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क्या था 24 साल पहले दिल्ली में हुआ उपहार सिनेमा अग्निकांड, 59 लोगों की चली गई थी जान, ये है पूरी कहानी

Updated Jun 13, 2021 | 06:00 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Uphaar cinema fire 13 June 1997: 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा में 'बॉर्डर' फिल्म चल रही थी और इसी दौरान उसमें आग लग जाती है, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई।

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फाइल फोटो
मुख्य बातें
  • 13 जून 1997 को दक्षिण दिल्ली में स्थित उपहार सिनेमा में लगी आग
  • इस अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा घायल हुए
  • जांच में सामने आया कि लापरवाही की वजह से ये हादसा हुआ

नई दिल्ली: आज ही के दिन 24 साल पहले दक्षिण दिल्ली के उपहार सिनेमा में भयंकर आग लगी, जिससे 59 लोगों की मौत हो गई। 'बॉर्डर' फिल्म देखने पहुंचे कई लोगों के लिए वो दिन जीवन का अंतिम दिन साबित हुआ। शो के दौरान सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर कक्ष में आग लग गई, जो तेजी से अन्य हिस्सों में फैली। आग की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे। घटना की जांच के दौरान पता चला था कि सिनेमाघर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे। इस हादसे में 103 लोग घायल भी हुए।

उपहार सिनेमा दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क इलाके में स्थित था। जांच शुरू में दिल्ली पुलिस ने की थी और बाद में सीबीआई को ट्रांसफर कर दी गई। उपहार सिनेमा के मालिक सुशील अंसल और गोपाल अंसल को दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने दो साल जेल की सजा सुनाई। मामले में अंतिम फैसला 2015 में आया था जब सुप्रीम कोर्ट ने अंसल भाइयों पर प्रत्येक पर 30 रुपए का जुर्माना लगाया और उनकी जेल की अवधि को उनके द्वारा पहले से ही भुगतने की अवधि तक कम कर दिया था।

उपहार सिनेमा अग्निकांड का पूरा टाइमलाइन

13 जून 1997: हिंदी फिल्म बॉर्डर की स्क्रीनिंग के बीच में ही उपहार सिनेमा में आग लग गई। दम घुटने से 59 लोगों की जान चली गई। इस त्रासदी में 100 से अधिक घायल हो गए।

22 जुलाई: उपहार सिनेमा के मालिक सुशील अंसल और उनके बेटे प्रणव को गिरफ्तार किया गया। उन्हें मुंबई में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने हिरासत में लिया।

24 जुलाई: दिल्ली पुलिस से मामला सीबीआई को ट्रांसफर किया गया।

15 नवंबर: सीबीआई ने 16 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। इसमें सुशील और गोपाल अंसल शामिल थे। 

10 मार्च 1999: एक सत्र अदालत ने मुकदमा शुरू किया।

27 फरवरी, 2001: आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 304 ए (लापरवाही से मौत) और 337 (चोट) के तहत आरोप तय किए गए।

23 मई: अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही की रिकॉर्डिंग शुरू।

4 अप्रैल, 2002: दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत से दिसंबर तक मामले को समाप्त करने को कहा।

2003: दिल्ली हाई कोर्ट ने पीड़ितों के परिजनों को मुआवजे के रूप में 18 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया। 

सितंबर 2004: कोर्ट ने आरोपी के बयान दर्ज करना शुरू किया।

नवंबर 2005: बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही की रिकॉर्डिंग शुरू।

अगस्त 2006: कोर्ट ने बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही की रिकॉर्डिंग पूरी की।

फरवरी 2007: अभियुक्तों ने अंतिम बहस शुरू की।

अगस्त 2007: सीबीआई की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे पेश हुए और फैसला सुरक्षित रखा गया।

5 सितंबर: कोर्ट ने फैसला सुनाया।

22 अक्टूबर: कोर्ट ने फिर फैसला सुनाया।

20 नवंबर: फैसला सुनाया। कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को दोषी करार दिया। सुशील और गोपाल अंसल को दो साल जेल की सजा सुनाई गई।

4 जनवरी 2008: दिल्ली हाई कोर्ट ने अंसल बंधुओं और दो अन्य आरोपियों को जमानत दी।

सितंबर 2008: सुप्रीम कोर्ट ने तिहाड़ जेल भेजे गए अंसल बंधुओं की जेल रद्द की।

नवंबर 2008: दिल्ली हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को सुरक्षित रखा।

दिसंबर 2008: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंसल बंधुओं को दोषी ठहराने वाले निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा। हालांकि, HC ने उनकी सजा को दो साल से घटाकर एक साल कर दिया।

2009: सजा बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।

2013: सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर आदेश सुरक्षित रखा।

2014: जजों की सजा पर मतभेद के बाद मामला तीन जजों की बेंच को भेजा गया। 

2015: सजा पर सुनवाई शुरू। सुप्रीम कोर्ट ने भी अंसल बंधुओं को 30-30 करोड़ रुपए का जुर्माना भरने के बाद मुक्त चलने की अनुमति दी।

फरवरी 2017: सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल अंसल को एक साल की जेल की सजा सुनाई।

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