- निर्भया के दोषी मुकेश कुमार सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह को हुई फांसी
- जेल नियमावली के मुताबिक फांसी देते वक्त पांच लोगों की मौजूदगी जरूरी है
- दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ गैंगरेप किया गया था, उसके बाद उसकी मौत हो गई थी
नई दिल्ली : दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को 23 साल की पैरामेडिकल छात्रा 'निर्भया' के साथ गैंगरेप और उसकी हत्या करने के मामले में दोषी मुकेश कुमार सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह को शुक्रवार सुबह 5.30 बजे फांसी हो गई। इससे पहले पूरी तैयारियां की गईं। फांसी देने के लिए मेरठ से जल्लाद पवन तिहाड़ पहुंच चुके। डमी फांसी भी दी गई। तिहाड़ जेल में ऐसा पहली बार हुआ कि एक साथ चार लोगों को फांसी दी गईष
फांसी के वक्त इनकी मौजूदगी जरूरी, परिवार को अनुमति नहीं
जेल नियमावली के मुताबिक फांसी देते वक्त पांच लोगों की मौजूदगी जरूरी है। जिनमें जेल सुपरिटेंडेंट, डिप्टी सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर इंचार्ज, रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर, जिला मजिस्ट्रेट या एडिशनल जिला मजिस्ट्रेट का वहां मौजूद होना आवश्यक है। इसके अलावा फांसी की सजा पाने वाला दोषी चाहे तो वह उसके धर्म का कोई भी जानकार जैसे पंडित, मौलवी भी मौजूद रह सकता है। जेल के सीनियर अधिकारी के मुताबकि कॉन्स्टेबल 10 से कम नहीं, हेड वार्डर और दो हेड कॉन्स्टेबल, हेड वार्डर या इस संख्या में जेल सशस्त्र गार्ड भी मौजूद होंगे। फांसी होते समय कैदियों के परिवार को वहां मौजूद रहने की अनुमति नहीं होती।
फांसी की रस्सियों का टिकाऊपन की जांच
जेल मैन्युअल के मुताबिक मेडिकल ऑफिसर को फांसी दिए जाने से चार दिन पहले रिपोर्ट तैयार करनी होती है। जिसमें वह इस बात का जिक्र करता है कि कैदी को कितनी ऊंचाई से गिराया जाए। जेल सुपरिटेंडेंट को फांसी से एक दिन पहले रस्सियों का टिकाऊपन और फांसी के तख्त की मजबूती जांचनी होती है।
हर कैदी के लिए अलग से दो रस्सियां
इसके बाद कैदियों के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा भारी पुतलों या रेत के बैग को रस्सी की मजबूती जांचने के लिए 1.830 मीटर और 2.440 मीटर की ऊंचाई से फेंका जाता है। हर कैदी के लिए अलग से दो रस्सियां भी रखी जाती हैं। जांच के बाद रस्सी और अन्य उपकरणों को एक स्टील के बॉक्स में बंद कर दिया जाता है और उसे डिप्टी सुपरिटेंडेंट को सौंप दिया जाता है।
फांसी वाले दिन सुबह-सुबह क्या होता है
फांसी देने वाले दिन सुपरिटेंडेंट, जिला मजिस्ट्रेट/एडिशनल जिला मजिस्ट्रेट, मेडिकल ऑफिस समेत कई सीनियर अधिकारी सुबह-सुबह कैदी से उसकी कोठरी में मिलने जाते हैं। सुपरिटेंडेंट और जिला मजिस्ट्रेट या एडिशनल जिला मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में कैदी की वसीयत समेत किसी भी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए जा सकते हैं या उसे अटैच किया जा सकता है।
कैदी के मुंह पर पहनाया जाता है काला कपड़ा
जेल के नियमों के अनुसार फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले कैदी के मुंह पर काला कपड़ा पहना दिया जाता है ताकि वह फंदे को देख ना पाए। फांसी दिए जाने और उनके शवों को वहां से हटाने तक बाकी कैदियों को उनकी कोठरी में कैद रखा जाता है। कैदी के धर्म के अनुसार उसके शव का अंतिम संस्कार किया जाता है। कई बार उसके पोस्ट मार्टम के बाद उसे परिवार को भी सौंप दिया जाता है। उसका अंतिम संस्कार करने के लिए शव को शमशान ले जाने के लिए एम्बुलेंस का इस्तेमाल किया जाता है।