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साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाना रतन टाटा की सबसे बड़ी गलती थी, 'सुप्रीम' टिप्पणी

Updated Mar 27, 2021 | 10:47 IST

रतन टाटा-साइरस मिस्त्री विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि साइरस को टाटा संस का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाना उनकी जिंदगी की बड़ी गलती थी।

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रतन टाटा- साइरस मिस्त्री विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य बातें
  • रतन टाटा-साइरस मिस्त्री विवाद में टाटा की जीत
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाना टाटा की सबसे बड़ी गलती
  • शेयर विवाद के लिए लीगल रूट के जरिए सुलझाने का सुझाव

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने शुक्रवार देश के सबसे बड़े उद्योगपति रतन टाटा के उस फैसले को सही ठहराया जिसमें टाटा संस के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन पद से हटा दिया था। इसके साथ ही शपूर पलोनजी ग्रुप के आरोपों को भी खारिज कर दिया। लेकिन इससे भी बड़ी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाना रतन टाटा की सबसे बड़ी गलती थी। 

कानूनी तरीकों से शेयर विवाद करें दूर
शपूर पलोनजी की उस याचिका को भी अदालत ने खारिज कर दिया जिसमें आरोप था कि टाटा छोटे शेयरधारकों के हित के खिलाफ काम करते हैं। इसके लिए वो परेशान करने वाली नीतियों को अपनाते हैं। अदालत ने कहा इस समय वो किसी उचित हर्जाने के संबंध में कोई फैसला नहीं कर सकते हैं। अच्छा है कि इस संबंध में दोनों पक्ष आर्टिकल 75 के जरिए मौजूद कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करें।

सुप्रीम कोर्ट की दिलचस्प टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबड़े और जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस राम सुब्रमण्यम ने अपने 282 पेज के फैसले में हैरानी जताई कि किस तरह से नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ने नियमों की अनदेखी करते हुए किस तरह से टाटा संस के चेयरमैनशिप के लिए मुहर लगा दी जबकि उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका था। अदालत ने कहा कि वास्तव में आज यह माना जा सकता है कि 16 मार्च 2012 को जब साइरस मिस्त्री को टाटा संस का एग्जीक्यूटिव चेयरमैन बनाया गया वो सबसे गलत फैसला था। अदालत ने कहा कि यह अपने आप में विरोधभास है कि उस शख्स ने आरोप लगाया जो सिर्फ 18.37 फीसद की भागीदारी के बाद टाटा संस का चेयरमैन बनता है वो उसी बोर्ड के बारे में परेशान करने वाली नीतियों का जिक्र करता है जिस बोर्ड ने उसे बड़ी जिम्मेदारी दी।


अदालत ने कहा कि दुर्भाग्य से साइरस मिस्त्री ने उसी घर को आग लगा दी जिसे संभालने और सहेजने की जिम्मेदारी दी गई थी। लिहाजा किसी भी शख्स को जब इस तरह की पृष्ठभूमि में हटाया जाता है तो उसे दुर्भावनापूर्ण या परेशान करने वाला नहीं कहा जा सकता है। मिस्त्री ने जब जिम्मेदारी संभाली तो खुद यह कहा था कि वो रतन टाटा के गाइडेंस पर कामकाज को आगे बढ़ाएंगे। जब चेयरमैन बनने के बाद साइरस मिस्त्री ने खुद रतन टाटा को चेयरमैन एमिरट्स नामित किया उस केस में एसपी ग्रुप यह नहीं कह सकता कि वो शैडो डॉयरेक्टर थे। 

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