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योगी के अयोध्या से चुनाव लड़ने के मायने, क्या बनारस जैसा बनेगा ट्रंप कार्ड

Updated Jan 13, 2022 | 19:06 IST

Yogi Adityanath: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या से चुनाव लड़ सकते हैं। ऐसा कर भाजपा उनसे उसी तरह के कमाल की उम्मीद करेगी, जैसा कि 2014 में नरेंद्र मोदी ने बनारस से चुनाव लड़कर लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए किया था।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
अयोध्या से योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने के मायने
मुख्य बातें
  • अयोध्या से चुनाव लड़ने पर जाति की राजनीति पर भारी पड़ सकता है हिंदुत्व का दांव।
  • बनारस-अयोध्या-गोरखपुर त्रिकोण से 200 सीटों पर सीधा असर पड़ सकता है।
  • राम मंदिर आंदोलन के समय अयोध्या से विनय कटियार भाजपा का चेहरा बने थे।

नई दिल्ली:  यूपी में भाजपा को छोड़ कर जाने वालों का तांता लगा हुआ है। इस बीच पार्टी ने बड़े ऐलान की तैयारी कर ली है। इसके तहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न केवल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, बल्कि भाजपा की राजनीति का केंद्र रहे अयोध्या से उम्मीदवार भी होंगे। पार्टी ने फैसला कर लिया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या न केवल चुनाव लड़कर हिंदुत्व राजनीति की धार तेज करेंगे, बल्कि पूर्वांचल से लेकर अवध क्षेत्र तक पार्टी को चुनावों में बड़ी जीत दिला सकेंगे। पार्टी को उम्मीद है कि अयोध्या से चुनाव लड़ने पर पार्टी को करीब 200 सीटों पर सीधा फायदा मिलेगा।

अयोध्या के सियासी मायने

राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ने के बाद, 90 के दशक से ही अयोध्या भाजपा की राजनीति का केंद्र रहा है। लेकिन अगर 1991 और 2017 के चुनावों को छोड़ दिया जाय तो भाजपा कभी भी जिले की सभी सीटों पर जीत नहीं दर्ज कर पाई थी। लेकिन जिस तरह से अयोध्या में राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण का सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रास्ता साफ हुआ है। उसे देखते हुए भाजपा के पास 2022 में अपने सबसे मुद्दे को भुनाने का मौका है। इसके तहत भाजपा न केवल अपने वादे को पूरा करने की बात बार-बार मतदाताओं को याद दिलाएंगी, बल्कि विपक्ष पर सीधे तौर पर निशाना साधेगी। अभी तक भाजपा के लिए अयोध्या से विनय कटियार सबसे बड़े नेता रहे हैं। वह 1991 , 1996 और 1999 में लोकसभा सांसद रह चुके हैं। उसके बाद योगी आदित्यनाथ सबसे बड़े चेहरे के रूप भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।

मोदी की तरह कामयाब होगा योगी का दांव ?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हमेशा से हिंदूवादी छवि रही है। और वह इस छवि के जरिए ही 2017 में अचानक मुख्यमंत्री भी बने । पार्टी उनको अयोध्या से चुनाव लड़ाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे कमाल की उम्मीद कर रही है। 2014 में भाजपा ने नरेंद्र मोदी को बनारस से चुनाव लड़ाने का दांव खेला था। और वह दांव इतना कामयाब रहा है कि भाजपा को 2014 में 80 में से 71 लोकसभा सीटें मिल गईं। और उसके 2017 में विधान सभा चुनाव में भाजपा 312 सीटें मिलीं। और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को 62 सीटें मिलीं। अब वैसी ही उम्मीद पार्टी को योगी आदित्यनाथ के अयोध्या से चुनाव लड़ने को लेकर है। 

अयोध्या-बनारस-गोरखपुर त्रिकोण करेगा कमाल ?

अयोध्या से चुनाव लड़ने पर भाजपा के लिए पूर्वांचल और अवध क्षेत्र तक मतदाताओं को साधना आसान होगा। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि गोरखपुर योगी आदित्यनाथ का गृह क्षेत्र हैं, जबकि बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद सांसद हैं। ऐसे में अयोध्या-बनारस-गोरखपुर का त्रिकोण करीब 200 सीटों पर सीधे असर डाल सकता है।

 भाजपा को सबसे ज्यादा अखिलेश यादव से इसी गढ़ में चुनौती मिलती दिख रही है। क्योंकि अखिलेश न केवल जातिगत समीकरण साधते हुए ओम प्रकाश राजभर के सुभासपा और कृष्णा पटेल के अपना दल को अपने  पाले में कर चुके हैं। बल्कि स्वामी प्रसाद मौर्य, माधुरी वर्मा, राम अचल भर और लालजी वर्मा जैसे नेताओं को अपने सपा से जोड़कर पूर्वांचल में मजबूत घेराबंदी कर चुके हैं।

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जाति पर भारी होगा हिंदू कार्ड ?

जिस तरह अखिलेश यादव ने जातिगत समीकरण बनाकर भाजप के ओबीसी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। सूत्रों के अनुसार उसमें अब पार्टी को लगता है कि जाति की राजनीति का तोड़ हिंदुत्व हो सकता है। क्योंकि अगर हिंदू कार्ड चलेगा तो मतदाता जाति से ऊपर उठकर भाजपा को वोट दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में  अब देखना होगा कि भाजपा का योगी आदित्यनाथ को अयोध्या से चुनाव लड़ाना कितना फायदेमंद साबित होता है।

अयोध्या पर योगी का विशेष रहा है फोकस

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जबसे मुख्यमंत्री बने हैं, उस वक्त से वह 30 बार से ज्यादा अयोध्या जा चुके हैं। इसके लिए अयोध्या में दिपावली का आयोजन और शहर के लिए खास योजनाओं की शुरूआत भी उनके प्रमुख एजेंडे में रहा है। इस बीच मुख्यमंत्री के लिए अयोध्या कार्यालय  बनाने से लेकर जमीनी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। भाजपा नेताओं के मुताबिक उनके चुनाव लड़ने से हिंदुत्व का मुद्दा चरम पर पहुंचेगा और भाजपा वोटरों को अयोध्या, काशी, मथुरा का संदेश देने में भी कामयाब रहेगी।

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