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30 के बाद फैमली प्लानिंग में रोड़ा बन सकता है प्री मेनोपॉज, जानें एक्‍सपर्ट क्‍या देते हैं सलाह 

Updated Nov 19, 2018 | 21:26 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

मेनोपॉज की उम्र 45 से 50 साल के बीच होती है, लेकिन लाइफस्टाइल और स्ट्रेस के कारण इसके होने का समय भी घटने लगा है। कुछ महिलाओं में 30-40 साल में ही मेनोपॉज देखने को मिल रहा है।

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तस्वीर साभार:&nbspThinkstock
What are the signs and symptoms of pre menopause

Signs and symptoms of pre menopause: क्या आपकी उम्र अभी 40 से कम है? क्या अचानक ही पीरियड्स अधिक या बहुत कम आने लगा है। हल्की चोट से ही हड्डी खिसक जाती है या अचानक ही आपका अच्छा मूड भी खराब हो जाता है तो आप सावधान हो जाएं। ये लक्षण प्री मेनोपॉज के कारण हो सकते हैं। जी हां, क्योंकि अब मेनोपॉज के लिए कोई उम्र नहीं रही। 

कम उम्र में मेनोपॉज की समस्याएं अब तेजी से बढ़ रहीं हैं। इसे रोकना आसान तो नहीं लेकिन कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। मेनोपॉज की उम्र 45 से 50 साल के बीच होती है, लेकिन लाइफस्टाइल और स्ट्रेस के कारण इसके होने का समय भी घटने लगा है। मेनोपॉज एक ऐसी अवस्था है जब महिलाओं के पीरियड्स बंद हो जाते हैं। कुछ महिलाओं में 30-40 साल में ही मेनोपॉज देखने को मिल रहा है। प्री मेनोपॉज कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों को खड़ा कर देता है। हार्मोनल बदलाव के कारण महिलाओं में समय से पहले कई ऐसी दिक्कते आ जाती है जो उनके लाइफ को कांप्लीकेटेड बना देती है। 

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गलत आदतों की वजह से जल्‍द होता है मेनोपॉज
गॉयनोकॉलोजिस्ट डॉ ममता कुमार बताती हैं कि अपने करियर और जॉब के कारण कई बार फेमिली प्लानिंग आज कल कपल्स देर से करते हैं। कई बार ये देरी कपल्स को भारी पड़ जाती है क्योंकि ऑफिशियली या घर बाहर के तनाव के कारण और खानपान की गलत आदतों से समय से पहले ही मेनोपॉज आ जाता है।

प्री मेनोपॉज के क्‍या हैं कारण? 
 डॉ ममता का कहना है कि वैसे प्री मेनोपॉज के कारण कई हैं लेकिन मुख्य कारण स्ट्रेस बन रहा है। वह बताती हैं कि मेनोपॉज के समय वजन बढ़ना, चिड़चिड़ापन, थकान और मूड स्विंग की समस्या सबसे ज्यादा होती है। कई बार मेनोपॉज के समय स्ट्रेस में महिलाएं खूब खाती हैं जिससे उनका वेट भी बढ़ता जाता है। दिल घबराना और अचानक दिल बैठने जैसे लक्षण आप में नजर आ रहे हो तो आप भी सचेत हो जाएं।

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हॉर्मोन एस्ट्रोजेन जब शरीर से कम निकलने लगता है तो इससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं। ये हॉर्मोन हड्डियों के लिए सुरक्षा कवच की तरह काम करता है। इसकी मात्रा घटने की वजह से हड्डियों से कैल्शियम का रिसाव होने लगता है। जब खून में कैल्शियम की कमी होती है तो उसे पूरा करने के लिए हड्डियों से रक्त कैल्शियम खींचने लगता है और जिससे हड्डियां खोखली पड़ने लगती हैं। कैल्शियम के मेटाबॉलिक रेट को बेहतर बनाने का काम करता है लेकिन जब कैल्शियम कम होता है तो मेटाबालिक रेट भी गड़बड़ हो जाता है।

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