कोरोना महामारी की मार से दुनिया के तमाम मुल्क जूझ रहे हैं, वहीं भारत में भी इसकी प्रकोप खासा ज्यादा दिखाई दे रहा है, अब सभी के मन में ये सवाल है कि कोरोना वैक्सीन (corona vaccine) कब तक आएगी और भारत में ये कब से मिलना शुरू होगी, भारत में पहली कोरोना वैक्सीन किसे लगाई जाएगी, अगर कोरोना वैक्सीन आया तो कैसे पहुंचेगा भारत की 140 करोड़ की आबादी तक? कोरोना से जुड़े इन तमाम सवालों के जबाव 'संडे संवाद' में दिए देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने दिए।
गौरतलब है कि भारत में बड़े पैमाने पर अलग-अलग कोरोना वैक्सीन के ट्रायल चल रहे हैं। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई वैक्सीन का फेज 3 ट्रायल चल रहा है वहां वैक्सीन ट्रायल के अलग-अलग फेज में हैं।
वहीं इससे पहले हाल ही में देश में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच सरकार ने कोरोना वायरस की वैक्सीन से जुड़ी सभी जानकारियों के लिए एक पोर्टल लॉन्च किया था जिस पर आपको वैक्सीन से संबंधित सारी जानकारी मिल जाएगी। इस पोर्टल को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की देखरेख में तैयार किया गया है इस पोर्टल पर वैक्सीन के बारे में जानकारी उपलब्ध होने के साथ-साथ नैदानिक परीक्षण और स्थानीय तथा वैश्विक स्तर पर इस क्षेत्र में हुई प्रगति का विवरण होगा।
कोरोना (Corona) कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) को लेकर कई सवाल सामने आए, एक नजर इन सभी सवाल जबावों पर-
Question-हरदीप जी ने एक सवाल पूछा है- पंजाब में यह अफ़वाह तेज़ी से फैल रही है कि वायरस बस एक बहाना है, जिन लोगों को कोई बीमारी नहीं है, कोविड-19 के सहारे उन्हें मारा जा रहा, उनके अंग निकाल लिए जा रहे हैं। आखिर कितनी सच्चाई है इन ख़बरों में?
Answer-हरदीप जी, इन बातों में कोई दम नहीं है और ये सिर्फ़ अफ़वाह हैं।कोविड के कारण मरने वालों को कोई छू भी नहीं सकता है।कोविड से मरने वालों को विशेष देख रेख में अंतिम क्रिया के लिए भेजा जाता है। अंगों के निकाले जाने का तो सवाल ही नहीं उठता। मुझे समझ नहीं आता कि आखिर इस तरह की अफ़वाह कौन लोग फ़ैला रहे हैं..और उनका मक़सद क्या है।वैसे इस तरह की अफ़वाहों से निश्चित रूप से कोरोना से निपटने के लिए की जा रही सरकार की कोशिशों पर असर पड़ सकता है।पोलियो और रूबेला वैक्सीनेशन मुहिम के दौरान भी इसी तरह की अफ़वाहें फैली थीं।
मुझे याद है कि हमारी पोलियो वैक्सीनेशन ड्राइव के दौरान लोगों ने हमारी टीमों का विरोध किया था और कहा कि इससे बुख़ार होता है और यह घातक साबित हो सकता है। देखिए हरदीप जी, पंजाब के लोगों को समझना होगा कि यह विरोध काफ़ी ख़तरनाक साबित हो सकता है क्योंकि ऐसे में लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि वे संक्रमित हो रहे हैं। वे संक्रमित होंगे और इधर-उधर घूमेंगे। उनकी ख़ुद की हालत भी ख़राब होगी।
बाद में जब उन्हें हॉस्पिटल लाया जाएगा, तब तक उनकी हालत बहुत गंभीर हो चुकी होगी और फिर शायद स्वास्थ्यकर्मी भी उनकी मदद न कर पाएं।तो मेरा सभी देशवासियों से आग्रह है कि ऐसी अफ़वाहों पर ध्यान न दें और राज्य सरकार को भी चाहिए कि अफ़वाह फैलाने वालों से कड़ाई से निपटें।
Question-- रीतू शर्मा जी ने एक दिलचस्प सवाल पूछा है। उनका सवाल है किक्या स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना से बचाव के लिए फील्ड में काम करनेवाले पत्रकारों के लिए कोई दिशानिर्देश ज़ारी किए हैं? मुंबई में पत्रकारों के काम करने के तरीके को देख कर तो नहीं लगता कि वे किसी दिशानिर्देश का पालन कर रहे हैं? क्या ये लोग कोरोना नहीं फ़ैला रहे हैं?
