

फेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबिल डीलर्स एसोसिएशन (FADA) के मुताबिक, ऑटो सेक्टर में मंदी की वजह से पिछले तीन महीने में दो लाख लोगों का रोजगार छिन गया है। नॉन-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के क्रेडिट में कमी आने से पिछले एक साल में एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत में गाड़ियों की खरीद में भारी कमी आई है। 

टाटा मोटर्स और मारुति को कम करना पड़ा अपना उत्पादन
बिक्री में गिरावट की वजह से देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनियां मारुति सुज़ुकी और टाटा मोटर्स को अपना उत्पादन घटाना पड़ा है। जिसकी वजह से हजारों की संख्या में लोग बेरोजगार हो गए हैं। घरेलू बाज़ार में मारुति सुजुकी की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है। मारुति ने जनवरी 2019 में केवल 1.42 लाख कारें ही बेच पाई। लेकिन छह महीने में ही 31 प्रतिशत की गिरावट आ गई और जुलाई में केवल 98,210 कारें बिकीं।

घरेलू बाज़ार में दूसरी बड़ी कार निर्माता कंपनी हुंडई की बिक्री में भी खासी गिरावट दर्ज की गई है। जनवरी में हुंडई की तकरीबन 45 हजार कारें बिकी थीं, लेकिन जुलाई माह में इसकी बिक्री में 15 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और 39 हजार कारें ही बिकीं। शेयर बाजार में भी इन कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट दर्ज की गई 
है। जनवरी से अब तक मारुति के शेयरों में 22 प्रतिशत की गिरावट आई है। 

शेयर में आई बड़ी गिरावट
वहीं, समान अवधि में टाटा मोटर्स के शेयरों में 29 प्रतिशत की गिरावट आई है। जबकि इस अवधि में सेंसेक्स में 2.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ऑटो सेक्टर में अब जीएसटी की दरों में कटौती की मांग तेज होती जा रही है। ऑटो इंडस्ट्री के लोगों की सरकार से मांग है कि सरकार को ऑटोमोबिइल सेक्टर में जीएसटी की दर 28 प्रतिशत से घटाकर 18 प्रतिशत करनी चाहिए।

रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फ़रवरी से लेकर अब तक रेपो रेट में लगातार चार बार कटौती की है। लेकिन नकदी की कमी को पूरा करने के लिए यह पर्याप्त नहीं लग रहा है। अपने पैसेंजर वेहिकल की घरेलू बिक्री में 34 प्रतिशत गिरावट दर्ज करने वाले टाटा मोटर्स ने वर्तमान मुश्किल परिस्थितियों के कारण महाराष्ट्र के कुछ संयंत्रों को बंद कर दिया है। साथ ही इसका असर कलपुर्जे बनाने वाली छोटी कंपनियों पर भी देखा जा रहा है।

ऑटो इंडस्ट्री को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। जून में बजट के दौरान ऑटो पार्ट्स पर ड्यूटी बढ़ाने और पेट्रोल- डीजल पर अतिरिक्त टैक्स लगाने की वजह से भी बिक्री में गिरावट देखी जा रही है। पेट्रोल और डीजल महंगा होने से लोग चार पहिया वाहन खरीदने से कतराने लगे हैं। इस सरकार के कार्यकाल में रीयल एस्टेट पहले से ही मंदी की मार झेल रहा था। 

बढ़ने लगा है बेरोजगारी का खतरा
अब ऑटो सेक्टर में बिक्री में कमी आने से बेरोजगारी बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है। रीयल एस्टेट सेक्टर में पहले से ही काफी बेरोजगारी बढ़ी हुई है। मांग में कमी की वजह से रीयल एस्टेट सेक्टर पहले से ही मंदी की मार झेल रहा है। सरकार द्वार बनाए गए नए नियमों और कीमतें ऊंची होने से रीयल एस्टेट सेक्टर में मांग घट गई है। इसके पूर्व की सरकार के कार्यकाल में लोगों के पास ब्लैकमनी अधिक होने से रीयल एस्टेट के दाम अनाप-सनाप तरीके से बढ़ गए थे। 

जब से केंद्र में  भाजपा सरकार आई है, तब से चीजों पर नियंत्रण लगा है, जिससे लोग रीयल एस्टेट में खरीदारी करने से कतराने लगे हैं। एक सेक्टर में मंदी आने से कई सेक्टरों को इसकी मार झेलनी पड़ती है। खपत कम होने से बिक्री कम हो रही है। बिक्री घटने से निर्माणकर्ता कंपनियां को नुकसान उठाना पड़ रहा है। निर्माणकर्ता 
कंपनियां घाटे में जाने लगी हैं, जिससे उन्हें अपनी मैनपॉवर को घटाना पड़ रहा है, लिहाजा बेरोजगारी बढ़ रही है। बेरोजगारी बढ़ने से उपभोक्ता सेक्टर से लेकर तमाम अन्य सेक्टरों पर इसका असर देखा जाने लगा है।

(डिस्क्लेमर : मनोज यादव अतिथि लेखक हैं और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।)