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दिल्ली की हवा में मिला जानलेवा मर्करी, इससे होता है कैंसर 

Updated Feb 05, 2018 | 17:14 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक राजधानी की हवा में खतरनाक वायु प्रदूषक की खोज केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा संचालित एक एक्सपेरिमेंटल स्टेशन द्वारा की गई है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टेशन ने सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2), ओजोन (ओ 3), नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2), फॉर्मैल्डहाइड  (फॉर), बेंजीन (बीईएन), टोल्यूइन (टीओएल), पी-एक्सलीन (पीएक्सवाई) और मर्करी (एचजी) जैसे जहरीले तत्व शामिल हैं।

नई दिल्ली: दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से है। यहां सांस लेना बीमारियों को दावत देने से कम नहीं है। खासकर सर्दियों में तो दिल्ली की हवा खतरनाक स्तर तक प्रदूषित होती है। अब एक प्रयोग में सामने आया है कि दिल्ली की हवा में न सिर्फ हाई पार्टिकुलेट मैटर की तादाद ज्यादा है बल्कि जानलेवा वायु प्रदूषक भी हैं। इनमें मर्करी (पारा) और फॉर्मैल्डहाइड जैसे प्रदूषक हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक राजधानी की हवा में खतरनाक वायु प्रदूषक की खोज केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा संचालित एक एक्सपेरिमेंटल स्टेशन द्वारा की गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इन जहरीले गैसों का स्तर बहुत अधिक है या नहीं, यह जानने के लिए अधिक अध्ययन की जरूरत होगी। यह एक्सपेरिमेंटल एयर क्वॉलिटी स्टेशन ईस्ट अर्जुन नगर में परिवेश भवन में है। यह डिफरेंट ऑप्टिकल ऐब्सॉर्प्शन स्पेक्ट्रोस्कॉपी (डीओएएस) पर आधारित है। जानलेवा वायु प्रदूषक होने के यह नतीजे एक ड्राफ्ट रिपोर्ट में 2011 से 2016 के आंकड़ों के आधार पर जारी किए गए हैं।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टेशन ने सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2), ओजोन (ओ 3), नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2), फॉर्मैल्डहाइड  (फॉर), बेंजीन (बीईएन), टोल्यूइन (टीओएल), पी-एक्सलीन (पीएक्सवाई) और मर्करी (एचजी) जैसे जहरीले तत्व शामिल हैं। अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में, पहले से ही इन्हें जहीरले तत्वों के रूप में वर्गीकृत किया जा चुका है।

इन जहरीले तत्वों की जांच करने के पीछे सीपीसीबी का उद्देश्य ऐसी जगहों का पता लगाना है जहां काफी प्रदूषण होता है। सीपीसीबी का मकसद यह पता लगाना है कि क्या औद्योगिक क्लस्टर, थर्मल पावर प्लांट या कीटनाशक निर्माण इकाइयों जैसे गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों में होने वाले उत्सर्जन का टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के जरिए पता लगाया जा सकता है? विकसित देशों की तरह भारत में अभी तक एक एयर टॉक्सिक प्रोग्राम नहीं है। अमेरिकी की पर्यावरणीय संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के मुताबिक, ये प्रदूषक मनुष्यों में कैंसर या प्रजनन प्रभाव या जन्म दोष जैसी अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

क्या असर डालता है मर्करी (पारा)? 
वातावरण में घुलने के बाद  मर्करी (पारा) लंबे समय तक वहां बना रहता है। यह हवा, पानी, जमीन और जीव-जंतुओं में घुल जाता है। इंसान तक पहुंचने पर यह घातक असर दिखाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इंसान की सेहत के लिए पारा बहुत ही जहरीला है, गर्भ में पल रहे भ्रूण और बच्चों को इसका सबसे ज्यादा खतरा रहता है।  सांस के जरिए इंसानी शरीर में घुसने पर पारा तंत्रिका तंत्र, पाचन तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता, फेफड़ों और गुर्दों को नुकसान पहुंचाता और प्राण घातक साबित हो सकता है। 

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दरअसल हमारी आधुनिक जीवनशैली में इस्तेमाल होने वाले तमाम उपकरण ऐसे हैं जिनमें पारे का इस्तेमाल होता है। चाहे फिर रोजमर्रा के तमाम इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों में इस्तेमाल होने वाली बैटरी हो या सोने के तमाम उत्पाद। गौर हो कि कम्प्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में सोने और चांदी का अच्छा खासा इस्तेमाल हो रहा है। इन धातुओं में भी मरकरी मौजूद होता है। इसके अलावा सीमेंट के उत्पादों और विभिन्न किस्म के मेडिकल डिसपोजल्स भी हवा में पारा की मौजूदगी का एक बड़ा कारण हैं। पारा की मौजूदगी वाले तमाम उत्पादों, उपकरणों का अगर सही तरीके से भंडारण न किया जाए तो इससे पारा रिसकर वातावरण में शामिल होता है।

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