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Morgan Stanley ने घटाया भारत का GDP ग्रोथ रेट अनुमान, 2022-23 में 7.9 प्रतिशत रह सकती है विकास दर

Updated Mar 13, 2022 | 14:39 IST

अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी मॉर्गन स्टेनली (Morgan Stanley) ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 7.9 प्रतिशत कर दिया है।

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Morgan Stanley ने घटाया भारत का GDP ग्रोथ रेट अनुमान
मुख्य बातें
  • मॉर्गन स्टेनली ने 2022-23 के लिए भारत की अनुमानित वृद्धि दर को घटाया
  • मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव की वजह से बाहरी जोखिम बढ़ेंगे -मॉर्गन स्टेनली
  • मौजूदा घटनाक्रम की वजह से मुद्रास्फीतिजन्य मंदी की भी आशंका

नई दिल्ली: अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान को आधा प्रतिशत घटाकर 7.9 प्रतिशत कर दिया है। इसके साथ ही मॉर्गन स्टेनली ने खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर छह प्रतिशत कर दिया है। उसका अनुमान है कि देश का चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत पर पहुंच जाएगा। मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि चक्रीय पुनरुद्धार का चक्र जारी रहेगा, लेकिन यह हमारे पिछले अनुमान से नरम रहेगा। मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव की वजह से बाहरी जोखिम बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था गतिहीन मुद्रास्फीति की ओर बढ़ेगी।’

महंगाई से निवेश होगा प्रभावित

गतिहीन मुद्रास्फीति में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटती है, लेकिन इसके साथ ही महंगाई बढ़ती है।रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत तीन चीजों....कच्चे तेल और अन्य जिंसों के ऊंचे दाम, व्यापार और अन्य सख्त वित्तीय परिस्थितियों आदि से प्रभावित हो रहा है जिससे कारोबार और निवेश की धारणा प्रभावित हो रही है।’ मॉर्गन स्टेनली ने कहा, ‘कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से हम 2022-23 के लिए अपने वृद्धि दर के अनुमान को आधा प्रतिशत घटाकर 7.9 प्रतिशत कर रहे हैं।

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मुद्रास्फीति का बढ़ेगा दवाब

इसके अलावा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर छह प्रतिशत कर रहे हैं। चालू खाते का घाटा बढ़कर जीडीपी के तीन प्रतिशत पर पहुंच सकता है, जो इसका 10 साल का ऊंचा स्तर होगा।’रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपनी कच्चे तेल की 85 प्रतिशत जरूरत आयात से पूरी करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम एक समय 140 डॉलर प्रति बैरल के 14 साल के उच्चस्तर पहुंचने के बाद कुछ नीचे आए हैं। भारत को कच्चे तेल के लिए अधिक भुगतान करना होगा। इससे मुद्रास्फीतिक दबाव बढ़ेगा।

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