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नए जम्मू-कश्मीर के 2 साल : 370 का दांव कितना हुआ कारगर, मोदी के लिए 70 साल पहले इस पार्टी ने बनाया था रास्ता

Updated Aug 05, 2021 | 07:24 IST

जम्मू-कश्मीर में आज आर्टिकल 370 (Article 370) को हटे दो साल पूरे हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने आज से ठीक दो साल पहले राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करते हुए इसे दो भागों में बांट दिया था।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
नए जम्मू-कश्मीर के 2 साल : 370 का दांव कितना हुआ कारगर
मुख्य बातें
  • आज से ठीक दो साल पहले केंद्र ने जम्मू कश्मीर से हटाया था आर्टिकल 370
  • आर्टिकल 370 हटाने से कुछ घंटे पहले राज्य के प्रमुख नेताओं को कर दिया था नजरबंद
  • 26 जनवरी 1950 से जम्मू-कश्मीर में लागू हुआ था अनुच्छेद 370

प्रशांत श्रीवास्तव, नई दिल्ली:  दो साल पहले 2019 को 5 अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर (Jammu Kashmir) को  धारा 370 और 35 ए  (Article 370 and 35 A) के तहत मिलने वाले विशेष प्रावधान को खत्म कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था।  उस वक्त सरकार ने  जम्मू और कश्मीर का विभाजन भी कर दिया। और पूरे राज्य को जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के तहत दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था। यही नहीं इस कार्रवाई के तहत किसी तरह की कोई हिंसा और विरोध प्रदर्शन नहीं हो इसके लिए न केवल राज्य के प्रमुख राजनेताओं को नजरबंद कर दिया गया था, साथ ही हजारों लोगों को नजरबंद भी कर दिया गया था।

कई प्रमुख नेता लंबे समय तक रहे नजरबंद

 नजरबंद होने वाले नेताओं में नेशनल कांफ्रेंस के फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। मोदी सरकार का दावा था कि ऐसा करना राज्य के लिए बेहद जरूरी था। इसके जरिए भारतीय जनता पार्टी के लंबे समय से चले आ रहे एजेंडे एक देश-एक विधान भी पूरा हो रहा था। केंद्र सरकार की तरफ से यह भी दावा किया गया इस फैसले के जरिए न केवल राज्य में विकास का बयार बहेगी, बल्कि वर्षों से प्रताड़ित कश्मीरी पंडितों के फिर से राज्य में लौटने का रास्ता साफ होगा। मौजूदा केंद्र सरकार जिस एजेंडे को जम्मू और कश्मीर में लागू कर रही है उसकी नींव 70 साल प्रजा परिषद पार्टी ने रख दी थी।

जम्मू एवं कश्मीर में प्रजा परिषद की भूमिका पर राज्य के मामले पर गहरी समझ रखने वाले और कश्मीर में पाक द्वारा 1947 में किए गए अतिक्रमण पर आने वाली पुस्तक के लेखक डॉ रमेश तामिरी का कहना है कि " प्रजा परिषद का गठन नवंबर 1947 में हुआ था। जिसका गठन प्रेम चंद डोगरा और बलराज मधोक के जरिए हुआ था। उस वक्त शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस ने  पाकिस्तान के आक्रमणकारियों के प्रति झुकाव सामने आने लगा था। उनका असली चेहरा सामने आने लगा था। उनका सांप्रदायिक और अलगाववाद का चेहरा भी सबके सामने था। उस वक्त प्रजा परिषद ने एक निशाान, एक प्रधान, एक  विधान का अभियान शुरू किया। "1954 में प्रेसिडेंशियर ऑर्डर से अमल में लाया गया। जिसके लिए 26 जनवरी 1950 से लागू संविधान के तहत अनुच्छेद 370 को आधार बनाया गया