Answer- देखिए, रीतू शर्मा जी, हमारे मीडिया के जो साथी हैं वो भी कोरोना वारियर्स की श्रेणी में आते हैं।कोरोना के खिलाफ़ लड़ाई में मीडिया के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।बीते नौ महीने के दौरान मैंने देखा है कि किस तरह हमारे पत्रकार बंधु कोरोना को लेकर समाज और देश को जागरूक बनाने का काम करते रहे हैं।लेकिन इसके साथ मैं एक बात और कहना चाहता हूं कि कोरोना न देश में फ़र्क समझता है न व्यक्ति के पेशे में। पत्रकारों को भी कोरोना का ख़तरा उतना ही है...जितना हम सब को। कोरोना से बचाव के लिए उन्हें भी उन्हीं दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए जो एक आम इंसान के लिए है।
कुछ समय पहले जब यह ख़बर आई थी कि बड़े पैमाने पर पत्रकार कोरोना के शिकार हो रहे हैं तो सरकार ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को एक पत्र लिखकर इस पर चिंता जताई।पत्र में कोरोना से जुड़ी ख़बरों को कवर करनेवाले पत्रकारों को सावधानी बरतने की सलाह दी गई थी।उस समय हमने मीडिया संस्थानों को अपने स्टाफ के बचाव के लिए ज़रूरी कदम उठाने को भी कहा था।चाहे वो मुंबई के पत्रकार हो या फिर दिल्ली के, सभी से मेरी अपील है कि काम करते हुए वे बचाव के सभी तरीक़ों को अपनाएं।जब भी किसी राजनेता या किसी अन्य का बयान अपने कैमरे पर रिकॉर्ड करते हैं तो उन्हें कुछ सावधानी बरतनी चाहिए।
पत्रकारों को चाहिए कि वे सब आपस में यह तय कर लें कि आपस में कम से कम छः फ़ीट की दूरी बना कर रखेंगे, घेरा बना कर खड़े होने से बचें ..ताकि वे एक दूसरे के संपर्क में न आएं।सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखें। चेहरा ढंकने के लिए फ़ेस मास्क का इस्तेमाल करें।
Question- नई दिल्ली से सुनील कंबोज जी कहते हैं कि Sunday Samvad program अत्यंत लाभकारी है, आपका बहुत बहुत धन्यवाद इसके लिए। मेरा प्रश्न है, सीनियर सिटिजन्स को कोरोना ग्रसित होने पर भारत सरकार क्या विशेष सुविधाएँ दे रही है ?
Answer- देखिए सुनील जी , बहुत अच्छा लगा यह जानकर कि आप कोरोना काल में बुजुर्गों की चिंता कर रहे हैं।यूं तो प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी देश के हर वर्ग, हर उम्र के लोगों की बेहतरी के लिए सोचते हैं...आपने देखा होगा कि इस साल 15 अप्रैल को राष्ट्र के नाम अपने संदेश में भी प्रधानमंत्री जी ने हम सभी से घर के बड़े बुज़ुर्गों का ख़ास ध्यान रखने की अपील की थी ।सभी सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों को स़ख्त निर्देश दिया गया है कि वे किसी भी संभावित कोरोना पीड़ित बुजुर्ग का इलाज़ व टेस्टिंग प्राथमिकता के आधार पर करें।
सरकार के कॉल सेंटर्स पर आने वाले कॉल के दौरान भी बुजुर्गों की शिकायतों को गंभीरता से सुनने और उन्हें तुरंत उचित सलाह देने को कहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना को देखते हुए सीनियर सिटिजंस के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किए हैं.., जिसमें विस्तार से बताया गया है कि उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है। सभी old AGE HOMES को भी हमने निर्देश दिया है कि कोरोना से बुजुर्गों के बचाव के लिए वे सभी उपाय करें और एक नोडल अधिकारी तैनात करें..जो जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित कर सके। कोरोना वायरस संकट के बीच हमने 60 साल या इससे अधिक आयु के CGHS के लाभार्थियों को सीधे उनके घर तक नि:शुल्क दवाइयां उपलब्ध कराने का आदेश दिया है।
Question-रेणु कंबोज जी का ने पूछा है-कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव आने के कितने दिन बाद मरीज़ परिवार के साथ सामान्य रूप से रहा जा सकता है ?
