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News ki Pathshala : इंश्योरेंस के बाद भी जेब से पैसे क्यों दें? आपका पैसा वसूलने वालों की क्लास

Updated Aug 06, 2021 | 22:09 IST

न्यूज की पाठशाला में इंश्योरेंस कंपनियों की क्लास लगाई।  कोविड केस के हज़ारों क्लेम क्यों अटकाए? पहले कोरोना से लड़े फिर सिस्टम से लड़ें?

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मुख्य बातें
  • क्लेम अटकाएंगे, बीमा किस काम का?
  • कोविड केस के हजारों क्लेम क्यों अटकाए?
  • कंपनियों से आपका पैसा वसूलने वाली क्लास

इंश्योरेंस कंपनियों का काम इतना इनश्योर करना रह गया है कि आपका पैसा उनके अकाउंट में इन हो जाए ये श्योर कर दो बस। उसके बाद आपको सुविधा मिले न मिले ये उनकी सिरदर्दी नहीं है। कोरोना की दूसरी लहर के वक्त इलाज कराने में बड़े-बड़े बिल बन गए। अस्पतालों ने लूटा। बीमा कंपनियां क्लेम नहीं क्लियर कर रही हैं। कोविड विक्टिम फैमिली कर्ज में फंस गई हैं। पहले कोरोना से लड़े फिर सिस्टम से लड़े
सवाल है बीमा के बाद भी जेब से पैसे क्यों दें?

एक रिपोर्ट के मुताबिक बीमा कंपनियों को 2020 में 

क्लेम- 9,86, 366 
कीमत- 14560 करोड़
रिजेक्ट हो गए- 41,763
रिजेक्ट क्लेम की कीमत- 361 करोड़
पेंडिंग क्लेम- 95, 569
कीमत- 6366 करोड़ रुपए

2021 (अप्रैल से जुलाई)

क्लेम- 12, 29, 538
कीमत- 13894 करोड़
रिजेक्ट हुए- 49452
रिजेक्ट क्लेम की कीमत- 389 करोड़
पेंडिंग क्लेम- 3 लाख 31 हजार 82
कीमत- 10603 करोड़ रुपए

बीमा कंपनियों ने कोविड क्लेम अटकाए!

3,30,000 क्लेम्स              
10,603 करोड़ रुपये 

अप्रैल में दिल्ली हाईकोर्ट का एक आदेश आया था। कोर्ट ने इंश्योरेंस रेगुलेटर IRDA को कहा था कि बीमा कंपनियों को निर्देश जारी करे। कोरोना मरीजों के बिल 30 से 60 मिनट में क्लियर करें। बिल को मंजूरी देने के लिए 6-7 घंटे नहीं लगने चाहिए। इस पर इरडा ने बीमा कंपनियों को निर्देश दिए थे। एक घंटे के अंदर ही कोविड केस के क्लेम निपटाए। लेकिन यहां तो तीन-तीन, चार-चार महीने से क्लेम पेंडिंग हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि IRDA बीमा कंपनियों को निर्देश जारी करे कि कोविड मरीजों के बिल 60 मिनट में पास हो। बिल मंजूर करने में 6-7 घंटे नहीं ले सकते। हाईकोर्ट के आदेश पर IRDA के निर्देश बीमा कंपनियां 1 घंटे में क्लेम निपटाएं।

बीमा कंपनियां आसानी से क्लेम पास नहीं कर रही हैं। लोग परेशान हो रहे हैं, उधार लेकर इलाज करवाया था। बड़े बिल को बीमा कंपनी अटका देती हैं। फिक्स्ड इंश्योरेंस पॉलिसी में एकमुश्त भुगतान की बात थी। वो नहीं हो रहा है। हमने कई परिवारों से बात की है। एक पीड़ित ने कहा कि जब मुझे कोरोना हुआ तो मैं क्लेम किया तो लेकिन उलटे सीधे बहाने बनाकर मेरे क्लेम को नो क्लेम कर दिया गया। ये कंपनियां सही नहीं कर रही हैं। पॉलिसी क्यों बेचते हैं, पब्लिक को उल्लू क्यों बनाते हैं।

कोरोना की दूसरी लहर में लोगों की सेविंग्स खत्म हो गईं थी। इलाज के लिए उधार लेना पड़ा इलाज के लिए गहने बेचने पड़े। इलाज के लिए गहने गिरवी रखने पड़े। आपको एक और आंकड़ा बताते हैं। पीएफ का पैसा रिटायरमेंट के लिए होता है। लोगों को पीएफ का पैसा निकालना पड़ा। पिछले साल अप्रैल से इस साल मई तक 72 लाख लोगों ने कोविड एडवांस के तौर पर पीएफ से साढ़े 18 हजार करोड़ रुपए निकाले थे। पूरे कोविड काल में अब तक साढ़े 3 करोड़ लोगों ने पीएफ से करीब एक लाख 25 हजार करोड़ रुपए निकाले।

बीमा कंपनियां किस आधार पर कोविड क्लेम रिजेक्ट कर रही हैं?

1- आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट नेगेटिव 
2- सीटी स्कैन का स्कोर 8 तक होने पर
3- एडमिट होने की जरूरत नहीं थी
4-ऑक्सीजन लेवल 94 या उससे ऊपर होने पर।
5- को-मॉर्बिडिटी की स्थिति में। 
6- पॉलिसी की लिस्टेड बीमारियों में कोरोना का ना होना।

लेकिन हमने इस पर डॉक्टर्स से बात की। उस बातचीत के आधार पर हमें ये पता चला।

1-सीटी वैल्यू, ऑक्सीजन लेवल के आधार पर क्लेम रिजेक्ट करना मनमानी है।
2- करीब 30 परसेंट ऐसे मरीज एडमिट हुए थे, जिनकी सीटी वैल्यू 8 से कम है।
3-ज़्यादा ऑक्सीजन लेवल वाले मरीजों को भी एडमिट किया गया था।
4- मरीजों की हालत देखकर डॉक्टर एडमिट करने की सलाह देते हैं।

क्लेम ना देने के बीमा कंपनियों के तर्क

1- आरटी-पीसीआर की रिपोर्ट नेगेटिव।
2- सीटी स्कैन का स्कोर 8 या उससे कम।
3- एडमिट होने की जरूरत नहीं थी।
4-ऑक्सीजन लेवल 94 या उससे ऊपर।
5- को-मॉर्बिडिटी की स्थिति में। 
6- लिस्टेट बीमारियों में कोरोना नहीं।

दो तरह से इंश्योरेंस क्लेम का पेमेंट होता है। 

पहला तो कैशलेस
जिसमें अस्पताल जाने पर बिल का भुगतान सीधे बीमा कंपनी करती है
दूसरा तरीका है 
बिल खुद से भरकर उसका भुगतान आप बीमा कंपनी से लेते हैं।
कोरोना काल की दूसरी लहर ने अस्पतालों ने कैशलेस से मना किया।
बीमा कंपनियां भी आनकानी कर रही थीय़

इसी वजह से वित्त मंत्री निर्मला सीतरमण ने 22 जुलाई को IRDA के चेयरमैन से बात की थी और कहा था कि इस पर तुरंत एक्शन लिया जाए।

कोरोना काल में लोगों ने खूब बीमा पॉलिसी खरीदी एक अनुमान के मुताबिक 30 परसेंट ज्यादा पॉलिसी बिकी बीमा कंपनियों के शेयर की वैल्यू बढ़ गई लेकिन अब बीमा कंपनियां क्लेम नहीं क्लियर कर रही हैं। इंश्योरेंस प्रीमियम 10% बढ़ा दिया है।

देश में 58 बीमा कंपनियां हैं।
इसमें 24 कंपनियां लाइफ इंश्योरर हैं।
34 कंपनियां नॉन-लाइफ इंश्योरर हैं।
इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स का मार्केट करीब 7 लाख 60 हजार करोड़ का है।
23 प्राइवेट लाइफ इंश्योरेंस कंपनियों ने इस साल अप्रैल से जून तक 52 हजार 725 करोड़ रुपये का प्रीमियम लिया है।

कोरोना के चलते सावधानी बरत रहीं कंपनियां

कोरोना केसेज और इसके चलते होने वाली मौतों में बढ़ोतरी के चलते बीमा कंपनियां अब सावधान बरत रही हैं और उनमें से कुछ वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट भी मांगने लगी हैं और मेडिकल जांच को भी सख्त किया गया है। पॉलिसीबाजारडॉटकॉम के प्रमुख (टर्म इंश्योरेंस) सज्जा प्रवीण चौधरी का कहना है कि कोरोना से ठीक होने के बाद स्वास्थ्य की क्या स्थिति रहने वाली है, इसे लेकर अभी तक कोई स्पष्टता नहीं है तो कंपनियां ऐसे लोगों को पॉलिसी बेचने में सावधानी बरत रही हैं। कोरोना से ठीक हुए लोगों को टर्म लाईफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदने में समय लग सकता है क्योंकि कंपनियां उन्हें इस पॉलिसी को बेचने में सावधानी बरत रही है जिन्हें या जिनके परिवार में पिछले छह महीने में कोई कोरोना मरीज रहा हो।

एडेलवेइस टोकियो लाईफ इंश्योरेंस के एग्जेक्यूटिव डायरेक्टर सुभ्रजीत मुखोपाध्याय के मुताबिक कोरोना के चलते बीमा कंपनियां सावधानी बरत रही हैं लेकिन लोग घर से बाहर निकलकर मेडिकल टेस्ट नहीं करवाना चाह रहे हैं। ऐसे में बीमा कंपनियों को नए मेडिकल रिपोर्ट्स की अनुपस्थिति में बिना रिस्क का आकलन किए पॉलिसी बेचने में दिक्कतें आ रही हैं। एक सर्वे के मुताबिक कोविड के दौर में घर चलाने के लिए 23% लोगों ने उधार/ कर्ज लिया। 5% लोगों ने जमीन बेची। 7% लोगों ने गहने बेचे।8% लोगों ने कीमती सामान बेचा।

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