 प्रजा परिषद ने की खिलाफत

तामिरी के अनुसार जनवरी 1952 से जून 1952 तक प्रजा परिषद ने बड़ा आंदोलन चलाया। उसका फायदा यह हुआ कि लोगों में संदेश चला गया कि शेख अब्दुल्ला और नेहरू जी ने अनुच्छेद 370 को लागू कर बड़ी गलती कर दी है। इसके बाद प्रजा परिषद ने नवंबर1952 से मई1953 तक एक बड़ा आंदोलन चलाया, इसमें जम्मू एवं कश्मीर से लेकर देश के दूसरे इलाकों के 10 हजार कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी। इसके बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी इस आंदोलन के साथ जुड़े और वह कश्मीर पुहंचे और उनकी 23 जून 1953 की उनकी मौत हो गई। प्रजा परिषद का सबसे बड़ा योगदान यह रहा है कि अनुच्छेद 370 के खिलाफ जो उन्होंने अभियान चलाया, उसी को भाजपा ने आगे बढ़ाया। भाजपा की सरकार ने अगस्त 2019 में कश्मीर को लेकर जो फैसला किया वह प्रजा परिषद के ही अभियान का नतीजा है।

आज के संदर्भ में एक बेहद अहम बात यह है कि केंद्र सरकार ने 370 और 35ए को लेकर जो ऐतिहासिक कदम उठाया है। वह बहुत अच्छा है। लेकिन हमें कश्मीर में  धर्मनिरपेक्षता को बहाल करना है, उसके तहत कश्मीर पंडितों को फिर से स्थापित करना बेहद जरूरी है। इसमें देरी नुकसानदेह होगी। क्योंकि सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर को लेकर जो 2019 में कदम उठाए, उसके मायने नहीं रह जाएंगे।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हुई थी रहस्यमयी मौत

 आरएसस से जुड़े और दिल्ली स्थित विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक अरूण आनंद का कहना है  साल1947 से 1963 तक जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 लागू करने और नेहरू एवं शेख अब्दुल्ला की कश्मीर नीतियों को लेकर जो भी आंदोलन चला उसकी कमान प्रजा परिषद पार्टी के हाथ में थी। प्रजा परिषद पार्टी के संस्थापक सदस्यों में प्रेमनाथ डोगरा भी थे। नवंबर 1947 में जब प्रजा परिषद पार्टी की स्थापना हुई उस समय वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभाग संघचालक थे। इसी कारण से उन्होंने इस नवगठित संगठन का अध्यक्ष पद लेने से इंकार कर दिया। हरि वजीर को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया, हंसराज पंगोत्रा को महासचिव व ठाकुर सहदेव सिंह को सचिव बनाया गया। लेकिन  प्रजा परिषद पार्टी की नींव रख  कर उन्होंने शेख अब्दुल्ला और नेहरू की कश्मीर नीतियों को चुनौती दी और बाद में 1950 के दशक में इस पार्टी की कमान भी संभाली। 23 जून, 1953 को डॉ मुखर्जी की श्रीनगर में जब रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हुई, उस समय पंडित डोगरा भी श्रीनगर जेल में कैद थे पंडित डोगरा और डॉ मुखर्जी को प्रजा परिषद के उस आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए जेल में डाला गया था जिसका नारा था, एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे।

दो साल पहले सरकार ने उठाया था ऐतिहासिक कदम

 मोदी सरकार के कदमों पर डॉ रमेश का कहना है सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर को लेकर दो साल पहले जो ऐतिहासिक कदम उठाए, उसके आगे की कार्रवाई पर उनका कहना है कि सरकार को जल्द ही राज्य के धर्म निरपेक्ष चेहरे को सामने लाना होगा। इसके तहत कश्मीरी पंडितों का दोबारा अपने घर में पहुंचाना बेहद जरूरी है। इसके अलावा हमें जल्द ही  जम्मू एवं कश्मीर में नए लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करना होगा। इसके तहत ऐसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया होगी जो वह धर्मनिरपेक्षता पर आधारित होनी चाहिए। तभी मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का फायदा मिलेगा।

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