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Delhi Riots: दिल्ली दंगों से पहले बनाया गया था रजिस्टर, इसमें छिपे हैं कई राज!

Updated Jul 06, 2020 | 16:21 IST

Delhi Riots Funding: दिल्ली दंगों को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। दरअसल, स्पेशल सेल के पास एक रजिस्टर हाथ लगा है, जिससे पता चला है कि दंगों के लिए फंडिंग कहां से हुई थी।

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फरवरी में दिल्ली में भड़की थी हिंसा (फाइल फोटो)
मुख्य बातें
  • फरवरी के महीने में उत्तर पूर्वी दिल्ली के इलाकों में भड़की थी हिंसा
  • जांच के दौरान दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के हाथ लगा है एक रजिस्टर
  • इस रजिस्टर को हिंसा से पहले बनाया गया था, फंडिग की पूरी जानकारी इसमें है

नई दिल्ली: इस साल फरवरी के महीने में दिल्ली में हुए दंगों की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे नए-नए खुलासे हो रहे हैं। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल की जांच में दिल्ली दंगों के लिए कथित फंडिंग को लेकर एक और खुलासा हुआ है। स्पेशल सेल के सूत्रों की मानें तो एक रजिस्टर में दिल्ली दंगों की फंडिंग के राज हैं। यह रजिस्टर दंगों से ठीक पहले बनाया गया था। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि दंगों से पहले किस तरह फंडिंग की गई थी, इसका पूरा बहीखाता है, यह पैसा कहां से आया और इसे किसको भेजा गया, सबकुछ इस रजिस्टर में दर्ज है। 

दिल्ली दंगों की जांच करने वाली स्पेशल सेल की टीम ने जामिया समन्वय समिति के सदस्य मिरान हैदर को गिरफ्तार किया था। उसे UAPA अधिनियम की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था। जब पुलिस ने एक रजिस्टर की जांच की, तो वह आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि इसमें ओमान और यूके जैसे देशों से आने वाले धन का उल्लेख था। सूत्र बताते हैं, दंगों से ठीक पहले हैदर के खाते में 5 लाख रुपए आए थे।

विदेशों से आया था पैसा!

हाल ही में दिल्ली पुलिस ने अदालत को अपनी स्टेटस रिपोर्ट में यह भी कहा था कि एक अन्य आरोपी खालिद सैफी के भगोड़े जाकिर नाइक से मिलने के बाद मेरठ स्थित एनजीओ के माध्यम से मलेशिया से फंडिंग आ रही थी। पुलिस का दावा है कि रजिस्टर की वसूली के साथ यह लगभग पुष्ट हो गया है कि कहां से सारा पैसा दंगों को भड़काने के लिए आया था। लिखावट की जांच के लिए दस्तावेजों को फॉरेंसिक लैब भेजा गया है। 

जामिया हिंसा के दौरान लिखी गई दंगों की पटकथा

अदालत को दिए अपने उत्तर में दिल्ली पुलिस ने उल्लेख किया है कि 13-15 दिसंबर 2019 के बीच जामिया हिंसा के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों की पटकथा लिखी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि जामिया समन्वय समिति जामिया विश्वविद्यालय की आधिकारिक निकाय नहीं थी, लेकिन जामिया के नाम पर समिति को पीएफआई सहित कई जगहों से फंडिंग मिल रही थी।

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