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अयोध्या केस : स्वतंत्र भारत की दूसरी सबसे बड़ी सुनवाई, जानें और भी जरूरी बातें

Updated Nov 09, 2019 | 09:18 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

Ayodhya case: अयोध्या केस की सुनवाई 40 दिनों तक चली। ये सुप्रीम कोर्ट में चलने वाली दूसरी सबसे लंबी सुनवाई है। 2010 में ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था।

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अयोध्या

नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) आज अयोध्या केस पर फैसला सुनाने वाली है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी हुई। इस केस में 40 दिनों तक सुनवाई हुई। यह सुप्रीम कोर्ट में चलने वाली दूसरी सबसे लंबी सुनवाई है। सबसे लंबी सुनवाई का रिकॉर्ड केशवानंद भारती केस का है। इस केस की सुनवाई 68 दिनों तक चली थी।

यह मामला मौलिक अधिकारों से संबंधित था। इसे 13 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुना था। 1973 में इस केस में 5 महीने में 68 दिन सुनवाई हुई। अयोध्या केस से पहले दूसरी सबसे बड़ी सुनवाई के मामले में आधार मामला था, जिसमें फैसले से पहले 38 दिन सुनवाई हुई।

दिसंबर 2010 में अयोध्या केस सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। अखिल भारतीय हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट दिया था। एक तिहाई हिस्सा रामलला को दिया गया, जिसका प्रतिनिधित्व हिंदू महासभा ने किया। एक तिहाई हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।

2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित स्थल को तीन भागों में विभाजित करने के उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और कहा कि यथास्थिति बनी रहेगी। अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5-जजों की संविधान पीठ ने मामले पर अंतिम सुनवाई शुरू की। इस दिन से प्रतिदिन सुनवाई शुरू हुई।

अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद सालों नहीं सदियों पुराना है। 1528 में मुगल शासक बाबर ने यहां बाबरी मस्जिद बनाई। 18वीं सदी में यहां सांप्रदायिक दंगे भी हुए। 1949 में यहां मस्जिद के अंदर गुंबद में भगवान राम की मूर्तियां मिलीं। इसके बाद विवाद बढ़ने पर दोनों पक्षों ने कोर्ट में केस दायर किया। 1986 में फैजाबाद जिला अदालत ने मस्जिद के द्वार खोलने का आदेश दिया और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दी। मुसलमानों ने इस कदम का विरोध किया और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

इसके बाद 1989 में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने तत्कालीन राजीव गांधी सरकार की अनुमति के बाद बाबरी मस्जिद के बगल में भूमि पर राम मंदिर की नींव रखी। 1992 में हजारों लोग इकट्ठे हुए बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इसके बाद देश के कई हिस्सों में दंगे हुए, जिसमें 2000 से ज्यादा लोगों की जान गई।

इसके बाद विश्व हिंदू परिषद लगातार वहां मंदिर बनाए जाए के संकल्प को दोहराती रही और बीजेपी के घोषणा पत्र में भी राम मंदिर को जगह मिलती रही। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अयोध्या में यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी और किसी को भी सरकार द्वारा अधिग्रहीत जमीन पर शिलापूजन की अनुमति नहीं होगी।

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