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Teacher's Day Speech 2022: जब अमेरिका में बजा डॉ. राधाकृष्णन का डंका, शिक्षक दिवस पर जानिए अनसुने किस्से

Updated Sep 05, 2022 | 00:10 IST

Teacher's Day Speech in Hindi 2022 (शिक्षक दिवस पर भाषण हिंदी में): भारतीय ही नहीं बल्कि अमेरिकी भी डॉक्टर राधाकृष्णन के मुरीद थे। आज हम आपको डॉक्टर साहब के जीवन से जुड़ी ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे आपने शायद ही कभी सुना होगा,। यदि आप स्पीच देने जा रहे हैं तो इसका जिक्र अवश्य करें।

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन से जुड़ी अनसुनी कहानी
मुख्य बातें
  • 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु के तिरुतनी में हुआ डॉ. राधाकृष्णन का जन्म।
  • राधाकृष्णन प्रसिद्ध शिक्षक, बहुप्रसिद्ध लेखक और प्रशासक रहे।
  • अमेरिकी में भी बजा था डॉ. राधाकृष्णन का डंका।

Teacher's Day Speech in Hindi 2022 (शिक्षक दिवस पर भाषण हिंदी में): जिस तरह से एक कुम्हार भीतर से घड़े को सहारा देते हुए बाहर पीटकर उसे सही आकार देता है, ठीक उसी प्रकार गुरू भी शिष्य की बुराइयों को निकाल उसे ज्ञान देकर सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाते हैं। गुरू को ईश्वर का स्वरूप माना जाता है। प्रत्येक वर्ष शिक्षकों के सम्मान में 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाया जाता है। इस दिन प्रसिद्ध शिक्षक, बहुप्रसिद्ध लेखक और प्रशासक रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। डां. साहब के इच्छानुसार, उनके जन्मदिवस को टीचर्स डे के रूप में सेलिब्रेट किया जाता है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपनी प्रतिभा के चलते कई बड़े पदों पर रहे। इतना ही नहीं उन्होंने आजाद भारत के पहले उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति का पद भी संभाला। उन्हें राज्यसभा का सबसे कुशल सभापति के रूप में भी जाना जाता था, जिसकी एक युक्ति से चाहे पक्ष हो या विपक्ष चुप हो जाता था।

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वह देश के इकलौते ऐसे राष्ट्रपति थे, जिसने दो युद्ध देखे और दो कार्यवाहक प्रधानमंत्रियों को शपथ दिलाई। डॉक्टर सर्वपल्ली को प्यार और सम्मान से लोग प्रोफेसर साहब कहकर बुलाते थे। आज हम आपको डॉक्टर साहब के जीवन से जुड़ी ऐसी घटना का जिक्र करेंगे, जिसे आपने शायद ही कभी सुना होगा, यदि आप स्पीच देने जा रहे हैं तो इसका जिक्र अवश्य करें। फिर देखिए कैसे श्रोताओं की दिलचस्पी आपके भाषण की तरफ बढ़ जाएगी।

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साल 1921 में मैसूर का सबसे प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज में राधाकृष्णन प्रोफेसर रह चुके थे। जब वह कलकत्ता युनिवर्सिटी बतौर प्रोफेसर के रूप में जाने लगे, तो विश्वविद्यालय के बाहर कुछ इस तरह भीड़ लग गई की मानों कोई समारोह हो रहा हो। छात्र उनकी बग्गी को फूलों की माला से सजा रहे थे, लेकिन छात्रों के आंखों  में उनके जाने का गम साफ दिख रहा था। भाषण और मिलन समारोह के बाद जब डॉक्टर साहब जाने के लिए बाहर आए, वह बग्गी को फूलों से सजा हुआ देखकर मुस्कुराए, लेकिन फिर एकदम से चौंक उठे क्योंकि बग्गी में घोड़े नहीं जते हुए थे। छात्र आगे खड़े हुए और घोड़ों की जगह खुद उस बग्गी को खींचकर मैसूर के रेलवे स्टेशन तक ले गए। रास्ते में लोग उनके चरण स्पर्श कर प्रणाम कर रहे थे, मानों कि उनके घर का कोई सदस्य उन्हें छोड़कर जा रहा हो।

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जब अमेरिका में बजा डॉ. राधाकृष्णन का डंका

स्वामी विवेकानंद जी के बाद, यदि अमेरिकी किसी भारतीय के मुरीद हुए तो उनका नाम था डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन। साल 1926 में अमेरिका के हावर्ड युनिवर्सिटी में जब डॉक्टर साहब ने पश्चिम शैली में भारतीय दर्शन को अंग्रेजी में समझाना शुरू किया तो उन्हें एकसाथ तीन चीजें याद आई। पहले स्वामी विेकानंद का वो भाषण, फिर भारतीय संस्कृति और फिर स्वामी विवेकानंद के देश से आया ये दार्शनिक पुरोधा। अगले दिन के अखबारों में डॉ. राधाकृष्णन साहब का वक्तव्य और विश्लेषण से छाया हुआ था, हर कोई इसे पढ़ने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा था। साल 1926 में ही डॉक्टर राधाकृष्णन ने एक किताब लिखी ''द हिंदी व्यू ऑफ लाइफ'', इन किताबों के जरिए डॉ. साहब का पश्चिमी क्षेत्रों में गुणगान होने लगा।