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मध्यप्रदेश: कोरोना काल में बुंदेलखंड में लौटी सदियों पुरानी परंपरा 

Updated Jun 03, 2020 | 17:11 IST

Barter system back in Bundelkhand Villages:कोरोना वायरस की वजह से उपजे देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान बुंदेलखंड में सदियों पुरानी परंपरा की वापसी हुई।

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Bundelkhand labour 123
मुख्य बातें
  • कोरोना काल में लोगों की जीवन शैली में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं
  • शहर के लोग जहां डिजिटल युग में पहुंचे तो गांव में लोगों ने परंपरा का सहारा लिया
  • बुंदेलखंड में लोगों ने पैसे की तंगी के बीच सदियों पुरानी परंपरा को वापस अपना लिया

भोपाल: कोरोना वायरस के का पूरी दुनिया में प्रभाव पड़ा। पूरी दुनिया में जहां तस जानलेवा वायरस के कारण त्राहि-त्राहि मची हुई है। वहीं दूसरी ओर लोग अपने गांव-घर में रहते हुए पुरानी परंपराओं और रीतियों की ओर भी लौटते दिख रहे हैं। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के गांवों में लॉकडाउन के दौरान देखने को मिला। लॉकडाउन के दौरान बुंदेलखंड के गांवों में रहने वाले लोगों के पास न तो काम था और न पैसे ऐसे नें उन्होंने जीवन यापन के लिए सदियों पुरानी विनियम पद्धति को अपना लिया। 

लॉकडाउन के दौरान शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों ने डिजिटल पेमेंट की ओर रुख किया। वहीं गांव में लोगों ने एक दूसरे से खाने पीने की चीजों और आनाज की अदला-बदली की। खासकर गेंहूं की। लोगों ने हाथ में पैसे नहीं होने की स्थिति में गेंहूं के बदले एक दूसरे से तेल, दाल और अन्य चीजें लीं। 

प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, और सागर जैसे जिलों के ग्रामीण इलाकों में लोगों के पास खाने के लिए आनाज तो था लेकिन तेल, नमक और अन्य चीजों के लिए पैसे नहीं थे तो उन्होंने एक दूसरे से वो हासिल कर लिया या फिर दुकानदार को ही गेहूं देकर उसके बदले जरूरत का सामान बगैर कैश के कर लिया। 

मजदूरी में मिलता है अनाज 
मध्यप्रदेश के इन इलाकों के लोग बड़ी संख्या में दिल्ली और उसके आसपास के इलाके में मजदूरी के लिए जाते हैं। लेकिन फसल के वक्त गांव लौट आते हैं। अधिकांश लोग होली में घर आए थे लेकिन लॉकडाउन के कारण लौट नहीं पाए। ऐसे में वहां गेंहू काटने का काम तो उन्हें मिला लेकिन हाथ में पैसे नहीं आए। बुंदेलखंड में एक मजदूर को एक एकड़ खेत काटने के लिए 50 किलो गेहूं मजदूरी के रूप में मिलते हैं।  ऐसे में जो अनाज उन्हें अपनी खेती से मिला उसी का उपयोग उन्होंने करेंसी के रूप में कर लिया और एक बार फिर विनियम पद्धति को जीवित कर दिया। 

छतरपुर जिले के बागमऊ गांव के रहने वाले एक मजदूर ने बताया, लॉकडाउन के दौरान कहीं कोई काम नहीं था न गांव में न शहर में। मैं दिल्ली से पैदल चलकर अपने गांव लौटा था। मेरे घर में आनाज था तो मैंने उससे काम चला लिया। वो मेरे और परिवार के खाने के काम आया साथ ही उसके बदले लोगों से जरूरत की और चीजें भी मुझे मिल गईं। 

लोग दुकानदार के पास 100 से 250 ग्राम गेंहूं लेजाकर उसके बदले रोज की जरूरत की चीजें ले आते हैं। हालांकि सरकार ने लॉकडाउन के दौरान ही मजदूरों और उनके परिवारों को राहत देने के लिए मनरेगा के अंतर्गत काम शुरू कर दिए थे। तकि इस मुश्किल उन्हें काम मिल सके और हाथ में पैसा आ सके। 

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