Answer-रेणु कंबोज जी,पहले तो आपको धन्यवाद संडे संवाद से जुड़ने के लिए।देखिए रेणु जी, किसी भी कोरोना पीड़ित मरीज़ की आज पहली चिंता यही रहती है कि वो कुछ समय के लिए परिवार से बिछड़ जाएगा।ऐसे में निश्चित तौर पर मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं । कोरोना की रिपोर्ट आने के बाद कोई भी मरीज़ सबसे पहले अपने परिवार के बीच जाना चाहता है...अपने परिवारवालों से मिलना चाहता है।ऐसे में, मैं तो यही कहूंगा कि कोरोना से डरने की नहीं, बल्कि लड़ने की जरूरत है।साथ ही पूरी सावधानी बरतना भी बेहद जरूरी है। कोरोना की रिपोर्ट निगेटिन आने के बाद डॉक्टर आपको तीन से सात दिन तक सेल्फ आइसोलेसन में रहने की सलाह देते हैं।
इस दौरान आपको देखना चाहिए कि बुखार, खांसी या सांस लेने में तकलीफ़ जैसे लक्षण दोबारा तो नज़र नहीं आ रहे।कोविड के दौरान जो भी आप फॉलो कर रहे थे, उसे जारी रखें जैसे मास्क लगाना, हाथ धुलना, सामने वाले व्यक्ति से दूरी बनाए रखना आदि।और हां कोरोना निगेटिव होने का मतलब है कि उसमें वायरस अब नहीं है। लेकिन वायरस जब बॉडी के अंदर गया तो उससे कितना नुकसान हुआ, यह बाद में पता चलता है।
होता यह है कि कोई मरीज़ कोविड निगेटिव तो हो जाता है, लेकिन वायरस जो नुकसान पहुंचा चुका होता है... उसे सही होने में अधिक समय लगता है।अगर किसी के हार्ट में दिक्कत हुई, तो उसे ठीक होने में समय लगता है। इसी प्रकार लंग्स, किडनी और दूसरे अंगों को ठीक होने में समय लगता है।और इस सबके बीच काम आता है आपका परिवार । तो निश्चित तौर पर निगेटिव होने के बाद परिवार से कब मिल सकते हैं यह डिस्चार्ज होते समय अपने डॉक्टर से जरूर पूछें।
Question- अनूप पवार जी ने पूछा है- दुर्गा पूजा और दशहरा जैसे त्योहार करीब हैं ? क्या सरकार सार्वजनिक पूजा पंडालों को अनुमति देगी? क्या इस बार डांडिया और गरबा की धूम रहेगी ?
Answer- देखिए अनूप पवार जी, भारतीय पर्व और त्यौहार भारतीय सभ्यता और संस्कृति के दर्पण हैं, जीवन के श्रृंगार हैं..राष्ट्रीय उल्लास, उमंग और उत्साह के प्राण हैं..लेकिन जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने भी कहा है- जान है तो जहान है। पर्व त्यौहार का आनंद तभी है जब हम सब स्वस्थ रहें ।
हम सब जानते हैं कि, कोरोना से बचाव के लिए सबसे जरूरी है Social Distancing.
