नयी दिल्ली: शेयर बाजारों की दिशा इस सप्ताह वैश्विक रुख से तय होगी। विश्लेषकों ने यह राय जताते हुए कहा कि मासिक डेरिवेटिव्स निपटान और ऊंचे मूल्यांकन की वजह से बाजार में उतार-चढ़ाव रह सकता है। इस साल जनवरी में पहली बार सेंसेक्स ने 50,000 अंक का ऐतिहासिक स्तर पार किया था। सेंसेक्स 31 साल में 1,000 अंक से 60,000 अंक पर पहुंचा है।
स्वस्तिका इन्वेस्टमार्ट के शोध प्रमुख संतोष मीणा ने कहा, 'भारत में तेजड़िया दौड़ का सिलसिला जारी है और सेंसेक्स सभी चिंताओं को नजरअंदाज कर 60,000 अंक के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंचा है। हम 2003-2007 की तेजड़िया दौड़ को फिर देख रहे हैं। ऐसे में यह उड़ान अगले दो-तीन साल तक जारी रह सकती है।'हालांकि, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि लघु अवधि में 'करेक्शन' की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
इसी तरह की राय जताते हुए मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी मोतीलाल ओसवाल ने कहा कि ऊंचे मूल्यांकन की वजह से हम बीच-बीच में उतार-चढ़ाव की संभावना से इनकार नहीं कर सकते। आर्थिक गतिविधियों में सुधार तथा कॉरपोरेट आय बढ़ने की वजह से हालांकि हमें सकारात्मक रुख जारी रहने की उम्मीद है।
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा कि यह सप्ताह आर्थिक आंकड़ों की दृष्टि से शांत रहेगा। ऐसे में बाजार वैश्विक संकेतकों से दिशा लेगा। उन्होंने कहा, 'सितंबर के विनिर्माण पीएमआई के आंकड़े इसी सप्ताह आने हैं। इनसे माह के दौरान कारोबारी गतिविधियों के बारे में राय बनाने में मदद मिलेगी।'
सैमको सिक्योरिटीज के एक नोट के अनुसार, पिछले सप्ताह बाजार में जो उतार-चढ़ाव दिखा, वह इस सप्ताह भी मासिक अनुबंधों के निपटान की वजह से जारी रहेगा, नोट में कहा गया है कि चिप की कमी और उसके चलते बिक्री की संभावनाएं प्रभावित होने की वजह से निश्चित रूप से सभी की निगाह वाहन कंपनियों के मासिक बिक्री आंकड़ों पर रहेगी। बीते सप्ताह बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,032.58 अंक या 1.74 प्रतिशत के लाभ में रहा।
कोटक सिक्योरिटीज के इक्विटी शोध (खुदरा) प्रमुख श्रीकांत चौहान ने कहा, 'यह भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है कि सबसे अधिक संवेदनशील सूचकांक 60,000 अंक को पार कर गया गया। आगे चलकर कंपनियों की आमदनी के आंकड़ों से बाजार में और तेजी आ सकती है।' विश्लेषकों ने कहा कि इसके अलावा बाजार की दिशा रुपये के उतार-चढ़ाव, विदेशी संस्थागत निवेशकों के निवेश के रुख और ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतों से भी तय होगी।