- हर वर्ष 24 मार्च को मनाया जाता है वर्ल्ड ट्यूबरक्लोसिस डे, इस वर्ष द क्लॉक इस टिकिंग है टीबी डे का थीम
- कोरोनावायरस महामारी के वजह से टीबी के पेशेंट पर पड़ा है गंभीर प्रभाव
- कोरोनावायरस की वजह से लोगों के बीच में बढ़ी है जागरूकता
वर्ष 2020, इतिहास के सबसे भयावह वर्षों में से एक माना जाता है। पूरे विश्व में फैले कोरोनावायरस ने लोगों को ऐसी चोट दी है जिसका जख्म कभी भरा नहीं जा सकता है। इस महामारी ने कई लोगों का घर उजाड़ दिया वहीं कितने लोगों के प्रियजनों को हमेशा के लिए दूर कर दिया। कोरोनावायरस का प्रभाव सिर्फ लोगों पर ही नहीं पड़ा बल्कि कई ऐसी बीमारियों पर भी पड़ा है जो दुनिया के सबसे खतरनाक बीमारियों में शुमार हैं। इन्हीं में से एक बीमारी है, ट्यूबरक्लोसिस, जिसके वजह से हर दिन करीब 4 हजार लोग अपनी जान गंवा देते हैं, वहीं 28 हजार लोग एक दिन में ट्यूबरक्लोसिस से ग्रस्त हो जाते हैं। एक शोध के अनुसार, यह पता चला है कि वर्ष 2000 से लेकर अब तक करीब 63 मिलियन लोग ट्यूबरक्लोसिस के वजह से मारे गए हैं।
क्या है वर्ल्ड ट्यूबरक्लोसिस डे?
वर्ल्ड ट्यूबरक्लोसिस डे हर वर्ष 24 मार्च को मनाया जाता है और इस दिन लोगों को ट्यूबरक्लोसिस और स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभाव से जागरूक किया जाता है। दुनिया भर में कई ऐसे संस्थान हैं जो ट्यूबरक्लोसिस के जड़ों को इस दुनिया से हमेशा के लिए मिटाने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड ट्यूबरक्लोसिस डे?
इतिहास के अनुसार, आज के दिन, वर्ष 1882 में डॉ रॉबर्ट कोच ने ट्यूबरक्लोसिस को जन्म देने वाले बैक्टीरिया की खोज की थी। इस खोज ने इस बीमारी के खिलाफ इलाज ढूंढने में कई मदद की थी।
क्या है इस वर्ष की थीम?
इस वर्ष, वर्ल्ड ट्यूबरक्लोसिस डे पर द क्लॉक इस टिकिंग थीम रखा गया है। यह थीम इस बीमारी के खिलाफ जल्द से जल्द लड़ने की आवश्यकता को दर्शा रहा है। वर्ष 2020 में फैली महामारी के वजह से हर एक व्यक्ति का ध्यान ट्यूबरक्लोसिस जैसी अनेक बीमारियों से हट गया था।
कोरोना की वजह से लोगों में क्या आए बदलाव?
कोरोनावायरस के वजह से लोग कई इनफेक्शियस डिजीज के खिलाफ जागरूक हो गए हैं। अब, लोग हाइजीन, साफ-सफाई, मास्क की आवश्यकता, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कदमों को अपने जिंदगी में अपना रहे हैं। इतना ही नहीं इस महामारी के वजह से अस्पतालों के हालात में भी काफी सुधार आया है लेकिन अभी भी ट्यूबरक्लोसिस जैसी बीमारियों को संभालने में मेहनत करने की जरूरत है।
भारत में क्यों है ट्यूबरक्लोसिस का खतरा?
भले ही ट्यूबरक्लोसिस से बचाव के लिए हमारे पास कई सुविधाएं मौजूद हैं लेकिन फिर भी भारत में ट्यूबरक्लोसिस का खतरा अत्यधिक है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में ओवरक्राउडिंग, खांसने का गलत शऊर और ट्यूबरक्लोसिस से जल्दी प्रभावित होने जैसी समस्याएं हैं। अनियंत्रित डायबिटीज के पेशेंट, एचआईवी पेशेंट, इम्यूनोथेरेपी के पेशेंट, कैंसर से पीड़ित लोग, स्टेरॉयड और मालन्यूट्रिशन के शिकार लोगों पर ट्यूबरक्लोसिस का रिस्क ज्यादा है।
कोरोनावायरस और लॉकडाउन के वजह से ट्यूबरक्लोसिस के पेशेंट पर क्या प्रभाव पड़ा?
पिछले साल, जब देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा हुई थी तब हर एक चीज थम गई थी। इन हालातों में नए पेशेंट अस्पताल जाने में असमर्थ थे वहीं पुराने मरीज डॉक्टरों की नजरों से दूर हो गए थे। लोगों को आवश्यक दवाइयां भी नहीं मिल पा रही थीं, दूसरी ओर, टेस्टिंग सुविधाएं भी कम होती जा रही थीं। इस परिस्थिति में ट्यूबरक्लोसिस के मरीजों की हालत और बिगड़ती गई वहीं ट्यूबरक्लोसिस के केसेज भी बढ़ते गए।
लॉकडाउन के बाद क्या आया बदलाव?
आज के समय में, कई हस्पताल कोविड-19 के पेशेंट के साथ अन्य बीमारियों के पेशेंट का भी ध्यान रखने में सक्षम हैं। देशव्यापी लॉकडाउन ने हमें टेक्नोलॉजी का बेहतर कामों में उपयोग करने का ढंग सिखा दिया है। एक चीज जिसने स्वास्थ्य सुविधाओं में बदलाव लाया है वह है टेलीमेडिसिन। अब यह एक आवश्यकता बन गया है जिसकी तरफ पेशेंट्स का झुकाव ज्यादा है खासकर उन परिस्थितियों में जब पेशेंट को रिपोर्ट दिखाने के साथ रिपोर्ट करने की जरूरत महसूस होती है। पहले डॉक्टर्स डायरेक्ट अब्जॉर्ब्ड थेरेपी के अनुसार पीड़ितों की समस्याओं का समाधान करते थे। वहीं, आजकल के दौर में डॉक्टर वीडियो अब्जॉर्ब्ड थेरेपी को बेहतरीन विकल्प मान रहे हैं।
नियमों का पालन करना क्यों है जरूरी?
अस्पतालों में भर्ती होने से पहले और ब्रोंकोस्कोपी प्रोसीजर से गुजरने से पहले कोविड-19 का रिपोर्ट देना आवश्यक हो गया है। इन नियमों का पालन करना आवश्यक है क्योंकि यह हर एक इंसान के लिए फायदेमंद साबित होगा। इन नियमों का पालन करने से 2025 तक भारत में टीबी के जड़ों को काटने में आसानी होगी।
लेखिका : डॉ. सोनम सोलंकी
कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट, मसीना हॉस्पिटल, मुंबई