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Manglesh Dabral: साहित्य जगत को बड़ा झटका, 72 वर्ष की उम्र में मंगलेश डबराल का निधन

Updated Dec 09, 2020 | 22:37 IST

पहाड़ की लालटेन बुझ गई है। मशहूर साहित्यकार मंगलेश डबराल इस नश्वर संसार को अलविदा कह चुके हैं। 72 वर्ष की उम्र में एम्स में अंतिम सांस ली।

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72 साल की उम्र में मंगलेश डबराल का निधन
मुख्य बातें
  • 72 वर्ष की उम्र में साहित्यकार मंगलेश डबराल का निधन
  • एम्स में चल रहा था इलाज, साहित्य अकादमी के पुरस्कार से थे सम्मानित
  • 23 नवंबर को लिखा था बुखार वाला किस्सा

दिल्ली। मंगलेश डबराल नहीं रहे। 72 वर्ष की उम्र में एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली। वो लंबे समय से बीमार थे और गाजियाबाद में इलाज चल रहा था। बाद में उन्हें दिल्ली स्थिति एम्स भर्ती कराया गया। मंगलेश डबराल के निधन से हिंदी साहित्य को बड़ा झटका लगा बहै। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मंगलेश डबराल के निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्होंने मंगलेश डबराल के निधन को हिंदी साहित्य को एक बड़ी क्षति बताते हुए  दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतप्त परिवार जनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है.   

दिल्ली एम्स में चल रहा था इलाज
परिवार और उनकी सहमति के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था। भर्ती होने के बाद कुछ दिन तक उनकी तबीयत स्थिर बनी रही। बीच बीच में सुधार भी हुआ। लेकिन रविवार तबीयत खराब होने के बाद वेंटिलेटर पर रखा गया था।  हालांकि उनके शरीर के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया। बुधवार शाम को डायलिसिस के लिए ले जाया जा रहा था कि तभी उनको दिल के दो दौरे पड़े। 


1948 में टिहरी गढ़वाल में हुआ था जन्म

टिहरी गढ़वाल जिले के काफलपानी गांव में जन्मे कवि और लेखक मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई 1948 को हुआ था। मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी कवियों में सबसे चर्चित नाम था।  दिल्ली में पैट्रियट हिंदी, प्रतिपक्ष और आसपास में कुछ दिन काम करने के बाद मध्य प्रदेश चले गए। मध्य प्रदेश कला परिषद्, भारत भवन से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पूर्वाग्रह में सहायक संपादक रहे। अमृत प्रभात में भी कुछ दिन नौकरी भी की थी।

23 नवंबर को लिखा था बुखार वाला किस्सा
मंगलेश डबराल ने अपने फेसबुक अकाउंट पर 23 नवंबर को बुखार का एक किस्सा साझा किया था। उन्होंने लिखा था, 'बुखार की दुनिया भी बहुत अजीब है। वह यथार्थ से शुरू होती है और सीधे स्वप्न में चली जाती है। वह आपको इस तरह झपोडती है जैसे एक तीखी-तेज हवा आहिस्ते से पतझड़ में पेड़ के पत्तों को गिरा रही हो। वह पत्ते गिराती है और उनके गिरने का पता नहीं चलता। जब भी बुखार आता है, मैं अपने बचपन में चला जाता हूं। हर बदलते मौसम के साथ बुखार भी बदलता था। बारिश है तो बुखार आ जाता था, धूप अपने साथ देह के बढ़े हुए तापमान को ले आती और जब बर्फ गिरती तो मां के मुंह से यह जरूर निकलता...अरे भाई, बर्फ गिरने लगी है, अब इसे जरूर बुखार आएगा।'

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