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सामाजिक न्याय का प्रतीक बनें, देश के भविष्य को आकार देना आप पर निर्भर है, लॉ के छात्रों से बोले CJI एनवी रमण

Updated Jul 31, 2022 | 12:51 IST

भारत के चीफ जस्टिस एन वी रमण ने रायपुर में हिदायतुल्ला लॉ यूनिवर्सिटी में 5वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए छात्रों से कहा कि आपको सामाजिक न्याय का प्रतीक बनना चाहिए। इस देश के भविष्य को आकार देना आप पर निर्भर है।

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तस्वीर साभार:&nbspANI
भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमण

रायपुर: भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमण ने रविवार को छत्तीसगढ़ के रायपुर में हिदायतुल्ला लॉ यूनिवर्सिटी में 5वें दीक्षांत समारोह के दौरान स्नातक छात्रों को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि जितना संभव हो उतने प्रो-बोनो (pro-bono) मामलों को उठाएं, जैसे जस्टिस हिदायतुल्ला ने एक युवा बैरिस्टर के रूप में किया था।

चीफ जस्टिस ने कहा कि आपको अवश्य सामाजिक न्याय का प्रतीक होना चाहिए। मैं आप सभी से अनुरोध करूंगा कि न्याय के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए आपने यूनिवर्सिटी में जो स्किल सीखा है, उसका उपयोग करें। सबसे कमजोर लोग अक्सर राज्य या असामाजिक तत्वों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के शिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि इस देश के भविष्य को आकार देना आप पर निर्भर है। आप जो ओपिनियन लिखते हैं, जो नीतियां आप तैयार करते हैं, जो दलीलें और प्रस्तुतियां आप अदालत में फाइल करते हैं, और जिस नैतिकता को आप प्रिय मानते हैं, उसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

शनिवार को चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा था कि न्यायपालिका की गंभीर चिंताओं पर पर्दा डालने से न्याय प्रणाली चरमरा जाएगी और लोगों की बेहतर तरीके से सेवा करने के लिए चर्चा करना आवश्यक है। जस्टिस रमण दिल्ली में पहली अखिल भारतीय जिला विधिक सेवा प्राधिकरण बैठक को संबोधित कर रहे थे, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न्यायपालिका से जेलों में बंद और कानूनी सहायता का इंतजार कर रहे विचाराधीन कैदियों को रिहा करने की प्रक्रिया में तेजी लाने का अनुरोध किया था।

चीफ जस्टिस ने शनिवार को कहा था कि मैं जहां भी जाता हूं, लोगों का भरोसा और विश्वास जीतने में भारतीय न्यायापालिका की उपलब्धियां दिखाने की कोशिश करता हूं। लेकिन, अगर हम लोगों की बेहतर तरीके से सेवा करना चहाते हैं तो हमें उन मुद्दों को उठाने की जरूरत है, जो हमारे कामकाज में बाधा डालते हैं। उन्होंने कहा था कि समस्याओं को छिपाने या उन पर पर्दा डालने का कोई तुक नहीं है। अगर हम इन मुद्दों पर चर्चा नहीं करते हैं, अगर गंभीर चिंता के विषयों पर बातचीत नहीं करते हैं तो पूरी व्यवस्था चरमरा जाएगी।

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