नई दिल्ली : कोरोना महामारी के बीच देश में बर्ड फ्लू ने भी दस्तक दे दी है। राजधानी दिल्ली सहित देश के 19 राज्यों में बर्फ फ्लू के मामलों की पुष्टि हो गई है। पक्षियों में इस बीमारी के संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें विशेष सावधानी बरत रही हैं और उनकी तरफ से एहतियाती कदम उठाए गए हैं। पशु-पक्षियों को लेकर लोगों को विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। बावजूद इसके राजधानी दिल्ली के चौराहों पर लोग कबूतरों को दाना खिलाकर अपने जीवन को खतरे में डालने से बाज नहीं आ रहे हैं। दिल्ली में कई जगहों पर पक्षियों की असामान्य मौत हुई है। बर्ड फ्लू के खतरे को देखते हुए दिल्ली सरकार ने गाजीपुर के सबसे बड़े पोल्ट्री बाजार पर प्रतिबंध लगा दिया है।
लोगों को कबूतरों के झुंड से दूर रहने की सलाह
राजधानी में पक्षियों में बर्ड फ्लू के मामलों की पुष्टि हो जाने के बाद नगर निगम स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कबूतरों को दाना खिलाने की जगहों एवं उनके झुंड से दूर रहने के लिए कहा है। एक आधिकारिक परामर्श में कहा गया है, 'श्वास रोग एवं त्वचा से जुड़े रोगों को फैलाने में कबूतरों की भूमिका देखी गई है। ऐसे समय में जब बर्ड फ्लू से पक्षियों की मौत हुई है तो लोगों को इनके निकट और इनके मल-मूत्र के समीप आने से बचना चाहिए। कबूतरों के बड़े आकार वाले दलों से संक्रमण फैलना का खतरा है।'
चौराहों से दाना बेचने वालों को हटाया
नई दिल्ली नगर परिषद ने बडे़ चौराहों पर से पक्षियों को दाना बेचने वाले खोमचे एवं ठेले वालों को हटा दिया है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के मेयर जय प्रकाश का कहना है कि पक्षियों के लिए दाना बेचने वाली जगहों की निगरानी करना अच्छा विचार है। नगर निगम इस तरह के कदम उठाने के बारे में सोच रहा है। पूर्वी और दक्षिण नगर निगमों का भी कहना है कि उन्होंने अभी इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया है।
कबूतरों के मल-मूत्र से बीमारी का फैलने का खतरा
एक अधिकारी का कहना है कि दिल्ली नगर निगम एक्ट पशुओं की आबादी से लोगों के स्वास्थ्य पर मंडराने वाले खतरे को लेकर कार्रवाई करने का अधिकार देता है। यदि इनसे इंसान के स्वास्थ्य को खतरा पैदा होता है तो हम डीएमसी एक्ट के तहत कार्रवाई करेंगे। पक्षीविज्ञानियों का कहना है कि एक किसी इलाके में कबूतरों के मल-मूत्र एवं उनके पंख यदि लगातार गिरते हैं तो वहां हिस्टोप्लासमोसिस, कैनडिडियासिस एवं साल्मोनेपोलिसिस जैसे श्वास रोग की दिक्कतें होने का खतरा रहता है। यदि कबूतरों के मलमूत्र पानी या खाने योग्य पदार्थों में गिरते हैं तो इससे भी परेशानी हो सकती है।
शहरों में लगातार बढ़ रही कबूतरों की संख्या
पक्षीविज्ञानियों का कहना है कि इन चौराहों पर कबूतरों को दाना खिलाए जाने से उनको अपनी जनसंख्या बढ़ाने में मदद मिली है। कबूतर एक साल में चार से पांच बार जनन करने लगे हैं। इस तरह से उनकी आबादी बढ़ने से शहरों में उनका दबदबा बढ़ गया है। इसका एक नुकसान यह हुा है कि गौरैया और मैना शहरों से दूर होते जा रहे हैं। कबूतरों द्वारा गिराए जाने वाले मल-मूत्र कई बीमारियां का कारण बनता है। साल भर में एक कबूतर करीब 11.5 किलोग्राम मल का त्याग करता है। कबूतरों के मल प्रकृति में ज्वलनशील होते हैं। अपनी इस ज्वलनशील प्रकृति के चलते ये इमारतों एवं स्मारकों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।