- कर्मचारियों के लिए दो टैक्स व्यवस्था दी गई है
- डक्लियरेशन भरने से पहले विकल्प चुन लें
- इनकम टैक्स रिटर्न भरने के समय ये विकल्प उपलब्ध नहीं हो सकते हैं
नई दिल्ली: अप्रैल के मध्य से ही इंप्लॉयर ने अपने कर्मचारियों को टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनने के लिए कहना शुरू कर दिया है ताकि वे अपना टैक्स लायबिलिटी की गणना कर सकें। यहां उल्लेख करने योग्य बात यह है कि बजट 2020 में नई टैक्स व्यवस्था का प्रस्ताव किया गया है। इसमें कम कटौती के साथ लोअर स्लैब दरें हैं। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 13 अप्रैल को एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें सभीइंप्लॉयर्स को निर्देश दिया गया कि वे कर्मचारियों से एक डक्लियरेशन प्राप्त करें कि क्या वे नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनना चाहते हैं।
अगर आप नई टैक्स व्यवस्था का विकल्प चुनना चाहते हैं, तो आपको डक्लियरेशन फॉर्म पर हस्ताक्षर करके अपने इंप्लॉयर (कंपनी) के माध्यम से बताना होगा। आपकी पसंद के विकल्प के अनुसार, आपका इंप्लॉयर मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए आपकी टैक्स लायबिलिटी की गणना करेगा और उसके अनुसार टीडीएस काटेगा। यदि आप अपने इंप्लॉयर को कोई डक्लियरेशन नहीं देते हैं, तो डिफॉल्ट रूप से आपका इंप्लॉयर पुरानी टैक्स व्यवस्था के अनुसार आपकी टैक्स लायबिलिटी की गणना करेगा।
नई इनकम टैक्स व्यवस्था बनाम पुरानी इनकम टैक्स व्यवस्था
इनकम टैक्स स्लैब ( लाख रुपए में) | नई टैक्स दर | पुरानी टैक्स दर |
2.5 लाख तक | Nil | Nil |
2.5 to 5 | 5% | 5% |
5 to 7.5 | 10% | 20% |
7.5 to 10 | 15% | 20% |
10 to 12.5 | 20% | 30% |
12.5 to 15 | 25% | 30% |
15 लाख से ऊपर | 30% | 30% |
विकल्प चुन लें नहीं तो...
ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक बार चुनाव करने के बाद, आप इसे चालू वित्त वर्ष के दौरान नहीं बदल सकते। लेकिन कर्मचारियों को यह चुनने का अधिकार होगा कि नई टैक्स सिस्टम के लिए जाना है या टैक्स रिटर्न भरने के समय पुराने के साथ रहना है। यहां उल्लेख करने योग्य बता है कि कुछ छूट केवल इंप्लॉयर के माध्यम से दावा की जा सकती हैं, इसलिए इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) भरने के समय ये विकल्प उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इसलिए अब आपको टैक्स व्यवस्था पसंद करना उचित है। अगर आप मानते हैं कि अधिक टीडीएस काट लिया गया है तो आपके पास आईटीआर भरने करने के समय रिफंड का दावा करने का विकल्प है।
पुरानी टैक्स व्यवस्था बेहतर
टैक्स एक्सपर्ट कई डिडक्शन उपलब्ध होने के कारण पुरानी टैक्स व्यवस्था के साथ रहने की सलाह देते हैं। अगर आपके पास 10 लाख रुपए का CTC है तो पुरानी टैक्स व्यवस्था आपकी टैक्स देनदारी को करीब शून्य तक घटा सकती है। हालांकि, प्रत्येक व्यक्ति को यह मूल्यांकन करना होगा कि कौन सी व्यवस्था उसके लिए डिडक्शन और छूट के आधार पर उसके अनुकूल है। जिसकी वह दावा करने की योजना बना रहा है।
नई टैक्स व्यवस्था से नुकसान होने की संभावना
यदि आप एक वर्ष में 50,000 रुपए के स्टैंडर्ड डिडक्शन समेत 2.5 लाख रुपए से अधिक डिडक्शन का दावा कर रहे हैं, तो आपको नई टैक्स व्यवस्था से नुकसान होने की संभावना है। आपका एचआरए और धारा 80सी बैनिफिट 2 लाख रुपए से अधिक होगा और अगर आपके पास एक होम लोन है तो धारा 24 (बी) के तहत ब्याज भुगतान पर टैक्स लाभ एक वर्ष में 4 लाख रुपए से अधिक डिडेक्शन होगा। यदि आप एक वित्तीय वर्ष में 2.5 लाख रुपए से अधिक की डिडेक्शन का दावा करते हैं तो पुरानी टैक्स व्यवस्था बेहतर है।