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- कपिल देव का वो कैच जिसने भारतीय क्रिकेट को दी नई पहचान
- उस एक कैच ने बदल दी धारणाएं, चैंपियन खिलाड़ी को भेजा पवेलियन
- विश्व कप 1983 फाइनल का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट
नई दिल्लीः हर क्रिकेट मैच, हर टूर्नामेंट, हर सीरीज में कोई ना कोई ऐसा पल आता है जो आप कभी भूल नहीं पाते। वो ऐसा टर्निंग प्वाइंट होता है जो ना सिर्फ मैच की स्थिति बदलता है, बल्कि इतिहास भी रचता है। ऐसा ही एक पल आया था आज से ठीक 37 साल पहले 1983 विश्व कप फाइनल के दौरान। उस विश्व कप में भारत को कोई जीत का दावेदार मान नहीं रहा था, लेकिन कपिल की कप्तानी वाली टीम ने इतिहास रचते हुए दो बार की विश्व विजेता वेस्टइंडीज को मात दे पहली बार विश्व कप अपने नाम किया। उस फाइनल मैच में कपिल देव का एक कैच टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ था जिसे आज भी क्रिकेट फैंस याद करते हैं।
वेस्टइंडीज के खिलाफ 25 जून 1983 को इंग्लैंड के लॉर्ड्स मैदान पर खेले गए उस मैच में भारतीय टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए कुल 183 रनों का स्कोर खड़ा किया था। वेस्टइंडीज के पास एक से एक महान बल्लेबाज मौजूद थे, वे दो बार विश्व कप जीत चुके थे, ऐसे में भारत की जीत मुश्किल लग रही थी, लेकिन फिर मैच के बीच में जब कपिल देव ने महान कैरेबियाई बल्लेबाज विव रिचर्ड्स का पीछे दौड़ लगाते हुए एक यादगार कैच लपका, उसने वेस्टइंडीज को झकझोर कर रख दिया। उसके बाद कैरेबियाई पारी ढहती चली गई थी।
उस बेहतरीन कैच का वीडियो (सौ. यू-ट्यूब)
कीर्ति आजाद ने भी बयां किया वो पल..
उस भारतीय टीम के एक अहम सदस्य कीर्ति आजाद भी थे। आज उस यादगार जीत की 37वीं सालगिरह को याद करते हुए उन्होंने बताया कि 183 रनों का छोटा स्कोर बनाने के बाद ड्रेसिंग रूम में लोगों का मूड कैसा था। उन्होंने कहा, 'हम सभी जानते थे कि विंडीज की टीम को देखते हुए वो स्कोर काफी नहीं है। कपिल ने कहा कि चलो लड़ते हैं। यह लड़ने लायक टोटल है। हमने रन बनाए हैं और उन्हें बनाने हैं। इसलिए लड़ते हैं।'
उन्होंने कहा, 'इस तरह ये हुआ। और इसके बाद कपिल द्वारा पकड़ा गया विवियन रिचडर्स का कैच, उसने मैच को बदल दिया था। वहां से विकेट गिरते रहे और हम बल्लेबाजों पर दबाव बनाते रहे। हमें पता था कि अगर हम विंडीज के बल्लेबाजों पर दबाव बनाएंगे तो वह दब जाएंगे।' ठीक वैसा ही हुआ और कमजोर मानी जाने वाली भारतीय टीम ने दिग्गज कैरेबियाई टीम को हराकर ना सिर्फ विश्व कप जीता बल्कि भारतीय क्रिकेट को नई पहचान दी। उसके बाद भारतीय क्रिकेट ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।