ऐसे में हम सभी को खुद तय करना चाहिए कि हमें यह पर्व किस तरह से मनाना है रही बात पूजा पंडालों को अनुमति देने की तो इस पर राज्य सरकारों को फ़ैसला लेना है, हालांकि कई राज्य सरकारों ने इस पर दिशानिर्देश जारी करने शुरू भी कर दिए हैं।जैसे कि महाराष्ट्र सरकार ने नवरात्रि को लेकर जो दिशानिर्देश जारी किए हैं उसमें साफ कहा गया है कि घर में मूर्तियां 2 फीट से अधिक नहीं हो सकती हैं और पंडालों को 4 फीट से कम होना चाहिए।इस बार महाराष्ट्र में गरबा और डांडिया कार्यक्रम नहीं होंगे।
दूसरी तरफ़ देखें तो पश्चिम बंगाल सरकार ने तो दुर्गा पूजा के त्योहार के लिए पंडाल लगाने की अनुमति दे दी है।हालांकि, पंडालों को चारों तरफ से खुला रखने, श्रद्धालुओं, आयोजकों समेत अन्य लोगों को मास्क लगाने और पंडाल में जगह-जगह पर सेनिटाइजर रखने जैसी शर्तें भी लगाई हैं।किसी पंडाल में एक वक्त में 100 से ज्यादा लोग इकट्ठे नहीं होंगे, यह निर्देश भी दिया गया है। गुजरात में भी सरकार ने वहां के डॉक्टरों की अपील के बाद इस साल नवरात्रि महोत्सव पर रोक लगा दी है। वहां भी गरबा के आयोजन नहीं होंगे।मेरी भी आप सब से यही अपील है कि अपनी धार्मिक मान्यताओं का ख्याल रखते हुए अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रखें। पर्व-त्यौहार मनाते हुए अपने मुंह पर मास्क लगाने के साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग का भी पूरा ख्याल रखें।
Question- अंजलि सक्सेना जी का सवाल है-ऑनलाइन क्लास के नाम पर बच्चे घरों में हैं। स्कूल के क्लास से लेकर ट्यूशन तक ऑनलाइन चल रहा है। बच्चे लैपटॉप या स्मार्ट फोन पर चिपके दिखते हैं। क्या इससे बच्चों के स्वास्थ्य विशेषकर उनकी आंखों पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ रहा है? आखिर क्या सोच रही है सरकार?
Answer-अंजली जी बहुत अच्छा सवाल पूछ है आपने ...यह सही है कि कोरोना संकट को देखते हुए स्कूल-कॉलेजों में ऑनलाइन classes चलाई जा रही है।लेकिन इसे लेकर कोई पुख्ता गाइडलाइन नहीं होने के कारण Parents काफी परेशान हैं।दरअसल, छोटे बच्चों को घंटों ऑनलाइन पढ़ाई करनी पड़ रही है, जिससे निश्चित तौर पर उनके स्वास्थ्य पर विपरित असर हो रहा है।इसे देखते हुए केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने Digital Education पर guidelines 'प्रज्ञाता' (PRAGYATA) जारी किया है।
ऑनलाइन क्लासेस के संबंध में जारी निर्देशों के तहत स्कूली छात्रों के लिए अधिकतम ऑनलाइन क्लास यानि Screen Time की सीमा निर्धारित की गई है।नर्सरी लेवल की कक्षाओं के लिए बच्चों के माता-पिता को मार्गदर्शन दिया जाएगा और यह क्लास 30 मिनट की होगी।वहीं पहली कक्षा से 8वीं कक्षा तक के छात्रों को प्रति दिन 30-45 मिनट की अधिकतम 2 क्लासेस ली जा सकेगी।इसके अलावा 9वीं से 12वीं कक्षा तक के बच्चों के लिए 30-45 मिनट की 4 से अधिक क्लासेस नहीं लेने को कहा गया है, वैसे Parents को मेरा सुझाव होगा कि जिस कमरे में बच्चे टीवी, कंप्यूटर या फोन चला रहे हैं, वहां पर अच्छी रोशनी होनी चाहिए ताकि उनकी आंखों पर दबाव न पड़े।
मॉनिटर या स्क्रीन की Brightness को Medium रखें।अगर बच्चे कम रोशनी में स्क्रीन पर देखते हैं तो इससे आंखों पर ज्यादा बुरा असर पड़ता है और इससे रेटिना के डैमेज होने का खतरा रहता है।कई बार बच्चे आंखों को स्क्रीन पर गड़ाकर रखते हैं और पलकें झपकाना भूल जाते हैं।इसकी वजह से आंखों से पानी आने, पलके झपकाने का पैटर्न खराब होने और आंखों को मसलने जैसी कुछ समस्याएं हो सकती हैं।आंखे न झपकाने की वजह से आंखों का पानी सूख सकता है।इसलिए कंप्यूटर या स्क्रीन पर देखते समय बच्चों को बीच-बीच में पलकें झपकाना सिखाएं। इससे आंखों पर कम दबाव पड़ेगा।
Question- सवाल वेदांत कृष्णन जी का जो कहते हैं- पाकिस्तान की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद खराब है। बड़ी आबादी और ग़रीब परिवार छोटी जगह पर एक साथ रहने को मजबूर हैं। फिर भी पाकिस्तान ने कोरोना के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन किया है । फिर भारत क्यों पिछड़ गया ?
