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पश्चिमी यूपी: तीन दलित चेहरों के बीच वोट की लड़ाई, किस पर वोटर करेंगे भरोसा

Updated Feb 03, 2022 | 14:54 IST

Dalit Politics In Uttar Pradesh: पिछले 30 साल में पहली बार मायावती को 2 दलित चेहरे चुनौती दे रहे हैं। अब देखना है कि चुनावी मैदान में उतर चुकी मायावती को वह कितनी चुनौती दे पाएंगे।

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दलित राजनीति में नए समीकरण
मुख्य बातें
  • 2022 का चुनाव मायावती के लिए अपनी साख बचाए रखने वाला है।
  • चंद्रशेखर आजाद और बेबी रानी मौर्य के लिए यह चुनाव विकल्प बनने का अवसर है।
  • भाजपा बेबी रानी मौर्य के जरिए जाटव वोट में सेंध लगाने की कोशिश में है।

नई दिल्ली: पिछले 30 साल से यूपी में दलित राजनीति का चेहरा रही बसपा प्रमुख मायावती को पहली बार बड़ी चुनौती मिल रही है। इस बार यूपी की राजनीति में खास तौर से पश्चिमी यूपी से दो नए दलित चेहरे मायावती को टक्कर दे रहे हैं। उन्हें टक्कर देने वालों में प्रमुख नाम आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और भाजपा की तरफ से पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य है। 

खास बात यह है कि ये तीनों नेता पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं। और वहां पर 25 फीसदी दलित आबादी है। जो उत्तर प्रदेश में किसी भी इलाके में सबसे रहने वाले दलित आबादी है। ऐसे में 2022 का चुनाव जहां मायावती के लिए अपनी साख बचाए रखने वाला है, वहीं चंद्रशेखर आजाद और बेबी रानी मौर्य के लिए विकल्प बनने का है।

इन शहरों से नाता

मायावती गौतम बुद्ध नगर, चंद्रशेखर आजाद सहारपुर और बेबी रानी मौर्य आगरा की रहने वाली हैं। पश्चिमी यूपी में हमेशा से दलित वोटर अहम फैक्टर रहे हैं। और चुनावों में जिस दल को दलितों का साथ मिला, उसे लखनऊ की सत्ता मिल गई। 2007,2012 और 2017 में ऐसा बसपा, सपा और भाजपा के साथ हो चुका है। क्षेत्र में पुरकाजी, हस्तिनापुर, हापुड़, खुर्जा, खैर, इगलास, बलदेव, आगरा कैंट,आगरा देहात , रामपुर मनिहारान, नगीना, नहटौर, चंदौसी मिलक धनोरा, बिसौली, फरीदपुर, पुवाया सीटें हैं जो सुरक्षित हैं। जो सीधे तौर पर दूसरी सीटों पर असर डालते हैं।

चंद्रशेखर और बेबी रानी दे पाएंगे मायावती को चुनौती

चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं मायावती की सबसे ज्यादा जाटव वोटों पर पकड़ रही है। और अभी तक बसपा चाहें जीती हो या हारी लेकिन उसका वोट बैंक मायावती के साथ जुड़ा हुआ है। बसपा की जब 1993 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनी थी, तो उस समय उसे करीब 20 फीसदी वोट मिले थे, और वह 67 सीटों पर चुनाव जीत कर आई थी। फिर 2002 में उसे 23 फीसदी और 2007 में 30 फीसदी वोट मिले। 2007 में पार्टी ने अपने दम पर बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। फिर 2012 में करीब 26 फीसदी वोट मिले। जबकि 2017 में जब उसे केवल 19 सीटें मिली, तब भी उसका वोट प्रतिशत 22 फीसदी से ज्यादा रहा है। ऐसे में साफ है कि करीब 30 साल से बसपा 20 फीसदी वोट बैंक को टिकाऊ बनाए हुए हैं। 

अब इसी वोट बैंक पर चंद्रशेखर आजाद और बेबी रानी मौर्य के जरिए भाजपा की नजर है। इस बार चंद्रशेखर आजाद पहले सपा के साथ मिलकर चुनाव में उतरने की कोशिश में थे लेकिन गठबंधन न होने के बाद, दावा है कि छोटी-छोटी 40 पार्टियों के साथ 403 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। बुलंदशहर उप चुनाव को छोड़ दिया जाय तो खुद उनकी और पार्टी के लिए यह पहला विधानसभा चुनाव है।

वह मायावती की इन चुनावों में भूमिका पर चंद्रशेखर आजाद ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से कहते हैं 'मायावती जी का मैं बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन जब तक वह बहुजन समाज की अगुआई कर रह रही थी, समाज उनके साथ था। लेकिन पिछले 5 साल में वह अपने कार्यालय तक सीमित रह गई, इसलिए जनता का उनसे मोह भंग हो गया।'

वहीं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विवेक कुमार ने मायावती के कार्यशैली पर टाइम्स नाउ डिजिटल से कहा कि बसपा के वोटों की संख्या में कोई बड़ी कमी नहीं आई है। 2012 में उसे 1.96 करोड़ वोट मिले थे तो 2017 में उसे 1.92 करोड़ वोट मिले।  मायावती के राजनीति करने का तरीका एक-दम अलग है। दूसरे दल उन पर आरोप लगाते हैं कि वह आंदोलन नहीं करती है। असल में दूसरे दल इस रणनीति पर काम करते हैं कि उनके कदम पर दूसरी पार्टियां रिएक्शन कर अपनी एनर्जी बर्बाद करें। मायावती इस पर काम नहीं करती है। उनका अपना वोट बैंक है। वह बूथ लेवल पर काम करने पर ज्यादा जोर देती हैं। और नए लोगों को अभी बहुत कुछ साबित करना है।

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बेबी रानी मौर्य जाटव वोट में लगा पाएंगी सेंध

भले ही भाजपा ने 2017 के चुनाव में प्रदेश की 86 सुरक्षित सीटों में से 69 अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन उसके बावजूद उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती इस वर्ग के जाटव वोट हैं। जो अभी भी मायवाती के साथ मजबूती से खड़ा हुआ दिखता है। इसीलिए सितंबर 2021 में भाजपा की वरिष्ठ नेता और उत्तराखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य के इस्तीफा के बाद, भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। और उन्हें जाटव नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिशें की है। वह पश्चिमी यूपी में भाजपा के जाटव चेहरे के रुप में चुनाव प्रचार कर रही हैं। और खुद दलितों की राजधानी के रूप में प्रचलित आगरा की आगरा ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ रही है। 

क्या बंटेंगे दलित वोट

आम तौर पर एक तरफा वोट देने वाले दलित वोट क्या इस बार बंट जाएंगे। क्योंकि उनके सामने मायावती के साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद और बेबी रानी मौर्य का विकल्प भी है। देखना है कि काफी लंबे इंतजार के बाद 2 फरवरी को आगरा से चुनावी मैदान में उतरकर मायावती अपने वोट बैंक को बचा पाएंगी या फिर नए चेहरे उनमें सेंध लगा देंगे।
 

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