- डेक्कन चार्जर्स के खिलाफ कानूनी लड़ाई में बीसीसीआई की बड़ी जीत
- कोर्ट ने 4800 करोड़ रुपये के भुगतान पर रोक लगाई
- आईपीएल के पांचवें सत्र में रद्द हुई थी डेक्कन चार्जर्स टीम
बंबई उच्च न्यायालय ने मध्यस्थ के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) को इंडियन प्रीमियर लीग से 2012 में डेक्कन चार्जर्स फ्रेंचाइजी टीम को कथित तौर पर गैरकानूनी रूप से बर्खास्त करने के लिए उसके स्वामित्व वाले डेक्कन क्रोनिकल होल्डिंग्स लिमिटेड (डीसीएचएल) को 4800 करोड़ रुपये का भुगतान का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति गौतम पटेल की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने पिछले साल जुलाई के आदेश को खारिज कर दिया। यह आदेश उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एकल मध्यस्थ ने दिया था जिसे यह सुनिश्चित करने को कहा गया था कि 2012 में आईपीएल के पांचवें सत्र के दौरान फ्रेंचाइजी को रद्द करना गैरकानूनी था या नहीं।
मध्यस्थ ने बर्खास्तगी को गैरकानूनी करार देते हुए बीसीसीआई को डीसीएचएल को 4814.67 करोड़ रुपये मुआवजे के अलावा 2012 से 10 प्रतिशत ब्याज का भुगतान करने को भी कहा था।
बीसीसीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बंबई उच्च न्यायालय के समक्ष कहा कि मध्यस्थ ने क्रिकेट बोर्ड और डीसीएचएल के बीच हुए अनुबंध के विपरीत कार्रवाई की। मेहता ने कहा कि मध्यस्थ ने बर्खास्तगी को गलत बताया जबकि डीसीएचएल ने अनुबंध की कई शर्तों का पालन नहीं किया था।
बुधवार के आदेश में न्यायमूर्ति पटेल ने भी कहा कि मध्यस्थ ने बिना दिमाग का इस्तेमाल किए इस मामले में कार्रवाई की। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि बीसीसीआई और डीसीएचएल के बीच अनुबंध में अन्य चीजों के साथ यह भी कहा गया है कि फ्रेंचाइजी अनुबंध तीन उल्लंघनों पर रद्द किया जा सकता है जिसमें खिलाड़ियों और स्टाफ को भुगतान नहीं करना, संपत्तियों पर शुल्क लगाना और दिवालियापन शामिल है।
पहले दो मामलों में सुधार की गुंजाइश थी लेकिन डीसीएचएल के इसे सुलझाने में नाकाम रहने पर उसकी फ्रेंचाइजी का अनुबंध रद्द हो सकता था। तीसरे नियम के उल्लंघन पर तुरंत बर्खास्तगी हो सकती थी। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में यह साबित नहीं हुआ कि तीन नियमों में से एक में भी सुधार करने की कोशिश की गई। अदालत ने कहा, ‘‘तीनों में से भी मामले में भरोसे के साथ नहीं दर्शाया गया कि सुधार किया गया या अब ऐसा नहीं है। तीनों चीजें जारी हैं। ’’