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क्‍या पिता की तरह 'सियासत के मौसम वैज्ञानिक' बन पाएंगे चिराग पासवान?

Updated Oct 11, 2020 | 22:23 IST

Chirag Paswan: चिराग पासवान हिन्दी सिनेमा में सफल नहीं हो सके। यहां विफलता के बाद ही उन्होंने राजनीति में कदम रखा। अब यह देखने वाली बात होगी कि वह अपने पिता की तरह राजनीति के मौसम वैज्ञानिक बन पाते हैं या नहीं?

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तस्वीर साभार:&nbspPTI
क्‍या पिता की तरह 'सियासत के मौसम वैज्ञानिक' बन पाएंगे चिराग पासवान?
मुख्य बातें
  • चिराग पासवान ने 'मिले ना मिले हम' फिल्‍म से बॉलवुड में कदम रखा था
  • यह उनकी पहली और आखिर फिल्‍म रही, जिसके बाद वह राजनीति में उतर गए
  • चिराग 2014 और 2019 में बिहार के जमुई संसदीय सीट से निर्वाच‍ित हुए

नई दिल्‍ली : भारतीय राजनीति में दिवंगत नेता रामविलास पासवान को बड़ा 'मौसम वैज्ञानिक' कहा जाता था। उन्‍हें यह उपाधि राजनीति में कभी उनके मित्र तो कभी विरोधी रहे लालू प्रसाद ने दी थी। रामविलास पासवान अब हमारे बीच नहीं हैं। उनके निधन के साथ ही बिहार की राजनीति में एक बड़ा शून्‍य उभर आया है, जहां उनकी पहचान एक कद्दावर दलित नेता के तौर पर रही। अपनी राजनीतिक सूझबूझ के कारण पासवान ने कभी खुद को अप्रसांगिक नहीं होने दिया। कम संख्‍या बल के बावजूद पासवान न केवल बिहार की राजनीति में, बल्कि केंद्र की राजनीति में हमेशा सक्रिय रहे।

निशाने पर नीतीश

पासवान का निधन ऐसे समय में हुआ है, जबकि बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और पार्टियां चुनावी मैदान में खम ठोक रही हैं। जिस लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की कमान कभी रामविलास पासवान के हाथों में थी, वह अब उनके बेटे चिराग पासवान के हाथों में है। पासवान के रहते हुए ही चिराग ने पार्टी की कमान अच्‍छी तरह से संभाल ली थी और महत्‍वपूर्ण फैसलों में उनका दखल साफ परिलक्षित होता रहा। बिहार विधानसभा चुनाव में जब एलजेपी ने एनडीए के साथ गठबंधन में होने के बावजूद अकेले चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया तो यह फैसला भी चिराग का ही रहा।

चिराग के निशाने पर अब तक बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार रहे हैं, जिनका वह खुलकर विरोध करते रहे हैं। जेडीयू के साथ वैचारिक मतभेद का हवाला देते हुए उन्‍होंने अकेले चुनाव लड़ने की बात कही, जिसके बाद कांग्रेस ने कहा कि चिराग, रामविलास पासवान से बड़े 'मौसम वैज्ञानिक' निकले। कांग्रेस का इशारा इस तरफ था कि नीतीश की नैया अब डूब रही है और इसलिए चिराग ने एनडीए में होने के बावजूद बिहार की राजनीति में अकेले चलने का फैसला किया है। लेकिन क्‍या वास्‍तव में ऐसा है? क्‍या चिराग, वास्‍तव में अपने पिता से बड़े 'राजनीतिक मौसम वैज्ञानिक' हैं?

बीजेपी से नहीं समस्‍या

इस सवाल का सीधा जवाब तो 10 नवंबर के बाद ही मिल पाएगा, जब बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों की घोषणा होगी, लेकिन इतना तय है कि बीजेपी के साथ एलजेपी के रिश्‍ते आने वाले समय में और मजबूत होंगे। चिराग पहले ही इसके संकेत दे चुके हैं कि जेडीयू के साथ भले ही उसके 'वैचारिक मतभेद' हैं, लेकिन बीजेपी के साथ उसके रिश्‍तों में किसी तरह की कड़वाहट नहीं है। इसका पता इससे भी चलता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने जहां जेडीयू के खिलाफ उम्‍मीदवार उतारने की बात कही है, वहीं यह भी कहा कि वह बीजेपी के खिलाफ प्रत्‍याशी नहीं उतारेगी।

जेडीयू के खिलाफ एलजेपी उम्‍मीदवारों के मैदान में उतरने से नीतीश कुमार को कितना नुकसान होगा, इसका पता भी चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद ही हो सकेगा, पर पार्टी के मौजूदा रुख को देखते हुए ये आरोप भी लग रहे हैं कि चिराग की अगुवाली वाली एलजेपी वास्‍तव में बीजेपी की बी-टीम की तरह काम कर रही है, जिसका मकसद गठबंधन में अहम साझीदार जेडीयू को नुकसान पहुंचाकर बीजेपी के राजनीतिक हितों को साधना है। एलजेपी के मौजूदा रुख से यह भी जाहिर होता है कि वास्‍तव में उसकी नजर चुनाव बाद के परिदृश्‍य पर है, जहां अगर स्थिति बने तो नीतीश के नेतृत्व को दरकिनार कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई जा सके।

बॉलीवुड से शुरुआत

बॉलीवुड से शुरुआत कर राजनीति में कदम रखने वाले चिराग पासवान की गिनती अब बिहार की सियासत के प्रभावशाली चेहरों में होती है। 31 अक्टूबर, 1982 को बिहार के खगड़िया जिले में जन्मे चिराग पासवान की पढ़ाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूल से हुई, जिसके बाद उन्होंने दिल्ली के एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस में बी. टेक किया। वर्ष 2011 में आई फिल्‍म 'मिले ना मिले हम' से बॉलवुड में कदम रखने वाले चिराग पासवान को हालांकि फ‍िल्‍मी दुनिया में सफलता नहीं मिली, जिसके बाद ही उन्‍होंने राजनीति का रुख किया। 

भारतीय राजनीति में लंबे समय तक उनकी पहचान रामविलास पासवान के बेटे के रूप में ही रही। 2014 में वह जमुई से लोकसभा सांसद निर्वाचित हुए, जब देशभर में मोदी लहर थी। इसके बाद 2019 के आम चुनाव में भी उन्‍होंने जमुई संसदीय सीट से जीत हासिल की। पिता के साथ सियासत का ककहरा सीखते हुए अब चिराग पूरे आत्‍मविश्‍वास के साथ पार्टी के फैसले लेते हैं। पार्टी की पूरी जिम्‍मेदारी अब चिराग के कंधे पर है। यह देखने वाली बात यह होगी कि चिराग, अपने पिता की तरह सियासी हलचल को कितना भांप पाते हैं?

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