- विद्या बालन ने इस फिल्म में ह्यूमन कंप्यूटर शकुंतला देवी का किरदार निभाया है
- फिल्म को लॉकडाउन की वजह से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया गया है
- शकुंतला देवी में दंगल फेम सान्या माल्होत्रा ने विद्या की बेटी का रोल निभाया है
डायरेक्टर अनु मेनन की शकुंतला देवी आपको पहले ही सीन से इंप्रेस करेगी। शकुंतला देवी के बचपन का रोल निभाने वाली अरायना नंद ने विद्या न सिर्फ शकुंतला देवी के बचपन की जीवंत झलक दिखाई बल्कि विद्या बालन के लिए भी एक अच्छी ओपनिंग सेट की है। फिल्म की खूबी ये है कि एक फीमेल सेंट्रिक होने के बावजूद से महिला सशक्तिकरण की बात नहीं करती, बल्कि सशक्त महिला कैसी होनी चाहिए - ये बताती है।
फिल्म में शकुंतला देवी की दो दुनिया दिखाई गई हैं - एक वो जिसमें वह नंबर्स से खेलती नजर आ रही हैं। इसमें वह वो जीनियस हैं जिसने सुपर कंप्यूटर तक को मात दे दी और मैथ्स की हर प्रॉब्लम का जवाब वह चुटकी बजाते दे सकती है। दूसरी ओर पर्सनल लाइफ से जूझती शकुंतला है जिसे जिंदगी में प्यार नहीं मिला और उसकी खुद की बेटी उसे देखना तक पसंद नहीं करती। भले ही पर्सनल फ्रंट पर शकुंतला अपनी कैल्कुलेशंस की तरह हर बार सही नहीं है लेकिन यहां उनके अपने तर्क हैं, भावनाएं हैं जो उनके कंप्यूटर से अलग करती हैं। सुपर दिमाग से इतर वे एक आम इंसान हैं जो प्यार और खुद को समझने वालों का साथ चाहती है।
विद्या बालन पर्दे हमेशा इतनी सहज होती हैं कि वह रोल में ढल जाती हैं और लगता है कि वो नहीं होतीं तो इस किरदार को कोई और निभा ही नहीं पाता। यही बात शकुंतला देवी के साथ भी है। विद्या ने कई फिल्मों के साथ बॉलीवुड के स्टीरियोटाइप तोड़े हैं और सोसाइटी के रूल्स को भी चैलेंज किया है, और शकुंतला देवी बनकर वह दो कदम आगे ही बढ़ी हैं।
Shakuntala Devi Trailer:
बात बाकी के कलाकारों की करें तो सान्या मल्होत्रा की तारीफ इस बात पर होनी चाहिए कि विद्या की बेहतरीन परफॉर्मेंस के आगे वह अपनी ध्यान खींच लेती हैं। उनमें भी अपनी मां की तरह गुस्सा और इमोशन, दोनों ही बखूबी दिखते हैं। जिस तरह दोनों को बैलेंस कर सान्या ने अभिनय किया, वह उनके लिए बेशक आगे अच्छी फिल्मों के ऑफर खोलेगा। अमित साध और शकुंतला के पति का रोल करने वाले बांग्ला एक्टर जीशू सेनगुप्ता पर कैमरा कम फोकस है। फिल्म में कई जगह लगता है कि शकुंतला के आसपास के किरदारों को दर्शकों के साथ सेट होने के लिए थोड़ा समय और मिलना चाहिए था। लेकिन फिल्म की गति भी इसी वजह से बनी तो ये बात ज्यादा अखरती नहीं है। यही बात संगीत के साथ भी है। सचिन जिगर की धुनें सुनने में अच्छी लगती हैं लेकिन फिल्म के साथ संगीत ठहरता नहीं है। बस गाने आते हैं और निकल जाते हैं।
आप वुमन एम्पावरमेंट की बात करें या नहीं, महिला प्रधान फिल्मों का कॉन्सेप्ट आपको अच्छा लगता हो या नहीं, विद्या के फैन हों या नहीं - लेकिन वीकएंड पर शकुंतला देवी देख सकते हैं। अच्छी फिल्म देखने की तलाश के साथ हो सकता है कि आपकी दोस्ती मैथ्स के साथ भी हो जाए!