Answer- देखिए, पाकिस्तान से भारत की तुलना करना बेमानी होगी। भारत की 140 करोड़ की आबादी के मुकाबले पाकिस्तान की आबादी बहुत कम है और हम इस लड़ाई में कहीं भी पीछे नहीं हैं, बल्कि दुनिया के कई देशों के मुकाबले हमने बेहतर प्रदर्शन किया है। देश में रिकवरी रेट 83 प्रतिशत से अधिक है जो कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है।देश में कोरोना वायरस के नए मामलों के आंकड़ों में भी गिरावट देखने को मिल रही है, जहां 10 दिनों पहले देश में 90 हजार से अधिक मामले सामने आ रहे थे, वहीं अब 80 हजार से अधिक मामले प्रतिदिन सामने आ रहे हैं।भारत में कोरोना से मौत की दर सिर्फ़ 1.56 प्रतिशत है।
Question- अगला सवाल देवेश भरतिया जी का है। वो कहते हैं-ज़रूरत पड़ने पर खून देने वाले तो मिल जाते हैं पर प्लाजमा देने से आदमी क्यों कतराता है। क्या प्लाज्मा देने में कोई डर है ?
Answer- देखिए देवेश जी, पहले तो मैं आपको यह साफ कर दूं कि कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने चुनिंदा संस्थानों को ही प्लाज़्मा थेरेपी के ट्रायल की मंजूरी दी है।यह सही है कि भारत में कोरोना मरीजों के लिए प्लाज़्मा डोनर को तलाशना एक मुश्किल काम है क्योंकि कोरोना से ठीक हो चुके लोग प्लाजमा डोनेट करने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।देखिए, देवेश जी इसके लिए सबसे पहले तो लोगों के मन में बैठे डर को दूर करना होगा । उन्हें सबसे पहले तो हमें उन्हें यह समझना होगा कि प्लाजमा डोनेशन क्या है।
हमारे खून (blood) में चार प्रमुख चीजें होती हैं. WBC, RBC, PLATELETS और PLASMA आजकल किसी को भी होल ब्लड नहीं चढ़ाया जाता बल्कि इन्हें अलग-अलग करके जिसे जिस चीज की ज़रूरत हो वो चढ़ाया जाता है।प्लाज्मा, खून में मौजूद 55 फीसदी से ज्यादा हल्के पीले रंग का पदार्थ होता है, जिसमें पानी, नमक और अन्य एंजाइम्स होते हैं।ऐसे में किसी भी स्वस्थ मरीज जिसमें एंटीबॉडीज़ विकसित हो चुकी हैं, उसका प्लाज़्मा निकालकर दूसरे व्यक्ति को चढ़ाना ही प्लाज्मा थेरेपी है।
जो लोग कोरोना होने के बाद ठीक हो चुके हैं। उनके अंदर एंटीबॉडीज विकसित हो चुकी हैं। वे ठीक होने के 28 दिन बाद प्लाज्मा दान कर सकते हैं।प्लाज्मा देने वाले को कोई खतरा नहीं है बल्कि यह रक्तदान से भी ज्यादा सरल और सुरक्षित है।प्लाज्मा दान करने में डर की कोई बात नहीं है। Haemoglobin भी नहीं गिरता।हाल में एम्स ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर PLASMA Donation के लिए एक कैंप का भी आयोजन किया गया था, जिसमें बड़ी संख्या में कोरोना से ठीक हो चुके दिल्ली पुलिस के जवानों ने प्लाजमा डोनेट कर समाज के सामने एक मिसाल पेश की थी। उस समय मैंने प्लाजमा डोनेट करने वालों को Plasma Warriors नाम दिया था।
गौरतलब है कि भारत में कोरोना से मरने वालों की संख्या 1 लाख को पार कर गई है, स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में इस वक्त 64 लाख 73 हजार लोग कोरोना संक्रमित हैं वहीं इनमें से 54 लाख 27 हजार लोग ठीक हो चुके हैं और 9 लाख 44 हजार लोग संक्रमित हैं।