- राजभर समुदाय का पूर्वांचल के कई जिलों में 17-18 फीसदी वोट बैंक है।
- समाजवादी पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोक दल और आजाद समाज पार्टी को भी अपने पाले में ला सकती हैं।
- अब चाचा शिवपाल यादव और असदुद्दीन ओवैसी को लेकर अखिलेश यादव का क्या कदम होगा, इस पर सबकी नजर है।
नई दिल्ली: यूपी विधान सभा चुनावों के लिए समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव ने अब अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं। पहले विजय यात्रा और अब ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन। साथ ही अगर ओम प्रकाश राजभर के दावे को माना जाय तो सपा के साथ केवल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठबंधन नहीं हुआ है, बल्कि भागीदारी संकल्प मोर्चे का गठबंधन हुआ है। यानी आठ छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन हुआ है। अखिलेश इस दांव से पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। अखिलेश यादव ठीक उसी रणनीति के तहत पूर्वांचल में अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहते हैं, जैसे 2017 में भारतीय जनता पार्टी ने किया था। उस वक्त भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर के साथ गठबंधन किया था। और उसे पूर्वांचल में फायदा में बड़ी जीत का फायदा मिला था। उस वक्त भाजपा ने 100 से ज्यादा सीटें जीती थी। अब कुछ ऐसी उम्मीद अखिलेश भी कर रहे हैं।
क्या है ओम प्रकाश राजभर का वोट बैंक
2017 के विधान सभा चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन कर ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसमें से उसने 4 सीटें जीत ली थी। यानी स्ट्राइक रेट 50 फीसदी था। राजभर के वोट बैंक पर लखनऊ के बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे कहते हैं "पूर्वांचल के करीब 10 जिलों में राजभर जाति का अच्छा खासा वोट है। और उनका वोट बैंक काफी अडिग है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां चतुष्कोणीय मुकाबला होता है। वहां पर 5000-7000 वोट, एक विधान सभा में काफी मायने रखते हैं। यही ताकत राजभर की खासियत है।" राजभर समुदाय गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत स्थिति में है। कुल मिलकार पू्र्वांचल की 150 सीटों में राजभर मतदाता काफी मायने रखते हैं।
भागीदारी संकल्प मोर्चे से ओबीसी वोट पर नजर
ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व में बने भागीदारी संकल्प मोर्चे में असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन, कृष्णा पटेल का अपना दल, जन अधिकार पार्टी, राष्ट्रीय उदय पार्टी, राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी, जनता क्रांति पार्टी और भारतीय वंचित समाज पार्टी शामिल हैं। अकेले राजभर समुदाय की पूर्वांचल में 17-18 फीसदी आबादी है। ऐसे में बाकी दलों के साथ मिलकर यह मोर्चा ओबीसी वोटरों को लुभाने की ताकत रखता है। अखिलेश यादव इसी जुगत में हैं। कि अगर ओबीसी और मुस्मिल वोट बैंक एक साथ आ जाएंगे, तो उनकी राह काफी आसान हो जाएगी। क्योंकि दोनों को मिलाने पर 50 फीसदी से ज्यादा मतदाता आ जाते हैं।
चाचा शिवपाल, आरएलडी से भी मिलाएंगे हाथ ?
जिस तरह ओम प्रकाश राजभर के साथ अखिलेश यादव ने अचानक गठबंधन का ऐलान किया है। उससे साफ है कि वह आने वाले दिनों में कुछ और चौंकाने वाले फैसले ले सकते हैं। खास तौर से जब वह बार-बार यह कहते रहे हैं कि इस बार छोटे दलों से गठबंधन करेंगे। बड़े दलों से गठबंधन करने का अंजाम देख लिया है। वाराणसी में 21 अक्टूबर को एक निजी चैनल से बात करते हुए राजभर ने कहा, कि यूपी में सारी सड़कें लखनऊ में मिलती हैं। राजभर का इशारा अखिलेश यादव के चाचा और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया शिवपाल यादव के साथ आने की ओर था। इसके पहले भी अखिलेश, शिवपाल यादव की अपील पर कह चुके हैं कि समय आने पर गठबंधन हो जाएगा।
इसी तरह पश्चिमी यूपी में भी राष्ट्रीय लोक दल और भीम आर्मी चीफ और आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार दोनों दलों से सीटों को लेकर अभी मामला फंस रहा है। असल में अखिलेश यादव ज्यादा सीटें छोड़ने के मूड में नहीं हैं। जबकि आरएलडी कम से कम 25 सीटों की मांग कर रही है। इसके अलावा चंद्रशेखर के लिए अलग से सीट देने को सपा तैयार नहीं है। अब देखना यह है कि क्या फॉर्मूला तैयार होता है। लेकिन एक बात तय है कि किसान आंदोलन की वजह से बड़े जाट समर्थन को देखते हुए आरएलडी ज्यादा सीटें छोड़ना नहीं चाहती है।
सबसे ज्यादा पूर्वांचल में छोटे दल
पूर्वांचल में विधान सभा की 150 से ज्यादा सीटें हैं। 2017 के विधान सभा चुनाव के नतीजों को देखा जाय तो BJPने 100 से ज्यादा सीटों पर कब्जा किया था। वहीं समाजवादी पार्टी को 18, बसपा को 12, अपना दल को 8, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 4, कांग्रेस को 4 और निषाद पार्टी को 1 सीट पर जीत मिली थी। आंकड़ों से साफ है कि चाहे अनुप्रिया पटेल का अपना दल हो, ओम प्रकार राजभर की सुहेलदेवल भारतीय समाज पार्टी या फिर संजय निषाद की निषाद पार्टी, ये सभी छोटे दल पूर्वांचल में पनपे हैं। इसकी वजह यही है कि उत्तर प्रदेश में अभी भी जाति आधारित चुनाव हकीकत है। और छोटे दल अपनी जाति में पकड़ बनाकर मोल-भाव करने की स्थिति में आ जाते हैं।