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डोकलाम के बाद अब गलवान में चीन को मिली कूटनीतिक शिकस्त

Updated Jul 07, 2020 | 11:48 IST

Galwan valley News: भारत ने चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर गहरी चोट पहुंचाई। चीन को इस मोर्चे पर हार के बाद उसे अपनी सेना पीछे हटानी पड़ी।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
गलवान घाटी में खूनी हिंसा के बाद भारत चीन को कूटनीतिक शिकस्त देने में कामयाब रहा।
मुख्य बातें
  • भारत ने चीन को दी कूटनीतिक शिकस्त
  • चीन पर भारत की यह दूसरी कूटनीतिक विजय
  • गलवान घाटी में चीन की सेना को पीछे हटना पड़ा

नई दिल्ली : चीन पर भारत का दबाव काम आया है। गलवान घाटी में चीन की सेना दो किलोमीटर तक पीछे हट गई है। दरअसल, बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल और चीन के स्टेट काउंसलर एवं विदेश मंत्री यांग यी के साथ दो घंटे तक गंभीर वार्ता चली जिसके बाद चीन गलवान घाटी में अपने सैनिक पीछे हटाने के लिए तैयार हुआ। दरअसल, चीन पर भारत की यह दूसरी कूटनीतिक विजय है। इसके पहले साल 2017 में डोकलाम में चीन को भारतीय रुख के आगे झुकते हुए अपनी सेना पीछे ले जानी पड़ी। यहां चीन रणनीतिक रूप से अहम सड़क का निर्माण कर रहा था जिसे भारत ने रोक दिया। यहां दोनों देशों की सेना आमने-सामने आ गई। शीर्ष स्तर पर बातचीत और 73 दिनों के बाद यहां गतिरोध खत्म हुआ।

दरअसल, भारत ने चीन को स्पष्ट कर दिया था कि वह अपनी एकता और संप्रभुता की रक्षा के लिए किसी भी स्तर तक जाने के लिए तैयार है। विदेश मंत्रालय के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो टूक शब्दों में इस तरफ इशारा कर दिया था। पीएम के लद्दाख दौरे ने भारतीय इरादों से चीन को भलीभांति परिचित करा दिया। यही नहीं, आर्थिक मोर्च पर भारत ने चीन की जिस तरह से घेरेबंदी शुरू की उससे उसको अपना नफा और नुकसान दिखाई देने लगा। भारत ने दूरसंचार एवं निर्माण क्षेत्र में चीनी उपकरणों एवं कंपनियों पर रोक, रेलवे में चीनी कंपनियां ठेका रद्द और चीन के 59 ऐप पर प्रतिबंध लगाने सहित कई ऐसे आर्थिक फैसले लिए जिससे चीन को यह समझ में आने लगा कि भारत इस बार केवल बातें नहीं कर रहा बल्कि अतिक्रमण को लेकर वह वास्तव में गंभीर है। 

गलवान घाटी की खूनी हिंसा के बाद हुआ तनाव

गत 15 जून की गलवान घाटी की खूनी हिंसा के बाद लद्दाख सहित पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव फैल गया। सीमा पर तनाव और युद्ध जैसे हालात को बनते हुए भारत और चीन दोनों ने एलएसी के समीप अपने अग्रिम मोर्चों पर सैनिकों की संख्या में इजाफा कर दिया। भारत ने लद्दाख में करीब सेना की करीब चार डिवीजन तैनात कर दी। चीन ने भी सीमा के समीप भारी सैनिकों एवं बख्तरबंद हथियारों का जमावड़ा किया। इससे हालात और बिगड़ने की स्थिति उत्पन्न होने लगी। 

भारत ने बनाया चीन पर दबाव

सीमा पर तनाव कम करने के लिए भारत और चीन ने कूटनीतिक एवं सैन्य स्तर पर अपनी बातचीत जारी रखी। कमांडर स्तर पर दोनों देशों के बीच तीन दौर की बातचीत हुई। इस दौर की बातचीत में भारत ने अपना रुख बिल्कुल स्पष्ट रखा कि चीन गलवान में जब तक मई से पहले वाला हालात कायम नहीं रखता तब तक किसी नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सकता। भारत के इस रुख ने चीन पर दबाव बनाने का काम किया। 

चीन दुनिया में अलग-थलग पड़ गया

गलवान घाटी के मसले पर भारतीय कूटनीति के आगे चीन दुनिया में अलग-थलग पड़ गया। किसी भी देश ने उसका समर्थन नहीं किया। कोविड-19 संकट की वजह से दुनिया भर में शक की निगाह से देखे जा रहे चीन पर किसी देश ने भरोसा नहीं किया जबकि भारत के समर्थन एवं सहयोग में अमेरिका सहित कई बड़े देश आए। लेह में सैनिकों को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने विस्तारवादी नीति की आलोचना की। पीएम ने अपने संबोधन में चीन का नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका इशारा साफ था। 

पीएम मोदी ने दो टूक शब्दों में दिया संदेश

पीएम ने कहा कि विस्तारवादी नीतियों की अब दुनिया में कोई जगह नहीं है। इस तरह की नीति रखने वाले देश या तो खत्म हो गए या उन्हें समाप्त कर दिया गया। पीएम के इस बयान को दुनिया में काफी समर्थन मिला। यही नहीं, चीन कोरोना, हांगकांग, वियतनाम और दक्षिण चीन सागर के प्रति अपनी नीतियों को लेकर आलोचना का शिकार हो रहा है। इन विपरीत स्थितियों में चीन के लिए सीमा पर गतिरोध बढ़ाना उसके हित में नहीं था।

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