- फिल्म शोले को 47 साल पूरे हो गए हैं।
- गब्बर सिंह के किरदार की गिनती सबसे खूंखार विलेन में होती है।
- गब्बर सिंह का किरदार असली डाकू गब्बर सिंह के किरदार पर आधारित था।
Facts about Sholay Movie: देशभर में आज आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। वहीं, भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे महानतम फिल्मों में से एक यानी शोले को 47 साल पूरे हो गए हैं। 15 अगस्त 1975 के दिन रिलीज हुई ये फिल्म बॉलीवुड के लिए एक टर्निंग प्वाइंट साबित हुई थी। फिल्म के एक-एक किरदार को आज भी याद किया जाता है। शोले के विलेन गब्बर सिंह की गिनती फिल्म इंडस्ट्री के सबसे खूंखार विलेन में होती है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि गब्बर सिंह का किरदार इसी नाम के असली डाकू पर आधारित था।
बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के मुताबिक 50 के दशक में गबरा नाम का असली डाकू था। उसे गब्बर सिंह के नाम से ही लोग जानते थे। मध्य प्रदेश के भिंड के डांग गांव में 1926 में जन्में गब्बर सिंह की तलाश तीन राज्यों की पुलिस को थी। साल 1955 में वह डाकू कल्याण सिंह गूजर के गिरोह में शामिल हो गया। फिल्म की तरह ही उस पर 50 हजार रुपए का इनाम था। गब्बर सिंह ने अपनी कुलदेवी के आगे प्रण लिया था कि वह 116 लोगों की नाक काटकर भेंट चढ़ाएगा। उसका मानना था कि ऐसा करने से पुलिस की गोली उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकेगी। उसने 26 लोगों की नाक काट दी थी। इसमें कई पुलिसवाले भी शामिल थे।
डायरी में बताए हैं ये किस्से
50 के दशक में मध्य प्रदेश में पुलिस महानिरीक्षक रहे के.एफ. रुस्तमजी ने अपनी डायरी में गब्बर सिंह के कई किस्से बताए हैं। रुस्तमजी की डायरी के मुताबिक भिंड, ग्वालियर, चंबल, इटावा और ढोलपुर के इलाके में गब्बर सिंह का सबसे ज्यादा आतंक था। उसके बारे में गांववाले कोई भी जानकारी पुलिस को नहीं देते थे। साल 1959 में तत्कालीन डिप्टी एस.पी राजेंद्र प्रसाद मोदी को गब्बर सिंह और उसके गैंग को खत्म करने की जिम्मेदारी मिली थी। रुस्तमजी की डायरी के मुताबिक नवंबर 1959 में एक गांव वाले ने गब्बर के ठिकाने की खबर दी थी। उसने कहा 'पूरी गैंग बैठी है, सभी को खत्म कर डालो।'
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पंडित नेहरू को दिया जन्मदिन का तोहफा
रुस्तमजी अपनी डायरी में लिखते हैं, 'डाकुओं और पुलिस के बीच खतरनाक मुठभेड़ हुई। लोग रेलगाड़ी और बसों की छत पर बैठकर ये देख रहे थे। 13 नवंबर 1959 की शाम गब्बर सिंह मारा गया।
14 नवंबर को पंडित नेहरू का 70वां बर्थडे था। रुस्तमजी के मुताबिक उन्हें समझ नहीं आ रहा था पंडित नेहरू को क्या तोहफा दें। मध्य प्रदेश पुलिस ने इस खबर को पंडित नेहरू के सामने जन्मदिन के तोहफे के तौर पर पेश किया।