5 अगस्त 1960 को हिंदी सिनेमा की एक ऐसी फिल्म रिलीज हुई थी जो उस वक्त की सबसे महंगी और सबसे लंबी फिल्म थी। इस फिल्म का नाम था 'मुगल-ए-आजम' और इसे बनाया था डायरेक्टर के आसिफ ने। बॉलीवुड के सबसे पगले डायरेक्टर के आसिफ को भगवान ने धरती पर केवल मुगल-ए-आजम जैसी फिल्म को बनाने के लिए ही भेजा था। इस फिल्म को लेकर उनकी दीवानगी गजब की थी। 14 साल में बनकर तैयार हुई इस फिल्म के लिए के आसिफ ने पानी की तरह पैसा बहाया, वो भी उस दौर में जब 10-15 लाख में फिल्में बन जाया करती थीं।
सलीम और अनारकली की प्रेमकहानी को दिखाने वाली फिल्म 'मुगल-ए-आजम' उस जमाने में 1.5 करोड़ रुपये में बनकर तैयार हुई थी। अगर आज आज के दौर में देखें तो तकरीबन 40 करोड़ रुपये। ये भी सच है कि ये फिल्म केवल पैसे से ही नहीं बन पाई, इस फिल्म को बनाने में दो दशकों को जुनून लगा था। उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले आसिफ ने 'मुगल-ए-आजम' मुगल बादशाह मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर के बेटे सलीम और अनारकली की प्रेम कहानी पर फिल्म बनाई जो पहले 1940 में रिलीज होने वाली थी। पहले इस फिल्म में एक्टर सप्रू चंद्रमोहन और नरगिस ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं। बाद में 20 साल बाद इस फिल्म को नई स्टार कास्ट के साथ रिलीज किया गया।
जाने माने पत्रकार वेद विलास उनियाल बताते हैं कि के आसिफ इस फिल्म को लेकर किसी तरह का कोई समझौता नहीं करना चाहते थे। इस फिल्म के लिए शीश महल का सेट लगाने में दो साल लगे थे। वहीं फिल्म के एक सीन की वजह से शूटिंग कई महीने रुक गई थी। दरअसल, सीन में सलीम यानी दिलीप कुमार को मोतियों पर चलते हुए महल में दाखिल होना था। सीन में नकली मोतियों का इस्तेमाल किया गया जो के आसिफ को कुछ अखर रहा था। सीन पूरा हुआ लेकिन के आसिफ ने फिल्म के फाइनेंसर शाहपुरजी मिस्त्री से एक लाख रुपये मांगे ताकि वह असली मोतियों का इस्तेमाल कर सकें। यह सुनकर शाहपुरजी गुस्सा हो गए और बोले कि तुम पागल हो गए हो क्या। मोती सच्चे हों या नकली क्या फर्क पड़ेगा?
के आसिफ ने कहा कि फर्क पड़ेगा, क्योंकि सच्चे मोतियों पर चलने के बाद चेहरे पर जो चमक आएगी, उसका अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता है। सच्चे मोती के इस्तेमाल के बाद ही मैं वो दिखा पाउंगा जो दिखाना चाहता हूं। 20 दिन के बाद शाहपुरजी और आसिफ मिले तो मुगल-ए-आज पर बात हुई। इस दिन ईद थी। शाहपुरजी को पता चला की शूटिंग रुकी हुई है तो उन्होंने कारण जानना चाहा। तब आसिफ ने कहा कि आप सच्चे मोती मंगा दें तो शूटिंग शुरू हो सकती है। इसके बाद शाहपुरजी ने आसिफ को ईदी के तौर पर एक लाख रुपये दिये जिससे सच्चे मोती खरीदे गए।
के आसिफ के इसी जुनून के लिए उन्हें बॉलीवुड का सबसे पगला डायरेक्टर कहा जाता था। उनके पागलपन के कई और उदाहरण हैं। 1- इस फिल्म की शूटिंग में 2 हजार ऊंट और 4 हजार घोड़े इस्तेमाल किया गया था। आसिफ ने फिल्म में असली सैनिकों से अभिनय कराया था। इस फिल्म में कास्टिंग से लेकर संगीत तक के लिए आसिफ खुद सब तय करते थे। उन्होंने इस फिल्म के लिए 72 गाने लिखवाए थे। जबकि इस फिल्म का फेमस गाना 'जब प्यार किया तो डरना क्या' 105 घंटे में लिखा गया था।