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देश के लिए सबसे बड़ा अवॉर्ड जीतने के बाद भावुक हुए सचिन तेंदुलकर, पढ़‍िए भाषण में क्‍या कहा

Updated Feb 18, 2020 | 12:59 IST

Sachin Tendulkar win Laureus Award: विश्‍व कप 2011 जीतने के बाद तेंदुलकर को टीम के साथियों ने कंधों पर बैठाकर पूरे वानखेड़े स्टेडियम का चक्‍कर लगाया था। भारत ने श्रीलंका को 6 विकेट से हराकर खिताब जीता था।

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सचिन तेंदुलकर
मुख्य बातें
  • सचिन तेंदुलकर ने सोमवार को बर्लिन में लॉरियस स्‍पोर्टिंग मोमेंट अवॉर्ड जीता
  • तेंदुलकर ने मंडेला के शब्‍दों को याद करते हुए कहा, खेल में एकजुट और एकता कायम करने की ताकत है
  • तेंदुलकर ने लॉरियस अवॉर्ड्स सेरेमनी में कहा, मुझे लगता है कि यह ट्रॉफी हम सभी के लिए है

बर्लिन: भारत के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को सोमवार को पिछले 20 सालों में सर्वश्रेष्‍ठ खेल पल के लिए लॉरियस अवॉर्ड से सम्‍मानित किया गया। महान टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर ने विजेता के नाम की घोषणा की और ऑस्‍ट्रेलिया के पूर्व कप्‍तान स्‍टीव वॉ ने ट्रॉफी सचिन तेंदुलकर को सौंपी। 2011 विश्‍व कप जीतने के बाद तेंदुलकर को विराट कोहली, यूसुफ पठान, सुरेश रैना, हरभजन सिंह और अन्‍य टीम साथियों ने अपने कंधें पर बैठाकर पूरे वानखेड़े स्‍टेडियम का चक्‍कर लगाया था। भारत ने 2 अप्रैल 2011 को विश्‍व कप के फाइनल में श्रीलंका को 6 विकेट से मात देकर खिताब जीता था।

प्रतिष्ठित ट्रॉफी लेने के बाद तेंदुलकर भावुक हो गए। उन्‍होंने अपने भाषण में कहा, 'मैं लॉरियस अवॉर्ड सदस्‍यों को यह याद देने के लिए धन्‍यवाद देना चाहूंगा। मेरे ख्‍याल से यह बहुत विशेष है। साथ ही जिन लोगों ने वोट किया और माना कि स्‍क्रीन पर दिखने वाले इस पल को वोट करना चाहिए, उन सभी का शुक्रिया। यह अतुल्‍नीय है। विश्‍व कप जीतने की खुशी का एहसास शब्‍दों में बयां करने से कम है। कितनी बार आपको ऐसा इवेंट मिलता है जहां कोई मिश्रित विचार नहीं होते। बहुत ही कम पूरा देश इसका जश्‍न मना रहा होता है।'

उन्‍होंने आगे कहा, 'बहुत दुर्लभ जब कोई विचार नहीं होते। हर कोई साथ बैठकर जश्‍न मना रहा है। यह ध्‍यान दिलाता है कि खेल कितना शक्तिशाली है और यह हमारी जिंदगी पर क्‍या जादू चला सकता है। हमने खेल की ताकत का अनुभव किया है। अब भी जब मैं यह देखता हूं तो यह मेरे साथ रहता है। मगर मुझे कहीं अंदाजा था कि देश के लिए कुछ विशेष हुआ है और मैं इसे एक दिन अनुभव करूंगा। इस तरह मेरी यात्रा शुरू हुई। यह मेरी जिंदगी का सबसे गौरवशाली पल रहा, 22 साल पीछा करने के बाद ट्रॉफी हाथ में उठाई। मगर मैंने कभी उम्‍मीद नहीं हारी थी। मैंने वह ट्रॉफी अपने देशवासियों की जगह उठाई थी।'

 

जब तेंदुलकर ने मंडेला को किया याद

सचिन तेंदुलकर ने इस दौरान दक्षिण अफ्रीका दौरे पर नेल्‍सन मंडेला के साथ बैठक की यादें साझा की। सुपरस्‍टार एथलीट्स के सामने भाषण देते समय तेंदुलकर ने कहा कि उनका अवॉर्ड उन सभी युवा प्रेरणादायी दिमागों के लिए हैं, जो अपना करियर खेल में बनाना चाहते हैं। 

तेंदुलकर ने कहा, 'मुझे दक्षिण अफ्रीका में महान व्‍यक्ति से मिलने का सम्‍मान प्राप्‍त हुआ। प्रेसिडेंट नेल्‍सन मंडेला से जब मैं मिला, तब महज 19 साल का था। उनकी कठिनाइयां कभी भी उनकी लीडरशिप पर प्रभाव डालती नहीं दिखीं। उन्‍होंने हमारे साथ कई संदेश छोड़े, लेकिन मेरे लिए सबसे महत्‍वपूर्ण जो है, वो यह है कि खेल में हमें एकजुट और एकता कायम रखने की ताकत है।'

46 वर्षीय तेंदुलकर ने कहा, 'इस कमरे में कई महान एथलीट्स के बीच बैठा हूं। इनमें से कुछ को सबकुछ नहीं मिला, लेकिन इनके पास जो भी है, उससे सर्वश्रेष्‍ठ निकाला। यह आगे चलकर चैंपियन एथलीट्स बने। मैं उन सभी को धन्‍यवाद देना चाहता हूं, जिन्‍होंने युवाओं को खेल में करियर बनाने के लिए प्रेरणा दी और सपने के पीछे भागना सिखाया। मुझे महसूस होता है कि यह ट्रॉफी सिर्फ मेरे लिए नहीं बल्कि हम सभी के लिए है युवाओं को प्रेरित करने के लिए।'

कभी हिम्‍मत नहीं हारो, कभी उम्‍मीद मत छोड़ों

महान टेनिस खिलाड़ी बोरिस बेकर ने सचिन तेंदुलकर से पूछा कि विश्‍व कप ट्रॉफी हाथ में लेने के लिए दो दशक से ज्‍यादा इंतजार करना पड़ा तो कैसा महसूस हुआ। इस पर जवाब देते हुए तेंदुलकर ने कहा कि इंतजार ने उन्‍हें हिम्‍मत नहीं हारने को उम्‍मीद नहीं छोड़ना सिखाया।

महान बल्‍लेबाज ने कहा, 'मेरी यात्री 1983 से शुरू हुई जब मैं 10 साल का था। जो क्रिकेट नहीं फॉलो करते थे, तब भारत ने विश्‍व कप जीता था। 10 साल की उम्र में मुझे नहीं समझ आया कि हुआ क्‍या और क्‍यों हर कोई जश्‍न मना रहा है। मैं भी इसमें शामिल था। मगर कहीं मुझे महसूस हुआ कि देश के लिए कुछ विशेष हुआ है। मैं भी ऐसा एक दिन करना चाहूंगा और इस तरह मेरी यात्रा शुरू हुई।'

उन्‍होंने आगे कहा, 'ट्रॉफी दिमाग में थी। हमने यह फोटो देखी। मेरे हाथ में झंडा था। यह मेरी जिंदगी का सबसे गौरवशाली पल है, उस ट्रॉफी का पीछा करना, जिसका मैंने किया। मगर सबसे अच्‍छी चीज यही रही कि मैंने कभी हिम्‍मत नहीं हारी। कभी उम्‍मीद नहीं छोड़ी। मैंने अपने देशवासियों की तरफ से वह ट्रॉफी उठाई।'

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