अगर आप इस दुनिया में सबसे कम सेहतमंद और सबसे अधिक स्वस्थ लोगों के बीच का अंतर पता करना चाहते हैं, तो आपको कहीं दूर-दराज के देश में उड़ कर जाने की जरूरत नहीं है। बस अपने भारत में ही नजर घूमा कर देखना काफी होगा। स्वास्थ्य में असमानता हमारे भारतीय समाज का अनचाहा मगर मजबूत भाग बन चुका है। यह परिस्थिति अन्य सामाजिक समस्याओं जैसे कि आमदनी, शिक्षा और भौगोलिक असमानताओं के साथ गहराई से जुड़ी है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी असमानताएं हैं जिन्हें अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
मेडिकल सेवाओं के क्षेत्र में असमानता का एक बड़ा कारण यह है कि एक तरफ जहां विश्व-स्तरीय आधुनिक सुविधाओं वाले आलीशान, 5 स्टार हॉस्पिटल्स मौजूद हैं, वहीं दूसरी तरफ ऐसे हॉस्पिटल हैं जहां न्यूनतम मूलभूत स्वास्थ्य सेवाएं भी नदारद हैं। असमानता की इस समस्या को हर करने का एकमात्र रास्ता है अनिवार्य हेल्थ इंश्योरेंस।
हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़े कंफ्यूजन
लेकिन इस कहानी का एक दूसरा पहलू भी है। हमारे देश में हजारों लोग अपने स्वास्थ्य को सबसे बेहतर बनाए रखने की कोशिशें करते हैं और साथ ही स्वास्थ्य से जुड़े जोखिमों से सुरक्षा के लिए हेल्थ इंश्योरेंस के विकल्प भी तलाशते हैं। लेकिन उन्हें आज भी मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां काफी कन्फ्यूज करती हैं और महंगी भी लगती है। इसके अलावा, लोगों का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो वर्तमान मेडिकल एवं स्वास्थ्य सेवाओं के तंत्र पर भरोसा ही नहीं करता। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह लोग कुछ इंश्योरेंस कंपनियों, हॉस्पिटल्स और डायग्नोस्टिक सेंटर्स द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं से संतुष्ट नहीं हैं।
इंश्योरेंस इंडस्ट्री से जुड़े कई एक्सपर्ट्स का भी यही मानना है कि मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां काफी जटिल हैं और इन्हें अच्छी तरह सरल बनाने की जरूरत है। आमतौर पर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने के दौरान आपको पहले इसमें क्या कवर नहीं किया जाएगा (एक्सक्लुजन), उसके बारे में बताया जाता है। जबकि पहले इसके फायदे यानी इसमें कवर होने वाली स्थितियों के बारे में बताया जाना चाहिए।
इस वजह से नहीं लेते लोग हेल्थ इंश्योरेंस
यही बात एक हेल्थ इंश्योरेंस को टर्म इंश्योरेंस, होम या कार इंश्योरेंस खरीदने की तुलना में मुश्किल बना देती है। अधिकतर नौकरीपेशा लोगों द्वारा अपनी नियोक्ता कंपनी द्वारा प्रदान किये गये हेल्थ इंश्योरेंस कवर को ही पंसद करने का यही एक महत्वपूर्ण कारण है और इसलिए यह लोग व्यक्तिगत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदना ही नहीं चाहते। भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में जनरल इंश्योरेंस कंपनियों ने लगभग 1.47 हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियां जारी की है, जिनके तहत 48 करोड़ लोगों को कवर किया गया। इन कंपनियों ने कवर होने वाले जिंदगियों की संख्या में 10% की वृद्धि दर्ज की है।
वहीं, एक व्यक्तिगत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में कवर किये जाने वाले लोगों की संख्या और ग्रुप कवर में कवर होने वाले लोगों की संख्या में बड़ा अंतर है। प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक देश में बीमा सुरक्षा प्राप्त कुल लोगों में से 75% एक सरकारी स्कीम के अंतर्गत कवर किये जाते हैं, जबकि 19% लोगों को ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस की सुरक्षा प्राप्त है, जो कि आमतौर पर उनकी नियोक्ता कंपनियों द्वारा प्रदान की जाती है। लेकिन एक व्यक्तिगत हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी द्वारा बीमा सुरक्षा प्राप्त लोगों की संख्या बेहद कम यानी लगभग 6% ही है। इसमें वित्त वर्ष 2013-14 के 13% के आंकड़े से 7% की गिरावट हुई है।
पिछले कुछ साल में बढ़ी हैं बीमारियां
पिछले कुछ वर्षों के दौरान जीवनशैली की बीमारियों से पीड़ित लोगों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। हाई कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और हायपर टेंशन जैसी बीमारियों से जूझने वाले लोगों की संख्या काफी बढ़ी है। इसके साथ ही ऐसी किसी भी बीमारी से शिकार लोगों की उम्र 45 से कम है, जो कि एक बड़ी चिंता वाली बात है। युवाओं को एसिडिटी से जुड़ी तकलीफें काफी हद तक प्रभावित करने लगी हैं, जिसके मामले गत 5 वर्षों के दौरान 35% तक बढ़े हैं।
मार्केट एक्सपर्ट्स के मुताबिक किसी विशेष हेल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट के एक्सक्लुजन और जटिलताएं ऐसे नए उत्पादों को खरीदे जाने की राह मुश्किल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पॉलिसी के एक्सक्लुजन और जटिलताओं के अलावा, इसकी क्लेम प्रक्रिया भी लोगों को अपने लिए इंश्योरेंस कंपनी चुनने में मदद करने के लिए बड़ी भूमिका निभाती है।
लोगों में हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर समझ और भरोसे की कमी
ऐसा अक्सर देखा गया है कि कई हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां सिर्फ अपनी क्लेम सेटलमेंट प्रक्रिया एवं अनुपात के कारण काफी अधिक बदनाम हैं। अधिकांश बीमा उपभोक्ताओं का यही मानना है कि भरोसे की कमी, पॉलिसी की कीमत और जटिलताएं ही उन्हें एक हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने से रोकने वाले आम कारण हैं। अगर कोई भी बीमा कंपनी इन 3 मुद्दों पर काम करे, तो उपभोक्ता भी इन कंपनियों पर अधिक भरोसा जताना शुरु करेंगे।
उपभोक्ताओं का विश्वास जीतने का एकमात्र रास्ता यही होगा कि सभी इंश्योरेंस कंपनियां एक स्टैंडर्ड हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी शुरु करें जो किफायती होने के साथ ही सभी लोगों के लिए उपलब्ध भी रहे। एक स्टैंडर्ड प्रोडक्ट उपभोक्ताओं के लिए हेल्थ इंश्योरेंस को समझने और अन्य उत्पादों के साथ उसकी तुलना करना आसान बनाएगा और आगे चलकर अलग-अलग कंपनियों के बीच हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों को पोर्ट करना सुविधाजनक और आसान भी बनाया जा सकेगा।
(ये लेख अमित छाबडा, हेड - हेल्थ इंश्योरेंस, पॉलिसीबाज़ार.कॉम द्वारा लिखा गया है।)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।)