- गत पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म किया गया
- पीडीपी के कई नेता राजनीति की मुख्य धारा में आना चाहते हैं
- पीडीपी नेता मुजफ्फर बेग ने कुछ दिनों पहले महबूबा मुफ्ती की आलोचना की
नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद यहां की स्थानीय राजनीति में बदलाव का दौर शुरू हो गया है। कभी अलगाव की भाषा बोलने वाले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेताओं के सुर या तो नरम पड़ गए हैं या सुर बदल गए हैं। बदले हुए हालातों जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री और पीडीपी नेता अल्ताफ बुखारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने का फैसला किया है। बुखारी के साथ राज्य का एक शिष्टमंडल भी पीएम और गृह मंत्री से मिलेगा।
बुखारी ने एक बयान में कहा, 'जम्मू में 29 जनवरी 2020 को कुछ वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं, शिक्षाविदों, कानूनविदों, एक्टिविस्टों और समान विचारधारा वाले लोगों की एक अनौपचारिक बैठक हुई। इस बैठक में राज्य के मौजूदा सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की गई।' उन्होंने कहा, 'इस बैठक में जम्मू एवं कश्मीर की जनता को एक व्यावहारिक, लोकतांत्रिक राजनीतिक विकल्प देने की जरूरत पर सहमति जताई गई। जमीनी स्तर से जुड़ा एक लोकतांत्रिक अभियान चलाने के लिए लोगों तक पहुंचा गया है।'
बता दें कि गत पांच अगस्त को भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म कर दिया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियों पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और अलगाववादी नेताओं को उनके घरों में नजरबंद कर दिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और पीडीपी मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को अभी नजरबंद रखा गया है। कश्मीर में स्थितियां जैसे-जैसे सामान्य हुई हैं, वैसे-वैसे नेताओं की रिहाई हुई है। घाटी में इंटरनेट सेवा भी बहाल हुई है।
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद वहां नए नेता उभरकर सामने आ रहे हैं। इनमें पीडीपी और नेकां दोनों दलों के नेता शामिल हैं जिन्होंने भारतीय संविधान एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था में गहरी आस्था जताई है। ये नेता मुख्य धारा की राजनीति से जुड़कर अपने प्रदेश का विकास करना चाहते हैं। बता दें कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा युक्त केंद्र शासित प्रदेश है जबकि लद्दाख में विधानसभा नहीं है।