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Ayodhya- Orchha Connection: ओरछा से अयोध्या का है गहरा नाता, यहां राम भगवान नहीं बल्कि हैं राजा

Updated Aug 05, 2020 | 00:33 IST

Lord Ram in Orchha: बुंदेलखंड के ओरछा में राम को भगवान नहीं बल्कि राजा के तौर पर देखा जाता है। ऐतिहासिक नगरी ओरक्षा के अयोध्या से गहरे संबंध हैं।

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ओरछा का अयोध्या से गहरा रिश्ता
मुख्य बातें
  • बुंदेलखंड इलाके में है ओरछा
  • ओरछा में भगनाव राम को राजा के तौर पर पूजा जाता है।
  • ओरछा और अयोध्या में कई शताब्दी पुराने संबंध

नई दिल्ली। पांच अगस्त का दिन भारतीय इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप के तौर पर अंकित हो जाएगा। अभिजित मुहूर्त में पीएम नरेंद्र मोदी राम मंदिर भूमि पूजन करेंगे और इसके साथ ही मंदिर निर्माण की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। अभी तक हम सभी लोग जानते हैं कि अयोध्या एक ही है लेकिन बुंदेलखंड इलाके में स्थित ओरछा को स्थानीय लोग अयोध्या कहते हैं और उस नगरी में भी हलचल है। ओरछा में रामराजा मंदिर की खास अंदाज में सजावट की गई है। बताया जाता है कि यहां पर राम भगवान के रूप में नहीं बल्कि राजा के तौर पर विराजते हैं। 

राजा राम को पुलिस के जवान देते हैं सलामी
राजा रूप में राम को माने जाने पर  चार बार होने वाली आरती के समय उन्हें पुलिस द्वारा सलामी दी जाती है। बताया जाता है कि श्रद्धालु राम की प्रतिमा की आंख से आंख नहीं मिलाते बल्कि उनके चरण दर्शन से ही खुद को धन्य समझते हैं। प्रसाद के तौर पर  भोग के साथ पान का बीड़ा, इत्र की बाती भक्तजनों का दी जाती है। 

बड़ी दिलचस्प है कहानी
ओरछा में जो दस्तावेज हैं उसके मुताबिक ओरछा राजवंश के राजा मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी पत्नी कुंअर गणेश राम की उपासक थीं। दोनों लोगों में कृष्ण और राम को लेकर संवाद के साथ साथ तर्क चलता रहता था। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने को कहा लेकिन रानी ने इंकार किया और अयोध्या जाने की बात कही। राजा ने रानी की बात का मजाक बनाते हुए चुनौती दी कि अगर तुम्हारे राम वास्तव में तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लेकर आओ।



तीन शर्तों के साथ राम ओरछा गए
बताया जाता है कि रानी कुंअर गणेश ओरछा से अयोध्या गईं और लगातार 21 दिन तक तप किया। राम प्रकट नहीं हुए तो उन्हें निराशा हुई और वह सरयू नदी में कूद गईं। लेकिन चमत्कार यह हुआ कि उनकी गोद में राम जी आ गए। रानी ने उनसे ओरछा चलने का अनुरोध किया। लेकिन भगवान ने तीन शर्त रख दी। ओरछा में राजा के तौर पर विराजित होंगे जहां एक बार बैठ जाएंगे तो फिर वहां से उठेंगे नहीं और सिर्फ पुण्य नक्षत्र में पैदल चलकर ही ओरछा जाएंगे। रानी ने अपने आराध्य की तीनों शर्तों को मान ली। 

राजमहल की रसोईं में विराजमान हुए राम
स्थानीय जानकार बताते हैं कि कुंअर गणेश अपने आराध्य राम को लेकर जब अयोध्या से ओरछा पहुंची तब मंदिर का निर्माण चल रहा था। ऐसी सूरत में में रानी ने राम जी को राजनिवास की रसोई में बैठा दिया और शर्त के मुताबिक राम जी वहां से उठे नहीं। बाद में उस रसोई को ही मंदिर में बदल दिया गया। और इस तरह राम को राजा के तौर पर माना गया। यही वजह है कि कोई भी नेता, मंत्री या अधिकारी ओरछा की चाहरदीवारी क्षेत्र में जलती हुई बत्ती वाली गाड़ी से नहीं आते हैं। 

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