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Delhi-NCR Air Pollution: प्रदूषण की समस्या का समाधान लॉकडाउन, क्या सोचती है दिल्ली-एनसीआर की जनता

Updated Nov 13, 2021 | 17:33 IST

दिल्ली एनसीआर की हवा में सांस लेना दूभर हो गया है। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में अदालत ने फौरी तौर पर दो दिन के लिए लॉकडाउन लगाने का सुझाव दिया।

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प्रदूषण की समस्या का समाधान लॉकडाउन, क्या सोचती है दिल्ली-एनसीआर की जनता
मुख्य बातें
  • दिल्ली -एनसीआर में प्रदूषण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई
  • अदालत ने फौरी तौर पर दो दिन के लॉकडाउन का सुझाव दिया
  • अगली सुनवाई 15 नवंबर को होगी।

दिवाली के बाद से ही दिल्ली और एनसीआर की हवा जहरीली बनी हुई है। दिल्ली और एनसीआर के कई इलाकों में हालात कुछ इस तरह के लोगों को घरों में मास्क लगाना पड़ रहा है। सरकार की तरफ से प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए क्या कदम उठाए गए उसके बारे में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और अदालत ने खुद सुझाव दिया कि फौरी तौर पर दो दिन के लिए लॉकडाउन लगाया जाना चाहिए और इसके साथ ही निर्देश दिया कि केंद्र और राज्य सरकार दो दिनों के अंदर बताएं कि उनकी तरफ से क्या किया जा रहा है। अब इस विषय पर सोमवार को सुनवाई होगी। सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन इस मर्ज का इलाज है और यदि ऐसा कुछ है तो दिल्ली एनसीआर की जनता क्या सोचती है उससे पहले सुप्रीम कोर्ट में क्या कुछ हुआ उसे जानते हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के खास अंश

  1. पीठ ने कहा कि वायु प्रदूषण के लिये सिर्फ पराली जलाए जाने को वजह बताना सही नहीं है, इसके लिए वाहनों से होने वाला उत्सर्जन, पटाखे और धूल जैसे अन्य कारक भी जिम्मेदार हैं।
  2. पीठ ने कहा, “हर किसी को किसानों को जिम्मेदार ठहराने की धुन सवार है। 70 प्रतिशत। पहले दिल्ली के लोगों को नियंत्रित होने दीजिए। पटाखों, वाहनों से होने वाले प्रदूषण आदि को रोकने लिए प्रभावी तंत्र कहां है?”
  3. शीर्ष अदालत ने कहा, “हम समझते हैं कि कुछ प्रतिशत पराली जलाने की वजह से है। बाकी पटाखों, वाहनों से होने वाले प्रदूषण, उद्योगों, धूल आदि का प्रदूषण है। आप हमें बताइए कि दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 500 से 200 पर कैसे लेकर आएंगे। दो दिन के लॉक-डाउन जैसे कुछ तात्कालिक कदम उठाइए।”
  4. शीर्ष अदालत ने केंद्र से सोमवार तक जवाब देने को कहा है।
  5. न्यायालय ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया कि राष्ट्रीय राजधानी में स्कूल खुल गए हैं और प्रशासन से कहा कि वाहनों को रोकने या लॉकडाउन लगाने जैसे कदम तत्काल उठाए जाएं।
  6. केंद्र सरकार की तरफ से पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पंजाब में पराली जलाई जा रही है और राज्य को इसे लेकर कुछ करना होगा।
  7. पीठ ने कहा, “आपका मतलब यह लगता है कि सिर्फ किसान जिम्मेदार हैं। दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने से जुड़े कदमों का क्या है?” मेहता ने स्पष्ट किया कि उनका कहने का मतलब यह नहीं है कि सिर्फ किसान जिम्मेदार हैं।
  8. जब दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने पराली जलाने के मुद्दे का जिक्र किया, तो पीठ ने कहा, "याचिकाकर्ता हों, दिल्ली सरकार या कोई और - किसानों को दोष देना एक फैशन बन गया है। क्या आपने देखा है कि कैसे दिल्ली में पिछले सात दिनों से कैसे पटाखे फोड़े जा रहे हैं? दिल्ली पुलिस क्या कर रही थी?"
  9. शीर्ष अदालत पर्यावरण कार्यकर्ता आदित्य दुबे और कानून के छात्र अमन बंका द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने छोटे और सीमांत किसानों को मुफ्त में पराली हटाने वाली मशीन उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की है।


लॉकडाउन और प्रदूषण पर दिल्ली-एनसीआर की राय
लॉकडाउन और प्रदूषण के बारे में जब लोगों से पूछा गया तो जवाब मिला कि बात ज्यादा दिन पहले की नहीं है। देश में जब लॉकडाउन लगाया गया उसके बाद ऐसे ऐसे नजारे सामने आए जो आश्चर्य करने वाले रहे। जीव जंतुओं को शहरों की तरफ आना, आसमां का बिल्कुल साफ रहना, मैदानी राज्यों से पहाड़ों का दिखना ये सब अपमे आपमें सबूत हैं कि आपातकालीन हालत में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन दिवाली के बाद जहां तक लॉकडाउन लगाने का सुझाव है वो अपने मकसद को पूरी तरह हासिल नहीं कर पाएगी। इसके पीछे वजह के बारे में लोगों ने कहा यह ठीक है कि दिल्ली और एनसीआर में लॉकडाउन लगने से प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी। लेकिन जिस तरह से पंजाब और हरियाणा में पराली जलाया जा रहा है उससे ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाला है।

सभी को मिलकर काम करने की जरूरत
लॉकडाउन के उपाय को अल्प अवधि के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। लेकिन सरकारों को दीर्घ अवधि के उपायों के बारे में ना सिर्फ सोचना होगा बल्कि जमीन पर भी उतारना होगा। इसके लिए दिल्ली के अगल बगल वाले राज्यों को साझा प्रयास करना होगा। लेकिन क्या हो रहा है। सरकारें एक दूसरे के ऊपर ठीकरा फोड़ रही हैं और उसका खामियाज आम हो या खास हर किसी को भुगतना पड़ रहा है। 

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