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Assembly Elections 2022: चुनावी मौसम में 'नारे' की बहुत अहमियत, सत्ता की सीढ़ी चढ़ने में है बड़ी भूमिका

Updated Feb 13, 2022 | 20:49 IST

Election Slogans in Assembly Elections 2022: राजनीतिक पंडितों की मानें तो समय, काल, परिस्थित के आधार पर इनका बदलाव होता रहा है। लेकिन मतदाता के दिलों में जगह बनाने के लिए इनकी बड़ी महती भूमिका होती है। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के आम चुनाव में इनकी गूंज कानों पर सुनाई दे रही है।

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चुनाव में 'नारे' की बहुत ही अहमियत है (प्रतीकात्मक फोटो)

Election Slogans in 2022:  चुनावी मौसम में नारे (Slogans) बहुत अहमियत रखते हैं। नारों की ताकत से सत्ता सीढ़ी चढ़ने में काफी अहम भूमिका रखते हैं। नारों की ताकत कइयों को सत्ता तक पहुंचाया है तो कुछ उम्मीदवारों (Candidates) को पैदल भी किया है। कुछ स्लोगन ऐसे भी रहे हैं जो कि कई सालों तक जुबां में बने रहे हैं। राजनीतिक दल नए-नए चुनावी नारों के साथ सियासी दांव अजमाने उतरते हैं।

भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव के पहले एक नारा दिया यूपी प्लस योगी बहुत है उपयोगी, यह काफी चर्चित रहा। जैसे जैसे प्रचार बढ रहा है वैसे ही नारे की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है। जरा नजर डालिए इन नारों पर, "अब आएंगे तो योगी ही। सोच ईमानदार, काम दमदार, एक बार फिर भाजपा सरकार। सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास। योगी है तो यकीन है, साइकल रखो नुमाइश में, बाबा ही रेहेंगे बाइस में, फिर ट्राई करना सत्ताइस में। सौ में साठ हमारा है, चालीस में बंटवारा है, उसमें भी हमारा है। सोचिए और चुनिए, योगी राज या गुंडाराज फर्क साफ है। कमल खिलाएं और भाजपा की सरकार बनाएं। जनता की हुंकार भाजपा सरकार।"

नई हवा है, नई सपा है...

इसी प्रकार सपा ने भी नारों के जरिए अपना प्रचार बढ़ा रखा है। " यूपी का ये जनादेश, आ रहे हैं अखिलेश। बाइस में बाइसकल। नई हवा है, नई सपा है। बड़ों का हाथ, युवा का साथ। जनता सपा के साथ है, बाइस में बदलाव है।" 

बसपा ने भी नारे गढ़े हैं

बसपा ने भी नारे गढ़े। " हर पोलिंग बूथ जिताना है, बसपा को सत्ता में लाना है। 10 मार्च, सब साफ, बहनजी हैं यूपी की आस। भाईचारा बढ़ाना है बसपा को लाना है। सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय।"

कांग्रेस ने इस चुनाव में जेंडर राजनीति का पाशा फेंका है। इसमें उनका सबसे चर्तित नारा "लड़की हूं, लड़ सकती हूं। लड़ेगा, बढ़ेगा, जीतेगा यूपी।"

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पहले के चुनावों और आंदोलनों में भी कुछ ऐसे नारे रहें हैं, जिनकी बदौलत सत्ता की सीढ़ी को चढ़ा गया है। अगर आजादी के बाद से अब तक की बात करें तो पाकिस्तान युद्ध के समय 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह नारा दिया था। 1966 में उनके निधन के बाद 1967 में हुए आम चुनाव में यह नारा "जय जवान, जय किसान" गुंजायमान हो उठा और उनकी पार्टी की सरकार बन गई।

"इंदिरा हटाओ, देश बचाओं" का नारा भी खूब विख्यात रहा

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 1971 का चुनाव प्रचार में दिया गया नारा "गरीबी हटाओ" पूरे देश में गूंज गया और उसने कांग्रेस और इंदिरा गांधी को भारी जीत दिलवाई। "इंदिरा हटाओ, देश बचाओं" का नारा भी खूब विख्यात रहा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1975 में रायबरेली से इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित कर दिया तो उन्होंने 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दी। जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा हटाओ, देश बचाओ का नारा देकर 1977 में कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया। इसी तरह 1989 में वीपी सिंह पर गढ़ा गया नारा राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है लोगों की जुबान पर चढ़ गया वह प्रधानमंत्री बन गए।

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1998 में परमाणु परीक्षण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल बहादुर शास्त्री के नारे में थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने विज्ञान और तकनीक के बढ़ते महत्व को रेखांकित करते हुए कहा-जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।भाजपा ने 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी को केंद्र में रखकर नारा दिया श्सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी। चुनाव में भाजपा सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी और 13 दिन के लिए अटल प्रधानमंत्री बने। भाजपा ने इंडिया शाइनिंग जैसा चर्चित नारा दिया, लेकिन वह सत्ता बरकरार रखने में नाकाम रही।

"तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार" का नारा दिया था

बसपा मुखिया ने मायावती ने "तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार" का नारा दिया था। 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं का नारा दिया तो पहली बार मायावती के नेतृत्व में सरकार बनी। लोकसभा चुनाव 2014 में अच्छे दिन आने वाले हैं, सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया। इस चुनाव में भाजपा की जीत हुई और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने एक बार फिर मोदी सरकार का नारा दिया था।

राजनीति में नारों की अहम भूमिका 

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी का कहना है कि राजनीति में नारों की अहम भूमिका होती है। यह बड़े-बड़े दलों को सत्ता का स्वाद चखाते रहे हैं। पर्लियामेंट से लेकर पंचायत तक चुनावी नारे बहुत महत्व रखते हैं। नारों के माध्यम से मतदाताओं को राजनीतिक पार्टियां अपनी ओर आकर्षित करने के प्रयास में रहती है।