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राजीव शुक्ला ने कहा हम धोनी को नहीं देंगे विदाई मैच, क्योंकि...

Updated Aug 16, 2020 | 16:57 IST

आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के पूर्व चेयरमैन राजीव शुक्ला ने एमएस धोनी के लिए रांची में विदाई मैच के आयोजन के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया है। उन्होंने कहा है कि ऐसा किए जाने का सवाल ही नहीं उठता।

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एमएस धोनी

नई दिल्ली: टीम इंडिया के सबसे बड़े मैच विनर खिलाड़ी और कप्तान का मैदान के बाहर से विदा होना उनके प्रशंसकों को रास नहीं आ रहा है। कई पूर्व क्रिकेटरों को भी धोनी का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से इस तरह विदा होना नागवार गुजर रहा है। ऐसे में उनके गृह प्रदेश झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने धोनी के संन्यास का ऐलान करने के बाद बीसीसीआई से उनके लिए रांची में विदाई मैच आयोजित करने की अपील कर दी। 

हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा, देश और झारखण्ड को गर्व और उत्साह के अनेक क्षण देने वाले माही ने आज अंतराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया है। हम सबके चहेते झारखण्ड का लाल माही को नीली जर्सी पहने नहीं देख पायेंगे। पर देशवासियों का दिल अभी भरा नहीं। मैं मानता हूं हमारे माही का एक फेयरवेल मैच रांची में हो जिसका गवाह पूरा विश्व बनेगा। मैं बीसीसीआई से अपील करना चाहूंगा कि माही का एक फेयरवेल मैच कराया जाये जिसकी मेजबानी पूरा झारखण्ड करेगा।'

हेमंत सोरेन की धोनी के लिए विदाई मैच के आयोजन की मांग को आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ने सिरे से नकार दिया है। राजीव शुक्ला ने सोरेन की मांग का जवाब देते हुए कहा, धोनी ने कभी भी अपने लिए विदाई मैच आयोजित कराए जाने की इच्छा नहीं जताई। जबकि उन्होंने ऐसा नहीं किया है इसलिए ऐस तरह के मैच के आयोजन का सवाल ही नहीं उठता।'



बीसीसीसीआई को ही करनी होगी पहल
बीसीसीआई के लापरवाह रवैये की वजह से भारत के कई महान क्रिकेट खिलाड़ी विदाई मैच खेले बगैर अलविदा कह गए। सचिन तेंदुलकर के बाद केवल आशीष नेहरा को ही मैदान से विदा होने का मौका मिल सका। राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग, जहीर खान जैसे खिलाड़ियों से बोर्ड ने अपनी ओर से ऐसा करने के बारे में पूछा भी नहीं। देश को गौरान्वित करने वाले खिलाड़ियों की सम्मानजनक विदाई मिले। ये पहल तो बोर्ड को अपनी ओर से ही करनी होगी। राजीव शुक्ला जैसे क्रिकेट प्रशासकों को भी ये बात समझनी होगी कि खिलाड़ी खुद को विदाई दिए जाने के लिए मैच की आयोजन की बात नहीं कहेगा। अगर वो ये बात नहीं समझते हैं तो उनका सालों का राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव बेकार का है। 
(आलेख में लेखक के विचार व्यक्तिगत हैं) 

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