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अब किस करवट बदलेगी दलित राजनीति, बसपा की लगातार हार से खाली हुआ स्पेस !

Updated Mar 14, 2022 | 19:34 IST

UP Election Result 2022: बसपा के वोट बैंक में 10 फीसदी गिरावट और 2012 से लगातार मिल रही हार से मायावती के राजनीतिक भविष्य पर सवाल उठ रहे हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
बसपा को 2022 के चुनाव में केवल एक सीट मिली है।
मुख्य बातें
  • 1996 के बाद पहली बार हुआ है कि बसपा को 20 फीसदी से भी कम वोट मिले हैं।
  • चंद्रशेखर आजाद दलित नेता के रूप में तेजी से उभरने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन चुनावो में उनकी जमानत जब्त हो गई।
  • भाजपा बेबी रानी मौर्य के जरिए जाटव वोट में सेंध लगाने की कोशिश में है। उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।

UP Election Result 2022: उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजों ने एक तरफ जहां बहुजन समाज पार्टी को अब तक के अपने निचले स्तर पर पहुंचा दिया है। बल्कि उस मिथक को भी तोड़ दिया है कि पार्टी की सरकार बने या नहीं बने लेकिन उसका वोट बैंक अडिग रहेगा। क्योंकि 1996 के बाद ऐसा पहला मौका है जब बसपा को 20 फीसदी वोट नहीं मिले हैं। 2022 के चुनावों में बसपा को 12.88 फीसदी वोट हासिल हो पाया है, जो 2017 के मुकाबले करीब 10 फीसदी कम है। बसपा के वोट बैंक में इतनी बड़ी संख्या में गिरावट और 2012 से लगातार मिल रही हार ये यह भी साफ हो गया है कि अब बसपा का वोट बैंक उससे छिटक गया है। ऐसे में सवाल उठता है उत्तर प्रदेश की दलित राजनीति किस ओर करवट बदलेगी। इस बार बसपा को केवल एक सीट मिली है।

मायावती रही हैं दलित चेहरा

1989 से उत्तर प्रदेश दलित राजनीति का मायवती चेहरा रही है। उत्तर प्रदेश में  मायावती ने अपना पहला चुनाव 1984 में कैराना सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन वह हार गईं थी। लेकिन 1989 की बिजनौर लोकसभा सीट ने उन्हें पहली बार जीत का स्वाद चखाया था। उसके बाद उनके लिए 1993 का विधानसभा चुनाव बेहद अहम साबित हुआ। जब  इस चुनाव में पहली बार काशीराम और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर चुनाव लड़ा और समाजवादी पार्टी को 109 एवं बसपा को 67 सीटें मिली। मुलायम के नेतृत्व में सपा और बसपा की संयुक्त नेतृत्व वाली सरकार बनी। और मायावती राज्यसभा पहुंच गई । इसके बाद मायावती भाजपा के सहयोग से पहली बार 1995 में मुख्यमंत्री बनी। इसके बाद 1996 के चुनावों में बसपा को पहली बार 19.64 फीसदी वोट मिले। और यह सिलसिला 2017 तक चलता रहा। और करीब 25 साल बाद यह सिलसिला टूट गया और 2022 में उसे केवल 12.88 फीसदी यानी करीब 1.18 करोड़ ही वोट मिले।

चंद्रशेखर की जमानत हुई जब्त

चुनावों के पहले आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद दलित नेता के रूप में तेजी से उभरने की कोशिश कर रहे थे। वह चुनावों में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन भी करने की कोशिश में थे। लेकिन बात नहीं बन पाई और उन्होंने गोरखपुर सदर से योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ा। लेकिन दलित चेहरे के रूप में कोई कमाल नहीं कर पाए और उनकी जमानत भी जब्त हो गई । इसी तरह उनकी पार्टी कई छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ी लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई। ऐसे में अब उनके और उनकी पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठ रहे हैं। 

बेबी रानी मौर्य बन पाएंगी दलित चेहरा

चुनावों के पहले सितंबर 2021 में  उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने इस्तीफा दे दिया था। और बाद में भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। भाजपा उन्हें जाटव नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिशें कर रही है। वह आगरा ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ी थीं। और वह न केवल खुद चुनाव जीत कर आई बल्कि आगरा की सभी 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की है। इसके अलावा ऐसी चर्चा है कि भाजपा उन्हें उप मुख्यमंत्री बना सकती है। हालांकि भविष्य की राजनीति में यह दांव कितना कारगर होगा, यह तो वक्त बताएगा। इसके अलावा बेबी रानी मौर्य की उम्र (67 साल) भी भविष्य की राजनीति के लिए चुनौती बन सकती है। 

भाजपा की तरह शिफ्ट हुआ दलित वोट ?

 उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। इसमें से इस बार भाजपा ने 65 सीटें जीती हैं। जबकि सपा गठबंधन को 20 सीटें मिली है। वहीं बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। इस बात की संभावना जताई जा रही है, कि दलित वर्ग का एक बड़ा वोट बैंक भाजपा को शिफ्ट हुआ है। साफ है कि बसपा की लगातार हो रही हार से यूपी की दलित राजनीति में स्थान खाली होता दिख रहा है। देखना है कि क्या मायावती कम बैक करती हैं या फिर खाली स्थान की कोई और भरपाई करता है।

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