- दिलीप कुमार साहब का 98 की उम्र में हुआ निधन
- दिलीप कुमार ने मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में अंतिम सांस ली
- दिलीप कुमार की सिफारिश पर भारतीय टीम में इस क्रिकेटर को मिली थी जगह
नई दिल्ली: बॉलीवुड के महान कलाकार दिलीप कुमार का बुधवार को 98 की उम्र में निधन हो गया। ट्रेजेडी किंग के नाम से मशहूर दिलीप कुमार ने मुंबई के इंदुजा अस्पताल में सुबह 7:30 बजे अंतिम सांस ली। उनके डॉक्टर जलीला पारकर ने इस खबर की पुष्टि की है। दिलीप साहब का निधन ना केवल सिनेमा जगत बल्कि पूरे देश के लिए कभी ना पूरी होने वाली क्षति है। बता दें कि दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर में एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम युसुफ खान रखा था। उनके 11 भाई- बहन थे।
बॉलीवुड के जरिये दिलीप कुमार की छवि काफी दमदार बन चुकी थी। इसके अलावा उनका व्यवहार लोगों के दिलों में अपनी अलग जगह बना चुका था। दिलीप कुमार साहब का क्रिकेट के प्रति भी लगाव रहा है। वह इस खेल के चहेतों में से एक थे। दिलीप कुमार साहब के कारण ही एक भारतीय क्रिकेटर का करियर बन सका था। चलिए आपको पूरा किस्सा बताते हैं।
1983 विश्व कप टीम के सदस्य यशपाल शर्मा ने एक शो में खुलासा किया था कि उनका करियर दिलीप कुमार साहब के कारण ही बन पाया था। दिलीप कुमार की सिफारिश के बाद ही यशपाल शर्मा को टीम इंडिया में एंट्री मिली थी। यही वजह है कि यशपाल शर्मा के मन में दिलीप कुमार साहब के लिए असीम प्यार है। जब भी वह दिलीप साहब की तबीयत खराब होने की खबर सुनते थे तो असहज हो जाते थे।
मेरी जिंदगी युसूफ भाई ने बनाई: यशपाल शर्मा
शो के दौरान संदीप पाटिल ने बताया कि यशपाल शर्मा को क्रांति फिल्म बहुत पसंद थी। वह हर समय इसी फिल्म को देखते रहते थे। पाटिल ने बताया कि यशपाल के कारण हम अन्य फिल्में देख ही नहीं पा रहे थे। पाटिल ने बताया कि एक दिन हमने फोन का बहाना बनाकर यशपाल शर्मा को बाहर भेजा और टीवी ही गायब कर दी। तब यशपाल शर्मा से पूछा गया कि आपको क्रांति फिल्म इतनी पसंद क्यों है? इस पर 1983 विश्व कप चैंपियन टीम के सदस्य ने जवाब दिया, 'इसका एक किस्सा है। आप लोग दिलीप कुमार साहब को जानते हैं, मैं उन्हें युसूफ भाई कहता हूं। अगर क्रिकेट में मेरी जिंदगी बनाई है तो युसूफ भाई ने बनाई है।'
उन्होंने आगे कहा, 'मैं रणजी ट्रॉफी खेल रहा था। मैं किसी कंपनी के ग्राउंड में रणजी ट्रॉफी का नॉकआउट मैच खेल रहा था। उस ग्राउंड के डायरेक्टर युसूफ भाई थे। मुझे ये पता नहीं था। मैंने पहली पारी में शतक जमाया और दूसरी पारी में करीब 80 रन के आस-पास बना चुका था। तभी अचानक 3-4 गाड़ियां आईं। सफेद कपड़ों में कोई उतरा तो मुझे लगा कि कोई नेता होंगे। वह आए, उन्होंने मैच देखा। मेरा शतक पूरा हुआ तो युसूफ भाई ने तालियां बजाईं।'
युसूफ भाई ने की सिफारिश
यशपाल शर्मा ने आगे बताया, 'जब मैच खत्म हुआ तो एडमिनिस्ट्रेशन से आकर एक ने कहा कि आप चलिए, कोई मिलना चाहता है। मैं जब ऑफिस में गया तो वहां मेरे पास कहने को कुछ था ही नहीं। जब मैं अंदर पहुंचा तो सामने युसूफ भाई खड़े थे। उन्होंने हाथ मिलाया और कहा कि मुझे लगता है तेरे में दम है। मैं किसी से बात करूंगा।'
'उन्होंने राजसिंह डुंगरपुर से बातचीत की थी कि पंजाब का एक लड़का है। मैंने उसको बल्लेबाजी करते देखा। उन्होंने बीसीसीआई में भी बात की। बाद में राजसिंह डुंगरपुर ने ही बताया कि तुम्हारी सिफारिश युसूफ भाई ने लगाई थी।' बता दें कि कपिल देव के नेतृत्व वाली 1983 विश्व कप चैंपियन भारतीय टीम के अहम सदस्य थे यशपाल शर्मा।