- 2 अप्रैल 2011 को टीम इंडिया ने धोनी की कप्तानी में जीता था विश्व खिताब
- धोनी ने खेली थी कप्तानी पारी और छक्के के साथ दिलाई थी टीम इंडिया को जीत
- गंभीर ने खेली थी 97 रन की पारी, लेकिन धोनी को मिला मैन ऑफ द मैच का खिताब
नई दिल्ली: 9 साल पहले आज ही के दिन मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में उस वक्त खामोशी छा गई थी जब सचिन तेंदुलकर विश्व कप के फाइनल में लसिथ मलिंगा की गेंद पर आउट होकर निराशा के साथ पवेलियन की ओर वापस लौट रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो पूरे स्टेडियम में बैठे दर्शकों को सांप सूंघ गया हो हालात ऐसे थे कि अगर उस दौरान सुई भी गिर जाती तो वो भी सुनाई दे जाती।
वानखेड़े में छा गई थी खामोशी
उस दौरान सबके मन में एक ही बात चल रही थी कि लगता है सचिन तेंदुलकर को विश्व चैंपियन टीम का सदस्य रहे बगैर क्रिकेट को अलविदा कहना पड़ेगा। रिकॉर्ड छठी बार विश्व कप में शिरकत कर रहे सचिन के लिए भी व्यक्तिगत रूप से ये पल बेहद मुश्किल था। उनके मन में भी यही बात थी कि घरेलू मैदान पर विश्वविजय का सपना अधूरा रह जाएगा।
पहले बल्लेबाजी करते हुए श्रीलंका ने महेला जयवर्धने(103) की शानदार शतकीय पारी की बदौलत भारत के सामने जीत के लिए 275 रन का लक्ष्य रखा था। ऐसे में भारतीय टीम पारी की दूसरी गेंद पर वीरेंद्र सहवाग और सातवें ओवर में सचिन तेंदुलकर का विकेट गंवाकर मुश्किल में आ गई थी। ऐसे में किसी ने ये ध्यान नहीं दिया की सचिन के बाद विराट कोहली बल्लेबाजी के लिए उतरे हैं।
विराट ने गंभीर के साथ संभाली पारी
सचिन के आउट होने के बाद दिल्ली के दो दबंग बल्लेबाजों गौतम गंभीर और विराट कोहली ने भारत की डगमगाती नैया को संभाला और टीम को 100 रन के पार ले गए। लेकिन ऐसे में तिलकरत्ने दिलशान ने अपनी ही गेंद पर विराट का शानदार कैच लपककर इस साझेदारी को तोड़ दिया। ऐसे में टीम इंडिया फिर से मुश्किल में दिखाई देने लगी।
धोनी को युवराज से पहले आता देख हुआ अचरज
लेकिन तभी लोगों की आंखे पवेलियन की ओर मुड़ गईं जहां लोगों को टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर रहे युवराज को बल्लेबाजी के लिए आता देखना चाहती थीं लेकिन अचानक से कप्तान धोनी मैदान की ओर बल्ला थामे आते दिखे। ऐसे में हर किसी के मन में सवाल उठा कि अब तक टूर्नामेंट में बल्ले से नाकाम रहे धोनी ने ये कदम क्यों उठाया। लेकिन धोनी के धीरज पर पूरे देश को भरोसा था।
गंभीर-धोनी के बीच हुई शतकीय साझेदारी
धोनी जब बल्लेबाजी के लिए उतरे तब तक गंभीर के पैर पिच पर अच्छी तरह जम चुके थे। ऐसे में धोनी ने मुथैया मुरलीधरन की फिरकी के सामने दीवार की तरह अड़ गए और इस दिग्गज गेंदबाज को कोई विकेट नहीं हासिल करने दिया। गंभीर का धोनी ने साथ दिया और एक बार फिर रन गति को पर लग गए। दोनों ने टीम को 200 रन के पार पहुंचा दिया। लेकिन 42वें ओवर में थिसारा परेरा ने गंभीर को शतक पूरा नहीं करने दिया। 97 रन बनाकर गंभीर पवेलियन लौट गए। ऐसे में धोनी का साथ देने युवराज मैदान पर उतरे।
धोनी ने जड़ा विजयी छक्का
धोनी और युवराज की जोड़ी ने मिलकर टीम इंडिया को दूसरी बार विश्व खिताब जीत के करीब पहुंचा दिया। युवराज फॉर्म में लौट चुके धोनी का दूसरे छोर से साथ देते रहे और कैप्टन कूल ने टीम को जीत के मुहाने पर पहुंचाने के बाद नुवान कुलशेखरा की गेंद पर वो यादगार छक्का जड़ दिया। जिसे देखकर हर भारतीय का दिल गर्व से चौड़ा हो गया। धोनी 79 गेंद में 91 रन बनाकर और युवराज सिंह 24 गेंद में 21 रन बनाकर नाबाद रहे।
सचिन ने कहा सपने पूरे होते हैं'
धोनी के छक्का जड़ते ही सचिन साथी खिलाड़ियों के साथ मैदान पर भागे जहां जाकर उन्होंने युवराज और धोनी को गले लगा लिया। पूरी टीम इंडिया के आंखों में खुशी के आंसू दिखाई पड़ रहे थे और कोई भी उन्हें छिपाने की कोशिश नहीं कर रहा था। ऐसे में सचिन ने कहा, सपने वाकई में पूरे होते हैं मैंने एक सपने के पूरे होने का 20 साल इंतजार किया। साल 1992 में पहली बार विश्व कप में शिरकत करने वाले सचिन 1996 में सेमीफाइनल, 2003 में फाइनल तक पहुंचे थे लेकिन उनका विश्व विजय का सपना पूरा नहीं हो सका था।
धोनी ने इसलिए किया युवराज से पहले बल्लेबाजी का निर्णय
धोनी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि युवराज को मुरलीधरन का सामना करने में परेशानी होती है। वो उनके सामने बल्लेबाजी करने में असहज महसूस करते हैं। चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेलते हुए धोनी ने मुरलीधरन की गेंदों पर नेट्स पर जमकर अभ्यास किया था ऐसे में उनके लिए उनका सामना करना युवराज की तुलना में ज्यादा आसान था। मुरली की गेंद वानखेड़े में टर्न हो रही थी ऐसे में यदि युवराज धोनी से पहले बल्लेबाजी करने आते और आउट होकर पवेलियन लौट जाते तो संभवत: भारत का विश्व विजय का सपना अधूरा रह जाता।