- आज पेश किया जाएगा बजट 2021-22
- गांव, गरीब और किसानों की उन्नति होगी सरकार की प्राथमिकता
- महामारी के दौरान आम आदमी और अर्थव्यवस्था को हुआ भारी नुकसान
नई दिल्ली: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज संसद में आम बजट 2021-22 पेश करेंगी। इस बजट से काफी उम्मीदें की जा रही हैं क्योंकि ये ऐसे समय में पेश किया जा रहा है जब देश की अर्थव्यवस्था और आम आदमी को कोरोना वायरस महामारी से काफी झटका लगा है। आशा की जा रही है कि इसमें महामारी से पीड़ित आम आदमी को राहत दी जाएगी। साथ ही स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढांचे और सुरक्षा पर अधिक खर्च के माध्यम से आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने पर अधिक ध्यान दिए जाने की भी उम्मीद की जा रही है।
इस बजट के माध्यम से सरकार की कोशिश होगी कि कोरोना महामारी की वजह से तबाह हुई अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाया जाए और उसे गति प्रदान की जाए। विशेषज्ञ चाहते हैं कि यह बजट कुछ इस तरीके का हो, जो भविष्य की राह दिखाये और दुनिया में सबसे तेजी से वृद्धि करती प्रमुख अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लाए।
कृषि और ग्रामीण विकास को तरजीह!
अब जब कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए टीका आ गया है, वैसे ही उम्मीद की जा रही है कि देश की अर्थव्यवस्था और सभी क्षेत्रों को इस बजट से टीका लगेगा। माना जा रहा है कि ऐसे समय में जब किसानों का आंदोलन जारी है तब सरकार कृषि और ग्रामीण विकास को तरजीह देगी। किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी करने और देश के हर गरीब को पक्का मकान समेत गांवों में बुनियादी सुविधाओं का विकास मोदी सरकार की प्राथमिकता रही है। कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि किसानों के आंदोलन में एमएसपी एक बड़ा मुद्दा है, लिहाजा आगामी बजट में एमएसपी को लेकर भी कुछ घोषणा होने की उम्मीद की जा सकती है।
गंभीर मंदी का करना पड़ा सामना
इससे पहले 29 जनवरी को वित्त और कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश की। इससे सामने आया कि कोविड-19 महामारी के कारण पूरे विश्व को आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ा। यह वैश्विक वित्तीय संकट से भी अधिक गंभीर है। लॉकडाउन तथा एक-दूसरे से आवश्यक दूरी बनाए रखने के नियमों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी की विकास दर 11.0 प्रतिशत रहेगी तथा सांकेतिक जीडीपी की विकास दर 15.4 प्रतिशत रहेगी, जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सर्वाधिक होगी।
स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत
आर्थिक समीक्षा में सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च जीडीपी के 1% से बढ़ाकर 2.5-3% करने की सिफारिश की गई है। स्वास्थ्य व्यय बढ़ाने से समग्र स्वास्थ्य व्यय की तुलना में अपनी जेब से होने वाला व्यय 65% से घटकर 35% रह जाएगा। स्वास्थ्य बाजार का स्वरूप निर्धारित करने में सरकार की अहम भूमिका हो। बीमा प्रीमियम में कमी लाने में सहायता के लिए असमान सूचना की समस्या को दूर करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया। देश के कोने-कोने तक स्वास्थ्य सेवाओं की डिलिवरी के लिए तकनीक कुशल समाधानों के पूर्ण दोहन की जरूरत है।