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पढ़ने के लिए कुत्ता टहलाने से लेकर टैंपो चलाने तक का किया काम, संघर्षों को पार कर ये शख्स बना IPS

Updated Oct 19, 2019 | 08:37 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

आईपीएस और आईएएस बनना हजारों युवाओं का एक सपना होता है। ऐसे में आईपीएस मनोज शर्मा की कहानी हर युवा के लिए मिसाल है। बता दें कि उनकी कहानी संघर्षों से भरपूर के साथ-साथ बेहद मजेदार भी हैं। 

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Success Story IPS manoj sharma
मुख्य बातें
  • पढ़ाने के लिए मनोश शर्मा ने कुत्ता टहलाने से लेकर टैंपो चलाने तक का किया काम
  • 12वीं में हो चुके हैं फेल, इस तरह लिया आईपीएस बनने का फैसला
  • आईपीएस बनने में गर्लफ्रेंड ने निभाई थी अहम भूमिका

मनोज शर्मा साल 2005 बैच के महाराष्ट्र कैडर से आईपीएस हैं। वो इस वक्त मुंबई में एडिशनल कमिश्रनर ऑफ वेस्ट रीजन के पद पर कार्यरत हैं। बता दें कि मनोज शर्मा का बचपन काफी संघर्षों में गुजरा था। उन्होंने आईपीएस बनने से पहले कुत्ता टहलाने से लेकर ऑटो चलाने तक का काम किया है। मनोज शर्मा का जन्म मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में हुआ था। ऐसे में उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई वहीं से की। 

मनोज शर्मा के मुताबिक वो नौवीं, दसवीं और 11वीं में थर्ड डिवीजन से पास हुए थे। उन्होंने बताया कि वो 11वीं तक नकल से पास हुए थे। लेकिन 12वीं में फेल हो गए थे क्योंकि परीक्षा में नकल नहीं कर पाए थे। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि नकल में इतने माहिर थे कि उन्हें अच्छी तरीके से पता था कि पर्ची कहां छुपानी है और गाइड कहां रखना है। शुरू में वो बेहद साधारण जिंदगी चाहते थे, ऐसे में उन्होंने तय किया कि वो 12वीं पास करने के बाद टाइपिंग सीखकर कहीं न कहीं जॉब कर लेंगे। लेकिन वो 12वीं फेल हो चुके थे।

उन्होंने बताया कि 12वीं में फेल होने के बाद वो और उनके भाई टैंपो चलाते थे। एक दिन उनका टैंपो को पकड़ लिया गया। जिसके बाद उन्होंने सोचा कि एसडीएम से बात करके वो अपनी टैंपो को छुड़ा लेंगे। लेकिन जब वहां गए तो वो ये बात कह ही नहीं पाए। उन्होंने सिर्फ इतना ही पूछा कि आपने तैयारी कैसे की है। इसके अलावा मनोज ये भी नहीं बता पाए कि वो 12वीं फेल हैं। उनसे मिलने के बाद मनोज ने तय कर लिया था कि अब जो भी वो यहीं बनेंगे।

पैसे बचाने के लिए करते थे ये काम

इसके बाद वो ग्वालियर चले आए। यहां पैसे खर्च ना हो इसके लिए वो मंदिर के भिखारियों के पास सोते थे। इसके अलावा उनकी जिंदगी में एक ऐसा वक्त भी आया जब उनके पास खाने के लिए पैसे नहीं होते थे। ऐसे में उन्होंने लाइब्रेरियन कम चपरासी का भी काम किया। इस दौरान वहां आने वाले कवियों के लिए बिस्तर लगाना या फिर चाय पानी देने का काम करते थे। लाइब्रेरी में अब्राहम लिंकन की किताबें पढ़ने के बाद उन्हें लगा कि हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते।

गर्लफ्रेंड का था अहम योगदान
मनोज शर्मा जिस लड़की से प्यार करते थे उससे उन्होंने कहा कि अगर वो हां कर देंगी तो वो दुनिया पलट देंगे। उनके हां करने के बाद उन्होंने चौथे अटेम्प्ट में सिविल सर्विस की परीक्षा को पास कर लिया था।

किया कुत्ते टहलाने का काम
संघर्ष के दिनों में जब मनोज दिल्ली में रहते थे। तब उन्होंने अपना खर्चा चलाने के लिए कुत्ता टहलाने का भी काम किया। बड़े घरों में उन्हें कुत्ता टहलाने के लिए 400 रुपये प्रति कुत्ता खर्च मिल जाता था। इसी दौरान उनके सर ने उन्हें बिना फीस लिए उनका एडमिशन ले लिया। पहले अटेम्प्ट में उनका प्रीलिम्स पास कर चुक, लेकिन दूसरे और तीसरे अटेम्प्ट में उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई। आखिरकार लगातार मेहनत के बाद उन्हें चौथी बार में सफलता हासिल हुई।