- यश चोपड़ा केवल एक फिल्मकार नहीं, बल्कि हिंदी सिनेमा का एक पूरा संस्थान थे
- 27 सितंबर 1932 को लाहौर में पैदा हुए थे फिल्मकार यश चोपड़ा
- 21 अक्टूबर 2012 को इस दुनिया से अलविदा कह गए थे यश जी
Yash Chopra Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के सबसे रोमांटिक फिल्मकार यश चोपड़ा की आज पुण्यतिथि है। 27 सितंबर 1932 को लाहौर में पैदा हुए यश चोपड़ा 21 अक्टूबर 2012 को इस दुनिया से अलविदा कह गए थे। उनकी पढ़ाई लाहौर में हुई। 1945 में इनका परिवार पंजाब के लुधियाना में बस गया। यश चोपड़ा इंजीनियर बनने की ख्वाहिश लेकर बंबई आए थे लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वह केवल एक फिल्मकार नहीं, बल्कि हिंदी सिनेमा का एक पूरा संस्थान थे। उनकी क्षत्र-छाया में ना जाने कितने ही कलाकारों ने एक्टिंग का A सीखा और आज शीर्ष पर काबिज हैं।
किशोर अवस्था में यश चोपड़ा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए और शाखाओं में भागीदारी करने लगे। एक शाम उनकी भाभी ने खाना बनाने के लिए तंदूर में ज्यों-ही आग लगाई, एक बड़े विस्फोट से समूचा घर दहल उठा। तंदूर में यश चोपड़ा ने क्रांति के लिए बम छिपाए हुए थे। इस धमाके में जान माल की हानि नहीं हुई। कुछ वक्त बाद उनके भाई बीआर चोपड़ा मुंबई आए और उन्होंने जल्द ही यश चोपड़ा को भी बुला लिया।
ऐसे हुई फिल्मी सफर की शुरुआत
यश चोपड़ा ने बतौर सहायक निर्देशक अपने करियर की शुरुआत बड़े भाई बीआर चोपड़ा और आईएस जौहर के साथ की थी। सन् 1959 में उन्होंने पहली फिल्म धूल का फूल का निर्देशन किया और फिल्म 1961 में धर्मपुत्र और 1965 में मल्टीस्टारर फिल्म 'वक्त' बनाई। 1973 में उन्होंने प्रोडक्शन कंपनी यशराज फिल्मस की स्थापना की।
स्विट्जरलैंड थी प्रिय जगह
यश चोपड़ा ने अपने प्रोडक्शन कंपनी से नए निर्देशकों और सितारों को इंडस्ट्री में मौके दिए। 1975 में फिल्म दीवार से उन्होंने महानायक अमिताभ बच्चन की 'एंग्री यंग मैन' की छवि बनाई और फिल्म रोमांटिक फिल्मों का रुख किया। यश चोपड़ा को रोमांटिक फिल्मों का जादूगर कहा जाता है। फिल्मों की शूटिंग के लिए यश चोपड़ा का स्विट्जरलैंड प्रिय डेस्टिनेशन था। यही वजह है कि 25 अक्टूबर 2010 में स्विट्जरलैंड में उन्हें एंबेसेडर ऑफ इंटरलेकन अवॉर्ड से भी नवाजा गया था। इतना ही नहीं स्विट्जरलैंड में उनके नाम पर एक सड़क भी है और वहां पर एक ट्रेन भी चलाई गई है।
ये दोनों सितारे थे फेवरेट
अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान यश चोपड़ा के पसंदीदा एक्टर रहे। अमिताभ बच्चन के साथ उन्होंने दीवार (1975), कभी-कभी (1976), त्रिशूल (1978), काला पत्थर (1979), सिलसिला (1981) बनाई वहीं बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख खान के साथ बतौर निर्देशक यश चोपड़ा ने डर, दिल तो पागल है, वीर जारा और जब तक है जान जैसी सफल फिल्में बनाईं।
नाम और काम को मिला सम्मान
हिन्दी सिनेमा में उनके शानदार योगदान के लिए 2001 में उन्हें भारत के सर्वोच्च सिनेमा सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। साल 2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से नवाजा। यश चोपड़ा के बड़े बेटे आदित्य चोपड़ा भी निर्देशक हैं और अब उनकी कंपनी का कार्यभार उन्हीं के कंधों पर है।