- वित्त वर्ष 2019-20 की जीडीपी की वृद्धि दर गिरकर 4.2 प्रतिशत रही
- वित्त वर्ष 2018-19 यह 6.1 प्रतिशत रही थी
- अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी
नयी दिल्ली : देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर बीते वित्त वर्ष 2019-20 की चौथी जनवरी-मार्च की तिमाही में घटकर 3.1 प्रतिशत पर आ गई है। इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में यह 5.7 प्रतिशत रही थी। 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का सबसे कमजोर आंकड़ा है। कहा जा रहा है कि वृद्धि दर में गिरावट का सबसे बुरा दौर अभी आना है। इसकी वजह कोरोना वायरस की वजह से लागू लॉकडाउन है। सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पूरे वित्त वर्ष 2019-20 में जीडीपी की वृद्धि दर गिरकर 4.2 प्रतिशत रह गई है। इससे पिछले वित्त वर्ष में यह 6.1 प्रतिशत रही थी। यह वार्षिक वृद्धि दर का 11 साल का सबसे निचला स्तर है। बीते वित्त वर्ष की प़हली तीन तिमाहियों के वृद्धि दर के आंकड़ों को घटाया गया है। बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर) के वृद्धि दर के आंकड़े को घटाकर 4.7 की जगह 4.1 प्रतिशत किया गया है।
चालू वित्त वर्ष में चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट होगी!
इसी तरह बीते वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही के आंकड़ों को भी क्रमश 5.6 से कम कर 5.2 प्रतिशत और 5.1 की जगह 4.4 प्रतिशत किया गया है। अंतरराष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों एसएंडपी ग्लोबल और फिच रेटिंग्स के अलावा कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अप्रैल से शुरू हुए चालू वित्त वर्ष में चार दशक की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिलेगी। वित्त वर्ष के दौरान जीडीपी में रिकॉर्ड पांच प्रतिशत की गिरावट आएगी।
चौथी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 1.4 प्रतिशत की गिरावट
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 1.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि एक साल पहले समान तिमाही में इसमें 2.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। हालांकि, कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर बढ़कर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो एक साल पहले की समान तिमाही में 1.6 प्रतिशत थी।
लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा?
राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा है, इसका पता अगली तिमाही यानी चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़े आने के बाद चलेगा। सरकार ने एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को बंद करने की शुरुआत मार्च के अंतिम सप्ताह से की थी। 25 मार्च से लागू लॉकडाउन को पहले ही तीन बार बढ़ाया जा चुका है। हालांकि, इस महीने की शुरुआत से सरकार ने लॉकडाउन के दौरान कुछ छूट दी हैं।
कोविड-19 संकट से पहले ही सुस्ती थी भारतीय अर्थव्यवस्था
कोविड-19 संकट शुरू होने से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती थी। गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के संकट तथा उपभोक्ता मांग घटने तथा निजी निवेश नीचे आने से अर्थव्यवस्था की स्थिति पहले से ही अच्छी नहीं थी। लॉकडाउन की वजह से सेवा क्षेत्र ओर विनिर्माण क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिससे रोजगार और आर्थिक वृद्धि के प्रभावित होने की आशंका है। जीडीपी में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 55 प्रतिशत का है। शुक्रवार को ही आए एक अन्य आंकड़े के अनुसार अप्रैल में विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 38.1 प्रतिशत घटा है। इसमें कोयला, कच्चा तेल और बिजली सहित आठ बुनियादी उद्योग आते हैं।
अर्थव्यवस्था में सुस्ती से राजकोषीय घाटा भी बढ़ा
अर्थव्यवस्था में सुस्ती से राजकोषीय घाटा भी बढ़ा है। बीते वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.59 प्रतिशत पर पहुंच गया है, जबकि इसका बजटीय लक्ष्य 3.8 प्रतिशत का था। जीडीपी के आंकड़ों पर डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि बीते वित्त वर्ष की चौथी तिमाही के जीडीपी आंकड़े एक दशक से अधिक पुराने वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से सबसे खराब हैं। उन्होंने कहा कि 2020 की शुरुआत से आर्थिक गतिविधियों में कुछ सुधार दिखने लगा था। पहले दो माह के औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों से पता चलता है कि औद्योगिक गतिविधियां सुधरने लगी हैं।
कोविड-19 नहीं होता तो भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ती
उन्होंने कहा कि दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो जनवरी-मार्च की तिमाही में जो सुस्ती रही है, उसमें प्रमुख योगदान मार्च के दूसरे पखवाड़े का है जब देश में कोविड-19 तेजी से फैलने लगा था। उन्होंने कहा कि इससे लगता है कि यदि कोविड-19 नहीं होता तो भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ती। मजूमदार ने कहा कि कोई यह अनुमान नहीं लगा सकता कि दो सप्ताह की इस अड़चन का क्या प्रभाव पड़ा। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में स्थिति और खराब रहेगी। यह महामारी समाप्त होने के बाद देश की स्थिति में तेजी से सुधार होगा। अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और कच्चे तेल की कीमतों में कमी से भी मदद मिलेगी।
एक साल तक आर्थिक गतिविधियां प्रभावित रहेंगी-एसएंडपी
एसएंडपी ने गुरुवार को कहा कि देश में अगले एक साल तक आर्थिक गतिविधियां प्रभावित रहेंगी। कोविड-19 से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार ने 20.9 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है। मार्च से रिजर्व बैंक महत्वपूर्ण नीतिगत दरों में 1.15 प्रतिशत की कटौती कर चुका है। लॉकडाउन की वजह से सेवा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। व्यापार, होटल और परिवहन सेवाओं में चौथी तिमाही में 2.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं वित्तीय सेवाओं की वृद्धि दर 2.4 प्रतिशत रही है। जनवरी-मार्च की तिमाही में सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) की वृद्धि दर तीन प्रतिशत रही है। भारतीय रिजर्व बैंक ने 2019-20 में आर्थिक वृद्धि दर पांच प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। कोरोना वायरस महामारी की वजह से जनवरी-मार्च, 2020 के दौरान चीन की अर्थव्यवस्था में 6.8 प्रतिशत की गिरावट आई है।