वैश्विक अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाने वाले महामारी वर्ष के बीतने के साथ, इस केंद्रीय बजट का उद्देश्य आम आदमी के हाथ में अधिक धन देना चाहिए। इस लक्ष्य को हासिल करने के कई तरीकों में मौजूदा टैक्स कटौती की सीमा बढ़ाना और नई कटौतियां शुरू करना, हो सकता है। इसमें उन कटौतियों की सीमा बढ़ाना भी उपयोगी होगा जो रियल एस्टेट जैसे प्रायोरिटी सेक्टर में दिलचस्पी को प्रोत्साहित करते हैं। इसलिए, मैं वित्तमंत्री महोदया से निम्नलिखित बातों की सिफारिश करना चाहता हूं। धारा 80सी से होम लोन कटौती को हटाकर सिर्फ इसके लिए एक नई धारा शुरू करें, और मूलधन और ब्याज पर किसी भी उप-सीमा के बिना कटौती सीमा को 5 लाख रुपए तक निर्धारित करें। यहां इस सिफारिश का औचित्य दिया जा रहा है।
होम लोन की कटौतियों को सुव्यवस्थित करना आवश्यक है
वर्तमान समय में, योग्य करदाता धारा 80सी (भुगतान किए गए मूलधन के लिए, 1.5 लाख रुपए तक), 24बी (2 लाख रुपए तक भुगतान किए गए ब्याज के लिए), 80ईई (50,000 रुपए तक भुगतान किए गए ब्याज के लिए) और 80ईईए (1.5 लाख रुपए तक भुगतान किए गए ब्याज के लिए) के तहत कटौती का दावा कर सकते हैं। इसके अलावा, योग्य घर-खरीदार पीएमएवाई के तहत 2.67 लाख रुपए तक होम लोन ब्याज सब्सिडी का दावा भी कर सकते हैं। इन विभिन्न लाभों को एक ही शीर्ष (हेड) के अंतर्गत सुव्यवस्थित करने की जरूरत है।
सीमा बढ़ाए जाने की जरूरत है
भारत में घर खरीदना एक बेहद महंगा सौदा है। लोगों को घर खरीदने का अपना सपना पूरा करने के लिए प्रायः अपनी जिंदगी की पूरी जमापूंजी खर्च करने के बावजूद अपनी सालाना आय का कई गुना उधार लेना पड़ सकता है। लागत से बचा नहीं जा सकता, और इस लागत का बड़ा हिस्सा होम लोन पर लगने वाला ब्याज है। प्रायः होम लोन पर दीर्घकालिक ब्याज उस संपत्ति की लागत को पार कर जाता है। इसलिए, यह उचित होगा कि होम लोन कटौती उस लागत के अनुरूप हो। वर्तमान समय में, धारा 80ईईए के तहत कटौती के लिए पात्र नया घर-खरीदार सैद्धांतिक रूप से 5 लाख रुपए तक की कटौती का दावा कर सकता है। इसलिए, यह सिफारिश की जाती है कि सभी उधारकर्ताओं के लिए होम लोन कटौती को बढ़ाकर 5 लाख रुपए किया जाए ताकि उन्हें उधार लेने की उच्च लागत की तुलना में टैक्स कटौती के माध्यम से बेहतर मूल्य मिल सके।
वर्तमान कटौतियां भेदभावपूर्ण हैं
घर खरीदने की उच्च लागत के कारण, कई खरीदारों को अपने पहले घर की खरीद पर समझौता करना पड़ता है। धारा 80ईई और 80ईईए के तहत कटौती तथा पीएमएवाई सब्सिडी केवल पहली बार के घर-खरीदारों के लिए उपलब्ध है। इस तरह, दूसरी बार के उन घर-खरीदारों के साथ भेदभाव होता है जो बड़े घर की आवश्यकता के चलते नया घर लेना चाहते हैं। इस प्रकार, उन्हें दूसरा घर खरीदने की लागत-गहन (कॉस्ट-इंटेंसिव) प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, और चूंकि रियल एस्टेट मार्केट में मंदी है तो उन्हें अपना पहला घर बेचने पर भी शानदार रिटर्न मिलने की संभावना नहीं के बराबर है। इन बाधाओं को देखते हुए, टैक्स कटौती के मानदंडों में ढील देना उचित होगा।
धारा 80सी में काफी भीड़ है
धारा 80सी के साथ दूसरी समस्या यह है कि इसमें कई सारे टैक्स-सेविंग विकल्प होने से भीड़ बहुत बढ़ गई है, और इस तरह यह उन कई खर्चों का पूरा मूल्य नहीं दे पाता जिनसे कुछ करदाता बच नहीं सकते। उदाहरण के लिए, ऐसे लोग जिन्हें होम लोन, स्कूल जाने वाले बच्चों की फीस, पीएफ योगदान और जीवन बीमा प्रीमियम देना पड़ता है, वे आसानी से 1.5 लाख रुपए की सीमा को पार कर जाएंगे, और इसलिए उन्हें इन वस्तुओं पर टैक्स कटौती का पूरा मूल्य नहीं मिल पाता। इसलिए, कम से कम होम लोन के मूलधन भुगतान के लिए आयकर अधिनियम में एक नई धारा जोड़ा जाना आवश्यक है।
यह डिस्क्रेशनरी (विवेकाधीन) खर्चों और रियल एस्टेट को प्रोत्साहित करेगा
बिना किसी उप-सीमा के होम लोन भुगतान के लिए बढ़ी हुई कटौती से डिस्पोजेबल आय में वृद्धि होगी, जो डिस्क्रेशनरी (विवेकाधीन) खर्च को बढ़ावा देकर अंततः बेहद कठिन वर्ष के बाद अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित ही करेगी। दूसरी बार के घर-खरीदारों के साथ भेदभाव नहीं करने वाली बेहतर टैक्स कटौती की उपलब्धता से रियल एस्टेट मार्केट में दिलचस्पी भी बढ़ेगी। पिछले अनुभवों को देखते हुए कहा जा सकता है कि कंस्ट्रक्शन जॉब के सृजन के माध्यम से रियल एस्टेट में विकास का अर्थव्यवस्था पर गुणक प्रभाव पड़ता है।
इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)