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अमेरिका और पश्चिमी देशों की PM किसान जैसी स्कीम पर नजर,जानें माजरा

Updated Jun 16, 2022 | 14:57 IST

PM Kisan Samman Nidhi Scheme: जीडीपी के मुकाबले भारत 0.6 फीसदी, यूरोपीय संघ 0.6 फीसदी और अमेरिका 0.5 फीसदी सब्सिडी कृषि क्षेत्र में दे रहा है। लेकिन अगर देशों की जीडीपी और किसानों की संख्या देखा जाय तो अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश भारत की तुलना में कहीं ज्यादा राशि सब्सिडी के रुप में खर्च कर रहे हैं।

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WTO में उठा कृषि सब्सिडी का मुद्दा
मुख्य बातें
  • जेनेवा में WTO की बैठक में कृषि सब्सिडी को खत्म करना प्रमुख मुद्धा रहा।
  • भारत सरकार का दावा है कि विकासशील देशों की तुलना में कुछ विकसित देशों में यह अंतर 200 गुना से अधिक है।
  • भारत कृषि सब्सिडी खत्म करने का विरोधी रहा है।

WTO Meeting: एक बार फिर अमेरिका और पश्चिमी देशों की भारत जैसे देशों की सब्सिडी पर टेढ़ी नजर है। इन देशों को भारत जैसे विकासशील देशों द्वारा अपने किसानों और दूसरी खाद्यान्न सब्सिडी देना पसंद नहीं आ रहा है। और वह लगातार दबाव डाल रहे हैं कि भारत और दूसरे देश, सब्सिडी को खत्म कर दें। पश्चिमी देशों का आरोप है कि सब्सिडी देकर, किसानों को भारत और दूसरे देश कम कीमत में कृषि उत्पादों को बेचने का मौका दे रहे हैं। जिससे अमेरिकी और पश्चिमी देशों के किसानों को नुकसान हो रहा है। लेकिन अगर अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा अपने किसानों की सब्सिडी देखी जाय तो वह भारत से कहीं ज्यादा राशि सब्सिडी के रूप में खर्च कर रहे हैं। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने जेनेवा में हुई WTO की बैठक में कहा है कि विकसित देश अधिकतर विकासशील देशों की क्षमता के मुकाबले 200 गुना से अधिक समर्थन, सब्सिडी के रूप में अपने किसानों को दे रहे हैं।

क्या है मामला 

असल में जेनेवा में 12 जून से 15 जून तक WTO की बैठक में कृषि सब्सिडी को खत्म करना प्रमुख मुद्धा रहा। अमेरिका, यूरोप और दूसरे विकसित देश कृषि सब्सिडी खत्म करने का दबाव बना रहे हैं। हालांकि भारत ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। भारत में कृषि सब्सिडी के नाम पर फसलों पर MSP, PM किसान सम्मान निधि के तहत सालाना दिए जाने वाले 6 हजार रुपए और यूरिया, खाद और बिजली पर दी जाने वाली प्रमुख सब्सिडी दी जाती है। 

विकसित देशों के प्रस्ताव पर वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि विकासशील देशों के न्यूनतम समर्थन अधिकारों द्वारा व्यापार को खराब करने के नाम पर डरना बेकार है।डब्‍ल्‍यूटीओ को मिली जानकारी के अनुसार, विभिन्न देशों द्वारा प्रदान की जा रही वास्तविक प्रति किसान घरेलू सहायता में भारी अंतर है। विकासशील देशों की तुलना में कुछ विकसित देशों में यह अंतर 200 गुना से अधिक है। इसलिए विकसित देश अधिकतर विकासशील देशों की क्षमता के मुकाबले 200 गुना से अधिक समर्थन दे रहे हैं। इसके बावजूद कुछ सदस्य कम आय और कम संसाधन वाले गरीब किसानों को मिल रहे मामूली सरकारी मदद से भी वंचित करने पर जोर दे रहे हैं।

अमेरिका, यूरोप सब्सिडी देने में पीछे नहीं

विडंबना यह है कि जिस सब्सिडी को खत्म करने का अमेरिका और यूरोप के देश दबाव बना रहे हैं। ये देश अपने किसानों को खुद ही भारी मात्रा में सब्सिडी प्रदान  कर रहे हैं। statista डॉट कॉम की रिपोर्ट के अनुसार, जीडीपी के मुकाबले भारत 0.6 फीसदी, यूरोपीय संघ के देश 0.6 फीसदी और अमेरिका 0.5 फीसदी सब्सिडी कृषि क्षेत्र में दे रहा है। लेकिन अगर देशों की जीडीपी और किसानों की संख्या देखा जाय तो अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश भारत की तुलना में कहीं ज्यादा राशि सब्सिडी के रुप में खर्च कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका प्रति किसान को 50 हजार डॉलर तक सब्सिडी प्रदान कर रही है। जबकि भारत में यह करीब 200 डॉलर है।

स्रोत-  statista डॉट कॉम

अगर सब्सिडी खत्म हो जाय तो क्या होगा

अगर भारत और दूसरे विकासशील देश विकसित देशों की बात मान लेते हैं,  तो भारत में किसानों को एमएसपी, पीएम किसान सम्मान निधि जैसे स्कीम चलाने से लेकर उर्वरक सब्सिडी आदि देना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में किसानों के लिए खेती करना मुश्किल हो जाएगा और उनकी लागत बढ़ जाएगा। जिससे वह विकसित देशों के किसानों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे। और विकसित देशों की बड़ा बाजार मिल जाएगा, जबकि विकासशील देशों के किसानों की आय प्रभावित होगी।

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