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Startup : तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम में कैसे बदल गया भारत?

Updated Jan 19, 2021 | 16:20 IST

भारत के नए उद्यमी समुदाय के लिए अच्छे दिन आ गए हैं क्योंकि भारत सरकार सीड फंड लॉन्च करेगी। यहां जानिए भारत तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम कैसे बन गया। 

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
स्टार्टअप इकोसिस्टम

भारत के नवोदित उद्यमी समुदाय के लिए अच्छे दिन आ गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को प्रारम्भिक स्टार्टअप इंडिया इंटरनेशनल समिट में बोलते हुए खुलासा किया कि सरकार स्टार्टअप के लिए 1,000 करोड़ रुपए का सीड फंड लॉन्च करेगी, स्टार्टअप इंडिया सीड फंड का उद्देश्य स्टार्टअप्स का विकास करना है। उन्होंने कहा कि आगे बढ़ें सरकार स्टार्टअप्स को डेट कैपिटल जुटाने में मदद के लिए गारंटी प्रदान करेगी। हम  ऑफ द यूथ, फॉर द यूथ मंत्र पर स्टार्टअप इकोसिस्टम बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 

नए सीड फंड एक और सकारात्मक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य भारत की विशाल जनसंख्या की क्षमता का एहसास करना है। पिछले साल, इलेक्ट्रॉनिक्स और इनफॉर्मेशन टैक्नोलॉजी मंत्रालय ने इस तरह की स्कीम लॉन्च की थी। जिसका उद्देश्य 300 चुनिंदा स्टार्टअप्स के लिए 25 लाख रुपए तक के सीड फंड की पहचान करने और प्रदान करना था। हालांकि 'चुनौती' प्रोग्राम में केवल 95.03 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था।

इस साल की शुरुआत में, यूएस में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने खुलासा किया कि 73.2 बिलियन डॉलर के संचयी मूल्य के साथ 21 यूनिकॉर्न्स रखने वाला भारत अब तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम में बदल गया है। जिससे उम्मीद है कि 2022 तक इस क्लब में अतिरिक्त 50 स्टार्टअप इसमें शामिल हो सकते हैं। महामारी की वजह से स्टार्टअप के लिए 2020  बड़े पैमाने पर वाश-आउट वर्ष के तौर पर रहा। लेकिन गौर हो कि 2019 में भारत के उद्यमियों ने फंड में रिकॉर्ड 14.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया।

दरअसल, बढ़ती फंडिंग के पीछे, हाल के वर्षों में भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम विकास किया और अब डिसरपटिव टैक्नोलॉजी, निरंतर समेकन और बढ़ते घरेलू बाजार की विशेषता है। कुछ अनुमानों के अनुसार, 2014 में देश में सिर्फ 3,000 स्टार्टअप थे, लेकिन यह आंकड़ा 2020 तक बेंगलुरु, मुंबई और दिल्ली के साथ 30,000 से अधिक हो गया और उद्यमियों के लिए आकर्षक स्थलों में बदल दिया।

1980 के दशक में शुरू हुई आईटी कंपनियों की अपार ग्रोथ और ऑफशोरिंग और आर एंड डी की वजह से अनिवार्य रूप से टेक्निकल एजुकेशन की भारी मांग हुई। अगले कुछ दशकों में इस टैलेंट पूल का विकास जारी रहा और 2014 तक भारत में दुनिया के इंजीनियरिंग ग्रेजुएट का 25% होने का अनुमान था।

उस समय, स्टार्टअप स्पेस अपने नवजात चरणों में बहुत था लेकिन 'इंडियास्टैक' जैसे डिजिटल बुनियादी ढांचे के कार्यान्वयन के जरिये डिजिटलीकरण की ओर सरकार का रुख- एक कैशलेस, पेपरलेस, सहमति-आधारित स्केलेबल प्लेटफॉर्म भारतीय स्टार्टअप के लिए एक ईश्वर के रूप में आया। आर्किटेक्चर ने आधार की नींव के रूप में काम किया है। भारत की यूनिवर्सल पहचान परियोजना, जो आठ वर्षों में, 1.2 बिलियन से अधिक यूजर्स को तैयार करने में कामयाब रही। प्लेटफॉर्म का उपयोग उन नागरिकों के लिए 500 मिलियन से अधिक बैंक खातों की सुविधा दी गई जिनके पास पहले कभी बैंक अकाउंट नहीं था। 

डिजिटलीकरण की दिशा में स्वाभाविक रूप से भारत में 300 इनक्यूबेटर्स और एक्सेलेटर्स के साथ नई सेवाओं में निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। अकेले 2018 में बायजू, अनएकेडमी, फ्लिपकार्ट (अब अमेज़ॅन द्वारा खरीदा गया) और पेटीएम जैसे घरेलू नामों के साथ टेक-आधारित स्टार्टअप की ओर $4 बिलियन से अधिक हो गया।

इसके साथ ही भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम आगे बढ़ा और मैच्योरिटी के करीब पहुंच गया। बी2सी सेवाओं का एक दशक वर्चस्व रहा है, बी2बी समाधान अब भारतीय उद्यमियों को आईओटी, ब्लॉकचेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन के नए अनुप्रयोगों की खोज से जटिल व्यावसायिक चुनौतियों से निपटने के लिए सीखने में अधिक ध्यान आकर्षित करेगा। 

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